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Editorial: स्वस्थ उम्रदराज जनसंख्या के लाभ!

अध्ययन बताता है कि 2022 में 70 वर्ष के व्यक्ति में औसतन उतनी ही संज्ञानात्मक क्षमता थी जितनी कि 2000 में 53 वर्ष के व्यक्ति में रहती थी।

Last Updated- April 29, 2025 | 10:15 PM IST
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प्रतीकात्मक तस्वीर

अक्सर उम्रदराज होते समाजों को धीमी वृद्धि और बढ़ते राजकोषीय दबाव के साथ जोड़ा जाता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के ताजा विश्व आर्थिक दृष्टिकोण (डब्ल्यूईओ) को देखें तो एक ऐसा नज़रिया सामने आता है जो स्वस्थ ढंग से उम्रदराज होती जनसंख्या के संभावित आर्थिक लाभांशों को सामने लाता है। वैश्विक स्तर पर बढ़ती उम्र के लोगों के साथ एक ऐसा कथानक जुड़ा हुआ है जो बढ़ती स्वास्थ्य सेवा कीमतों और पेंशन देनदारियों से संबंधित राजकोषीय निहितार्थों के इर्दगिर्द घूमता है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है।

डब्ल्यूईओ के अनुमानों में उल्लिखित अध्ययन बताता है कि 2025 से 2050 के बीच देश के सकल घरेलू उत्पाद में होने वाली वृद्धि में उम्रदराज लोगों के कारण 0.7 फीसदी की कमी हो सकती है। सदी के उत्तरार्द्ध में जैसे-जैसे भारत जनांकिकी परिवर्तन बिंदु को पार करेगा, यह गिरावट बढ़ेगी। बहरहाल, स्वस्थ ढंग से उम्रदराज होने में एक उम्मीद की किरण भी छिपी है। अध्ययन बताता है कि हाल के वर्षों में बुजुर्ग होने वाले लोग अपने पुराने समकक्षों की तुलना में शारीरिक रूप से मजबूत और संज्ञानात्मक रूप से बेहतर हैं। उभरती बाजार अर्थव्यवस्था वाले देशों समेत 41 देशों में किया गया अध्ययन बताता है कि 2022 में 70 वर्ष के व्यक्ति में औसतन उतनी ही संज्ञानात्मक क्षमता थी जितनी कि 2000 में 53 वर्ष के व्यक्ति में रहती थी।

यह सकारात्मक रुझान काम करने की अवधि बढ़ा सकता है, उत्पादकता में इजाफा कर सकता है और इस प्रकार आर्थिक वृद्धि में योगदान कर सकता है। वास्तव में कुछ विपरीत तथ्यात्मक आकलन से तो यह पता चलता है कि आबादी के बेहतर ढंग से उम्रदराज होने के कारण श्रम की आपूर्ति और मानव संसाधन में जो सुधार होगा वह 2050 तक वैश्विक जीडीपी में सालाना 0.4 फीसदी का योगदान कर सकता है। भारत में यह सालाना उत्पादन में 0.6 फीसदी की वृद्धि कर सकता है जिससे उम्रदराज होने का असर काफी हद तक सीमित हो सकेगा।

इस बीच अमीर देशों में लंबी आयु प्रदान करने से संबंधित क्लीनिक एक सांस्कृतिक बदलाव को रेखांकित कर रहे हैं। अब उम्रदराज होने की प्रक्रिया को उलटने की कोशिशें तेज हो रही हैं। सिलिकन वैली के कई अधिकारी और स्वास्थ्य को लेकर काम करने वाले इन्फ्लुएंसर लोगों के लिए व्यक्तिगत रूप से विकसित स्वास्थ्य मानकों, प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन में निवेश और सेल्युलर रिप्रोग्रामिंग की वकालत कर रहे हैं। ये रुझान विवादास्पद हैं लेकिन ये सक्रिय स्वास्थ्य प्रबंधन को लेकर लोगों की बढ़ती भूख को दर्शाते हैं।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश, उम्रदराज कर्मियों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाना, लैंगिक भेद को कम करना और तकनीक की मदद लेना जनांकिकी संबंधी बदलाव में प्रभावी ढंग से मददगार साबित हो सकता है। 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की श्रम शक्ति भागीदारी बढ़ाने पर भी विचार किया जा सकता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत को श्रम शक्ति भागीदारी में लैंगिक अंतर को पाटना चाहिए। यह सही है कि देश की श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी की दर 2017-18 के 23.2 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 41.7 फीसदी हो गई। इसके बावजूद यह पुरुषों की 77.2 फीसदी की श्रम भागीदारी दर से काफी कम है। यह 50 फीसदी की वैश्विक महिला भागीदारी से भी कम है। पेंशन सुधारों की भी उम्रदराज होती आबादी की मदद में अहम भूमिका है।

न्यू पेंशन सिस्टम को अपनाना हाल के दशकों में देश के सबसे बड़े सुधारों में से एक है। हालांकि, कुछ राज्यों ने दोबारा पुरानी पेंशन योजना को अपनाया है जिसका प्रबंधन समय के साथ मुश्किल हो सकता है। तकनीक, खासतौर पर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाव बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती है। उदाहरण के लिए अध्ययन में भारत के एक निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता का उल्लेख है जिसने एआई आधारित टूल की मदद से लाखों लोगों के रेटिना की जांच की है जिससे कि डायबिटिक रेटिनोपैथी का पता लगाया जा सके। ऐसे नवाचारों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य रणनीतियों में शामिल किया जाना चाहिए। ग्रामीण इलाकों में ऐसा करने की खास आवश्यकता है जहां स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं।

First Published - April 29, 2025 | 10:11 PM IST

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