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Editorial: RBI ने जारी किया मौद्रिक नीति ढांचे पर चर्चा पत्र: 4% महंगाई लक्ष्य कायम रखने पर जोर

RBI की विश्वसनीयता मजबूत हुई है। परिवारों की मुद्रास्फीति संबंधी अपेक्षाओं की बात करें तो कोविड महामारी के दौर में उसमें इजाफा हुआ था लेकिन उसके बाद से इसमें नरमी देखी गई

Last Updated- August 24, 2025 | 10:56 PM IST
RBI

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक नीति ढांचे को लेकर एक चर्चा पत्र जारी किया है। मुद्रास्फीति को लक्षित करने की लचीली व्यवस्था की दूसरी समीक्षा मार्च 2026 में होनी है। ऐसे में केंद्रीय बैंक ने चर्चा के द्वार खोल दिए हैं। यह चर्चा पत्र स्पष्ट करता है कि मौजूदा ढांचा जो मुद्रास्फीति के लिए 4 फीसदी का लक्ष्य (2 फीसदी कम या ज्यादा) का लक्ष्य लेकर चलता है उसने 2016 में अपनाए जाने के बाद से ही अर्थव्यवस्था की बेहतर मदद की है। मुद्रास्फीति का रुझान इस लक्ष्य के आसपास ही रहा है। अत्यधिक अस्थिरता के समय जरूर कुछ समस्या आई है।

बहरहाल इससे केंद्रीय बैंक की विश्वसनीयता मजबूत हुई है। परिवारों की मुद्रास्फीति संबंधी अपेक्षाओं की बात करें तो कोविड महामारी के दौर में उसमें इजाफा हुआ था लेकिन उसके बाद से इसमें नरमी देखी गई है। इसके बावजूद चूंकि केंद्र सरकार को रिजर्व बैंक के मशविरे से हर पांच साल में इसकी समीक्षा करनी होती है इसलिए इस पर व्यापक चर्चा शुरू करके अच्छा किया गया है। यह चर्चा पत्र सार्वजनिक फीडबैक के लिए चार अहम प्रश्न सामने रखता है।

पहला, क्या समग्र या मुख्य मुद्रास्फीति के आधार पर मौद्रिक नीति निर्धारित होनी चाहिए? दूसरा, क्या 4 फीसदी का लक्ष्य उचित है? तीसरा, क्या दो फीसदी का दायरा उपयुक्त है? आखिर में क्या इस ढांचे को एक तयशुदा लक्ष्य पर केंद्रित रहना चाहिए या अधिक लचीले दायरे को चुनना चाहिए? विश्वसनीयता के साथ अनुकूलन का संतुलन कायम करने की दृष्टि से ये प्रश्न बुनियादी हैं।

पहले प्रश्न पर चर्चा पत्र में मजबूत तर्क दिया गया है। भारत जैसे देश में खाद्य मुद्रास्फीति की अनदेखी करना लाखों लोगों के कल्याण की अनदेखी करना होगा जिनके लिए खाद्य व्यय पारिवारिक बजट का अहम हिस्सा है। कोर यानी मुख्य मुद्रास्फीति कम उतार-चढ़ाव वाली हो सकती है लेकिन हेडलाइन यानी समग्र मुद्रास्फीति जीवन जीने के लिए जरूरी व्यय को सही ढंग से सामने रखती है।

इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश देशों में हेडलाइन मुद्रास्फीति को लक्ष्य मानक के रूप में प्राथमिकता दी जाती है, चाहे आय स्तर या विकास की अवस्था कुछ भी हो। मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण वाले देशों में युगांडा एकमात्र अपवाद है। भारत के लिए भी समग्र मुद्रास्फीति को ही आधार बनाना चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की समय-समय पर समीक्षा की जाए ताकि यह घरेलू उपभोग को बेहतर ढंग से दर्शा सके। जहां तक 4 फीसदी मुद्रास्फीति लक्ष्य की बात है, यह याद रखना चाहिए कि इसे गहन विचार-विमर्श के बाद चुना गया था। इस लक्ष्य को बढ़ाने से बाज़ारों में मूल्य अनुशासन के कमजोर होने का संकेत जा सकता है। हाल के वर्षों में किसी भी प्रमुख केंद्रीय बैंक ने अपने मुद्रास्फीति लक्ष्य को नहीं बढ़ाया है।

साथ ही, अनुभवजन्य साक्ष्य भी 4 फीसदी लक्ष्य का समर्थन करते हैं। इसलिए, इस लक्ष्य को लंबे समय तक बनाए रखना और विश्वसनीयता स्थापित करना समझदारी होगी, उसके बाद ही किसी बदलाव की संभावना पर विचार किया जाना चाहिए। 2 फीसदी के दायरे के तीसरे प्रश्न की बात करें तो इसने जरूरी लचीलापन मुहैया कराया है। खासतौर पर आपूर्ति क्षेत्र के झटकों की अवधि के दौरान- मसलन यूक्रेन युद्ध। ऊपरी सिरा भी मुद्रास्फीति की सीमा से तय होता है जिसके परे जाने पर यह वृद्धि के लिए नुकसानदेह साबित होने लगता है। कई अर्थव्यवस्थाओं ने समय के साथ इस दायरे को कम कर दिया। हालांकि भारत की बात करें तो खाद्य कीमतों में उतार चढ़ाव को देखते हुए यह आवश्यक है कि फिलहाल इस दायरे को बरकरार रखा जाए।

आखिर में, क्या इस लक्ष्य की जगह कोई दायरा तय कर देना चाहिए? ऐसा करने से रिजर्व बैंक को और अधिक सुविधा होगी। परंतु जोखिम यह भी है कि इससे रिजर्व बैंक के कदमों का परिणाम धीमा हो जाएगा और अपेक्षाएं प्रभावित होंगी। एक ऐसे देश के लिए जहां मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को हाल ही में स्थिर किया गया है, विश्वसनीयता बनाए रखने का सबसे अच्छा तरीका है एक निश्चित लक्ष्य रखना, जिसमें एक सीमांत दायरा अप्रत्याशित झटकों के लिए व्यावहारिक गुंजाइश प्रदान करता है। पिछले दशक का अनुभव दिखाता है कि मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण की नीति भारत के लिए लाभकारी रही है, और जब तक कोई ठोस अनुभवजन्य साक्ष्य बदलाव की आवश्यकता को सिद्ध न करे, तब तक मौजूदा ढांचे को जारी रखना उपयुक्त होगा।

First Published - August 24, 2025 | 10:56 PM IST

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