भारत का वस्तु निर्यात मुश्किल दौर से गुजर रहा है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक मई में लगातार चौथे महीने निर्यात में गिरावट आई और यह 34.98 अरब डॉलर रह गया। ठीक एक वर्ष पहले निर्यात का आंकड़ा 39 अरब डॉलर था।
यद्यपि आयात में भी गिरावट आई है लेकिन व्यापार घाटा 22.12 अरब डॉलर के साथ पांच महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। क्रमिक आधार पर देखें तो निर्यात में 0.7 फीसदी का मामूली इजाफा हुआ जबकि आयात में 14 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
आंकड़ों को अलग-अलग करके देखा जाए तो पता चलता है कि 30 प्रमुख क्षेत्रों में से 17 में निर्यात कम हुआ। इनमें पेट्रोलियम उत्पाद, रत्न एवं आभूषण तथा इंजीनियरिंग वस्तुएं शामिल हैं। सकारात्मक पहलू को देखें तो इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात का बेहतर प्रदर्शन जारी है और उसमें 70 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।
चूंकि जिंस कीमतों में गिरावट आई है और भारत के सेवा व्यापार में पर्याप्त अधिशेष है इसलिए चालू खाते का घाटा प्रबंधन योग्य स्तर पर रहने की उम्मीद है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने हाल ही में कहा कि चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद के दो फीसदी के दायरे में रहने की उम्मीद है।
बहरहाल, भुगतान संतुलन के मोर्चे पर मिली राहत के कारण हमारा ध्यान वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात की चुनौतियों से नहीं हटना चाहिए।
अल्पावधि में वैश्विक अर्थव्यवस्था में कमजोरी से तमाम निर्यात प्रभावित होंगे। इस माह के आरंभ में जारी आर्थिक सहयोग एवं विकास संस्थान (ओईसीडी) के अनुमानों के मुताबिक वैश्विक आर्थिक वृद्धि जो 2022 में 3.3 फीसदी थी उसके 2023 में 2.7 फीसदी रह जाने की उम्मीद है। अमेरिका में वृद्धि दर के 2023 में 1.6 फीसदी से कम होकर 2024 में एक फीसदी रह जाने का अनुमान है।
ओईसीडी में मुद्रास्फीति की दर के 2022 के 9.4 फीसदी से घटकर 2023 में 6.6 फीसदी रह जाने का अनुमान है। सख्त मौद्रिक नीति संबंधी कदम और वैश्विक जिंस कीमतों में कमी ने मुद्रास्फीति की दर को कम किया है लेकिन यह अभी भी मध्यम अवधि के लक्ष्य से काफी अधिक है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं की वित्तीय स्थिति के निकट भविष्य में सीमित बने रहने की उम्मीद है जो वैश्विक उत्पादन और फंड प्रवाह दोनों के लिए नकारात्मक रहेगी।
उदाहरण के लिए यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने गत सप्ताह ब्याज दरों में चौथाई प्रतिशत का इजाफा किया जिससे संकेत मिलता है कि वह तब तक दरों में इजाफा जारी रखेगा जब तक मुद्रास्फीति संबंधी परिदृश्य में सुधार नहीं नजर आता।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने जहां लगातार 10 बार दरों में इजाफा करने के बाद बढ़ोतरी रोकी, वहीं आने वाले महीनों में वह फेडरल फंड दरों में एक बार फिर इजाफे के लिए तैयार है। ताजा अनुमान बताते हैं कि दो और अवसरों पर दरों में इजाफा किया जा सकता है जो नीतिगत ब्याज दरों को बीते दो दशकों में उच्चतम स्तर पर ले जाएगा। वित्तीय हालात में निरंतर सख्ती मांग को प्रभावित करेगी।
भारत सरकार की बात करें तो वह अपनी निवेश प्रोत्साहन एजेंसी और कूटनीतिक मिशन के जरिये उन 40 देशों पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां भारत का 85 फीसदी निर्यात होता है।
नीतिगत मोर्चे पर सरकार निर्यात प्रोत्साहन और आयात प्रतिस्थापन की दोहरी नीति पर काम कर रही है। बहरहाल, अभी यह देखना होगा कि यह रणनीति मौजूदा वैश्विक आर्थिक और व्यापारिक माहौल में काम करती है या नहीं, खासकर यह देखते हुए कि भारत बड़े व्यापारिक समझौतों से दूर है।
इसके अलावा जैसा कि इस समाचार पत्र में प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया कि निर्यात में पेट्रोलियम उत्पादों का दबदबा है। मोबाइल फोन 2022-23 में शीर्ष पांच में शुमार हुए। भारत को मोबाइल फोन समेत व्यापक क्षेत्रों में सफलता की जरूरत है। प्रतिकूल हालात के बीच विनिर्माण निर्यात में सार्थक इजाफा न केवल बाहरी मोर्चों पर दीर्घकालिक स्थिरता देगा बल्कि देश की बढ़ती श्रम शक्ति के लिए जरूरी रोजगार भी तैयार करेगा।