भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने हाल में ई-कॉमर्स क्षेत्र के लिए दिशानिर्देशों का मसौदा जारी किया है। बीआईएस का यह कदम स्वागत योग्य है और ऐसे समय में उठाया गया है जब देश में ऑनलाइन खरीदारी बहुत तेज रफ्तार से बढ़ रही है। इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य उपभोक्ताओं और अन्य हितधारकों की चिंता दूर करना है। इन नीतियों एवं नियम-कायदों को तैयार करने में विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों की भूमिका रही है। मगर कहीं न कहीं इनसे विरोधाभासी संकेत मिल रहे हैं। इसका कारण यह है कि वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय फिलहाल ई-कॉमर्स नीति तैयार करने में जुटा है और फिलहाल इसे अंतिम रूप नहीं दिया गया है। इस तरह, जब तक एक व्यापक नीति बनकर तैयार नहीं हो जाती तब तक बीआईएस द्वारा तैयार दिशानिर्देशों का कोई विशेष मतलब नहीं रह जाएगा। बीआईएस एक स्वायत्त संस्था है जो उपभोक्ता मामलों, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीनस्थ काम करती है। ई-कॉमर्स नीति शीघ्र आ आए तो इन दिशानिर्देशों में अधिक पारदर्शिता आ जाएगी।
इन मसौदा दिशानिर्देशों पर ई-कॉमर्स उद्योग को फरवरी के मध्य तक अपनी प्रतिक्रिया देनी है। पिछले कई वर्षों के दौरान विभिन्न कारोबारी प्रारूप सामने आए हैं। किसी बड़ी ऑनलाइन कंपनी या मार्केटप्लेस के काम करने का तरीका फूड डिलिवरी कंपनी से अलग होता है। इसी तरह, इन्वेंट्री आधारित एकल ब्रांड फैशन ई-कॉमर्स कंपनी के काम करने का तरीका क्विक कॉमर्स कंपनी (झटपट सामान पहुंचाने वाली इकाइयां) से बिल्कुल अलग होता है। लिहाजा, यह उचित होगा कि दिशानिर्देशों में इन सभी विविधताओं का ध्यान रखा जाए। इससे ई-कॉमर्स कारोबार में लगी कंपनियां फुर्ती से उपभोक्ताओं को अनुचित व्यवहारों से सुरक्षित रखने में सक्षम हो सकेंगी।
भारत में ई-कॉमर्स का बाजार 137 अरब डॉलर रहने का अनुमान है। देश के ई-कॉमर्स बाजार के 2025 और 2030 के बीच 20 प्रतिशत चक्रवृद्धि दर से भी अधिक तेजी से अपना आकार बढ़ाने का अनुमान है। बीआईएस ने स्व-संचालन के लिए मसौदा दिशानिर्देश तैयार करते वक्त इस वृद्धि दर को ध्यान में रखा है। बीआईएस ने इस प्रक्रिया में उपभोक्ता सुरक्षा एवं विश्वास की राह में पैदा होने वाली चुनौतियों का हवाला दिया है। इस मसौदे में तीन चरणों वाला दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। इनमें प्री-ट्रांजैक्शन अनुबंध से संबंधित जानकारी और पोस्ट ट्रांजैक्शन चरण शामिल किए गए हैं। प्रत्येक चरण में ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए वृहद अनुपालन प्रक्रियाओं का पालन करना जरूरी होगा। इनमें कारोबारी साझेदार या विक्रेताओं से संबंधित जानकारियों (केवाईसी) की जांच करने, उत्पाद सूचीबद्धता, विक्रेता के संपर्क सूत्र की जानकारी, सभी हितधारकों के लिए कारोबार के समान अवसर सुनिश्चित करना आदि शामिल हैं। जिन कदमों के प्रस्ताव दिए गए हैं उनमें मदद या निर्देश के लिए सीधे संवाद की सुविधा बड़ी संख्या में ग्राहकों के लिए फायदेमंद होंगे। मगर उत्पादों के लेबल पर कार्बन उत्सर्जन से जुड़ी जानकारियां और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के नाम का जिक्र करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
वैसे देश में ई-कॉमर्स बाजार अब भी खुदरा क्षेत्र के मात्र एक छोटे हिस्से के बराबर है। पिछले साल देश में खुदरा क्षेत्र 950 अरब डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया था। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि देश में ई-कॉमर्स क्षेत्र के लिए कारोबार करने की अपार संभावनाएं हैं, खासकर इंटरनेट और स्मार्टफोन की बढ़ती पहुंच से इस क्षेत्र के लिए उम्मीदें प्रबल हो गई हैं। ई-कॉमर्स क्षेत्र में नियामकीय हस्तक्षेप नरम होना चाहिए ताकि इसमें कारोबार करने वाली इकाइयों को अनुपालन से जुड़े अधिक झमलों में नहीं फंसना पड़े। इन कारोबारों में ज्यादातर स्टार्टअप इकाइयां हैं। खुदरा क्षेत्र में उपभोक्ताओं के हित सुरक्षित रखने के लिए सरकार और हितधारकों दोनों को साथ मिलकर काम करना चाहिए। इससे फिजिकल स्टोर और ई-कॉमर्स दोनों मंचों पर उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने, उत्पाद एवं रकम लौटाने की नीति और भुगतान से जुड़े मुद्दों से बेहतर ढंग से निपटने में आसानी होगी। नियमों के उल्लंघन पर किसी तरह की राहत एवं रियायत दिए बिना ये उपाय लागू करने के लिए एक केंद्रीय नियामकीय संस्था का गठन होना चाहिए। इस संस्था के पास नियमों का उल्लंघन करने वाली इकाइयों को दंडित करने का अधिकार होना चाहिए। विभिन्न मंत्रालयों एवं सरकारी विभागों द्वारा तैयार किए गए कानूनों से कारोबारी प्रक्रियाओं को लेकर उलझन और बढ़ जाएगी। नतीजा यह होगा कि अनुपालन लागत बढ़ने के साथ एक ऐसे क्षेत्र का विकास प्रभावित होगा जिसमें व्यापक संभावनाएं दिख रही हैं।