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Editorial: आत्मविश्वास से भरा बजट

अंतरिम बजट केवल जरूरी चीजों पर केंद्रित रहा: पिछले वर्ष के प्रदर्शन की प्रस्तुति एवं आगामी वर्ष के लिए जरूरी आवंटन।

Last Updated- February 01, 2024 | 10:49 PM IST
Editorial: आत्मविश्वास से भरा बजट, Editorial: Budget full of confidence

चुनावी साल में केंद्र सरकार को 1 फरवरी को केवल लेखानुदान पेश करना रहता है। सरकार ने प्रमुख नीतिगत प्रस्तावों तथा कर बदलावों को जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया है जब नई सरकार सत्ता में होगी। समय के साथ लेखानुदान ‘अंतरिम बजट’ में बदल गया। इस वर्ष के अंतरिम बजट में पारदर्शिता और परंपरा की वापसी अच्छी बात रही।

अंतरिम बजट केवल जरूरी चीजों पर केंद्रित रहा: पिछले वर्ष के प्रदर्शन की प्रस्तुति एवं आगामी वर्ष के लिए जरूरी आवंटन। किसी बड़ी रियायत, कल्याणकारी योजना व्यय, कर रियायत आदि के जरिये लोगों को रिझाने आदि की कोशिश नहीं की गई।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वित्त मंत्रालय की उनकी टीम की भी सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने बजट के आंकड़ों को पूरी तरह पारदर्शी रखा। इस वर्ष बजट से इतर उधारी वाला हिस्सा खाली रहा जो बीते कुछ वर्षों की तुलना में सुखद स्थिति है। ऐसे में घाटे के आंकड़े विश्वसनीय हैं। शेयर बाजारों की बात करें तो उनके दिन का अंत भी कमोबेश शुरुआत के स्तर पर हुआ।

लेखानुदान के मामले में ऐसा होना उचित ही है। राजकोषीय मजबूती को लेकर सरकार की प्राथमिकता को वृहद आंकड़ों में देखा जा सकता है। इस वर्ष राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.9 फीसदी रखने के लक्ष्य को बेहतर करते हुए 5.8 फीसदी का लक्ष्य हासिल किया गया। इसमें उच्च गैर कर राजस्व तथा सरकारी बैंकों और रिजर्व बैंक के लाभांश के साथ-साथ पूंजीगत व्यय में कमी का भी योगदान रहा।

अगले वर्ष के लिए 5.1 फीसदी का लक्ष्य रखा गया है और राजस्व मोर्चे पर सीमित प्रयासों के साथ इसे हासिल किया जा सकता है। इस घाटे का लक्ष्य हासिल करने के लिए सकल कर राजस्व में केवल 1.1 फीसदी उछाल का अनुमान है जो इस वर्ष से काफी कम है। इस बजट में जवाबदेही और संयम की जो प्रवृत्ति दिखी है वह राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के रुख में भी नजर आती है। इस वर्ष राजस्व का आधा हिस्सा राज्यों को स्थानांतरित कर दिया गया है।

परिणामस्वरूप केंद्र सरकार के कुल शुद्ध कर राजस्व में वैसी तेजी नहीं दिखी जैसा कि 2023 के बजट में अनुमान लगाया गया था। उस लिहाज से देखा जाए तो वैश्विक परिदृश्य के कुछ पहलू ऐसे हैं जिन पर बजट पर विचार के दौरान पूरी तरह गौर नहीं किया गया और जो आने वाले समय में व्यय को नियंत्रित करने की प्रतिबद्धता पर असर डाल सकते हैं। पहली बात, संभव है कि सब्सिडी को लेकर अंडर प्रॉविजन हो।

उदाहरण के लिए यूरिया सब्सिडी में 2023-24 के संशोधित अनुमानों की तुलना में अगले वर्ष 9 फीसदी कमी आने की उम्मीद है। पेट्रोलियम सब्सिडी हालांकि अब बहुत कम है लेकिन उसमें भी गिरावट आने की आशा है। इसमें मध्यम अवधि में तेल एवं गैस कीमतों को लेकर आशावादी रुख अपनाया गया है। पश्चिम एशिया में हालात ठीक नहीं हैं, ऐसे में तेल एवं गैस कीमतों को लेकर बहुत आशावादी होना उचित नहीं।

दूसरा, रक्षा बजट अल्पकालिक और दीर्घकालिक वैश्विक खतरों से अंजान नजर आता है। रक्षा के लिए आवंटन में काफी कमी की गई है यानी रक्षा बजट में कमी आना तय है। रक्षा क्षेत्र का पूंजीगत व्यय भले ही मामूली रूप से बढ़े लेकिन यह स्पष्ट है कि सरकार को दीर्घावधि में अपने रुख का फिर से परीक्षण करना होगा ताकि सेना को जरूरी राशि मुहैया कराई जा सके। वेतन और खासतौर पर पेंशन को बड़े पूंजीगत सुधारों के हिस्से पर काबिज नहीं होने दिया जा सकता है। खासतौर पर तब जबकि सेना पर वास्तविक व्यय स्थिर हो या लगातार घट रहा हो।

तीसरा, उच्च सब्सिडी वाली औद्योगिक नीति की और वैश्विक रुझान को लेकर भारत ने कोई ठोस प्रत्युत्तर नहीं दिया है। हालांकि कई उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजनाओं की घोषणा की गई जिनमें उभरती और अग्रणी प्रौद्योगिकी भी शामिल हैं जो भविष्य की वृद्धि और आर्थिक सुरक्षा के लिए अहम हैं।

परंतु इन योजनाओं के लिए वास्तविक बजट आवंटन प्रेस विज्ञप्तियों में किए गए वादों से मेल नहीं खाता। अगर सरकार को वैश्विक सब्सिडी होड़ के चलते पीएलआई पर व्यय बढ़ाना पड़ा तो राजकोष के समक्ष जो जोखिम उत्पन्न होगा उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है।

सीतारमण ने भविष्य की योजनाएं बनाते समय विवेक का परिचय दिया है लेकिन सूक्ष्म दृष्टि डालने पर यह कहा जा सकता है कि सरकार आने वाले महीनों में पूर्ण बजट पेश करने को सुनिश्चित मान रही है। व्यय और घाटे पर महामारी का प्रभाव अब फीका पड़ रहा है, हालांकि यह राजकोषीय जवाबदेही को लेकर सरकार के रुख के लिए बाधा था।

परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में आर्थिक रुख सरकार का पूंजीगत व्यय बढ़ाने पर रहा, खासतौर पर परिवहन के क्षेत्र में। अब इसकी उपयोगिता अपनी सीमा पर पहुंच रही है। आगामी वर्ष के लिए पूंजीगत व्यय में केवल 17 फीसदी वृद्धि का वादा किया गया है। आगामी पांच वर्षों के लिए व्यापक योजना जुलाई में पेश करनी होगी।

First Published - February 1, 2024 | 10:49 PM IST

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