प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस में आयोजित वैश्विक आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) एक्शन समिट में जो बातें कहीं उनसे संकेत मिलता है कि देश के नीति निर्माता एआई पर सही दिशा में विचार कर रहे हैं। उन्होंने रोजगार को नुकसान पहुंचने के खतरे को सबसे बड़ी चिंता बताया। साथ ही उन्होंने साइबर सुरक्षा, गलत सूचनाओं के प्रसार और डीपफेक की चिंता भी सबके सामने रखीं। जैसा उन्होंने कहा, एआई वाले भविष्य को देखते हुए हमें अपनी आबादी को नए सिरे से कौशल संपन्न बनाने की आवश्यकता है।
मोदी ने पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा के नए स्रोत विकसित करने की जरूरत पर भी जोर दिया क्योंकि नई तकनीकों के साथ स्वच्छ, स्थिर ऊर्जा की मांग बढ़ जाएगी। उन्होंने संकेत दिया कि भारत का एआई मिशन एआई संसाधनों के लिए निजी-सार्वजनिक साझेदारी तैयार करेगा। इसमें सरकार हार्डवेयर कंप्यूट तथा शुरुआती शोध एवं विकास पर निवेश करेगी। उसका इस्तेमाल कर निजी क्षेत्र वाणिज्यिक ऐप्लिकेशन तैयार कर सकता है।
भारत में तकनीकी तौर पर माहिर लोगों की भरमार है, जिसके कारण यह दुनिया का सबसे अधिक एआई प्रतिभाओं वाला देश है। देश की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा तरह-तरह की स्थानीय भाषाएं बोलता है, जिसकी वजह से यहां शोध की जबरदस्त गुंजाइश बन जाती है। सरकार बड़े भाषाई मॉडल तैयार करने पर निवेश कर रही है, जो शायद डीपसीक की तर्ज पर किफायती ऐप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस के साथ ओपन सोर्स हों। भारत को एआई के सबसे बड़े बाजारों में से एक माना गया है।
पिछले दिनों भारत आए ओपनएआई के सैम ऑल्टमैन ने कहा कि भारत चैटजीपीटी का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है और इसमें चकित होने वाली कोई बात नहीं है क्योंकि देश में मोबाइल ब्रॉडबैंड इस्तेमाल करने वालों की सबसे बड़ी तादाद है, स्टार्टअप तेजी से बढ़ रहे हैं और डिजिटल भुगतान प्रणाली से जानकारी यानी डेटा का बड़ा भंडार तैयार हो रहा है। एआई से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं को हकीकत में बदलने के लिए फुर्ती दिखानी होगी। एआई की तस्वीर तेजी से बदल रही है क्योंकि ओपन सोर्स पैठ बना रहा है और नए ऐप्लिकेशन तैयार हो रहे हैं। उदाहरण के लिए चैटजीपीटी को इस उम्मीद के साथ पेश किया गया था कि बड़े प्रोपराइटरी मॉडल तैयार करने के लिए भारी निवेश की जरूरत होगी। क्लाउड, जेमिनाई, लामा और ग्रॉक भी यही सोचकर उतारे गए थे। परंतु डीपसीक ने खेल ही पलट दिया।
कंप्यूटिंग क्षमता के विकास पर सरकार के इरादे और डेटा केंद्रों के विस्तार को बढ़ावा देने पर उसका जोर सही दिशा में हैं। किंतु उसे जरूरत के मुताबिक बदलने के लिए तैयार रहना होगा। भारत को ऐसी तकनीक या हार्डवेयर में फंसकर नहीं रह जाना चाहिए, जो तेज बदलावों के दौर में आए नएपन के कारण पिछड़ जाएं। मोदी ने कहा कि नीति निर्माताओं को ऐसे मॉडलों पर नजर रखनी चाहिए, जो पूर्वग्रह के साथ काम करते हैं। एआई उपलब्ध जानकारी के आधार पर मॉडल तैयार करता है और पहले से मौजूद पूर्वग्रह उसमें भी झलकते हैं।
कॉकेशन तस्वीरों के हिसाब से तैयार किए गए फेस रिकग्निशन यानी चेहरा पहचानने वाले प्रोग्राम एशियाई चेहरों को ठीक से नहीं पहचान पाते हैं। इसी तरह डेटा में यदि स्त्री-पुरुष, नस्ल या जाति के आधार पर भेदभाव करने वाला कोई पूर्वग्रह है तो वह मॉडल में भी नजर आएगा। यूं तो यह समस्या दुनिया भर में है मगर भारत में असमानता इतनी ज्यादा है कि यहां समस्या बहुत गंभीर हो जाएगी। अगर एआई को भारतीयों के लिए ठीक से काम करना है तो इन पूर्वग्रहों को दूर करना जरूरी होगा।
एआई नई क्षमताएं विकसित कर रहा है, इसलिए नीति निर्माताओं को संबंधित कानूनों में बदलाव के लिए भी सक्रियता दिखानी होगी। नई अप्रत्याशित समस्याएं सामने आ सकती हैं, जिनके लिए कानूनों को आनन-फानन में बदलना पड़ सकता है। कानून प्रवर्तन और रक्षा क्षेत्र में एआई का इस्तेमाल भी चिंता का विषय है। एआई का इस्तेमाल दमन के औजार के रूप में भी हो सकता है क्योंकि इसकी मदद से निगरानी का दायरा बहुत बढ़ जाता है।
रक्षा क्षेत्र में यह बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है क्योंकि इससे कोई भी काम करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी। लेकिन बिना सोचे-समझे इस्तेमाल हुआ तो यह बहुत विध्वंसक भी बन सकता है। एआई के दौर में सुशासन को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इसे दमन के औजार के रूप में नहीं इस्तेमाल किया जाए। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीतियों के जरिये शर्त बनानी होंगी, जिनसे एआई का इस्तेमाल दक्षता बढ़ाने और विकास करने में ही हो।
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