जून माह की हेडलाइन मुद्रास्फीति दर 5.08 फीसदी के साथ चार माह के उच्चतम स्तर पर है जबकि उससे पिछले माह यह 4.8 फीसदी के स्तर पर थी। यह दर रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के मुद्रास्फीति लक्ष्य से काफी अधिक है। बहरहाल, बाजार में एक नजरिया यह भी है कि चूंकि कोर मुद्रास्फीति की दर, जिसमें खाद्य और ईंधन आदि पदार्थ शामिल नहीं होते हैं, वह करीब तीन फीसदी पर है इसलिए मौद्रिक नीति समिति नीतिगत रीपो दर में कमी करने पर विचार कर सकती है।
हेडलाइन दर प्राथमिक तौर पर खाद्य कीमतों से संचालित होती है। मोटे तौर पर यह आपूर्ति क्षेत्र से प्रभावित होती है और मौद्रिक नीति का ऐसी परिस्थितियों पर बहुत सीमित असर होता है। जून में खाद्य मुद्रास्फीति की दर 9 फीसदी से अधिक थी। मौद्रिक नीति समिति के हड़बड़ी नहीं करने की ठोस वजह मौजूद हैं लेकिन नए शोध नीतिगत दर के मसले पर समिति के बहुमत के रुख को मजबूती देते हैं।
रिजर्व बैंक के ताजा मासिक बुलेटिन में प्रकाशित एक शोध आलेख, हालांकि यह केंद्रीय बैंक की आधिकारिक स्थिति को नहीं दर्शाता है, दिखाता है कि 2023-24 में चौथी तिमाही के लिए ब्याज की स्वाभाविक दर 1.4-1.9 फीसदी के बीच रही। उल्लेखनीय है कि ताजा अनुमान 0.8 से एक फीसदी के पिछले अनुमान से काफी बेहतर है। उक्त अनुमान 2021-22 की तीसरी तिमाही के लिए लगाया गया था।
स्वाभाविक दर से तात्पर्य ब्याज की ऐसी दर से होता है जहां बचत स्थिर कीमतों के अनुरूप निवेश के बराबर हो। मौद्रिक नीति के लिहाज से देखें तो वास्तविक नीतिगत दर और स्वाभाविक ब्याज दर के बीच का अंतर नीति का रुख दर्शाता है या फिर वह यह दिखाता है कि नीति का रुख प्रतिबंधात्मक है या समायोजन वाला।
अगर वास्तविक नीतिगत दर स्वाभाविक दर से अधिक है तो मौद्रिक नीति प्रतिबंधात्मक है। इसका विपरीत भी सही है। शोध आलेख में यह भी कहा गया है कि देश में ब्याज की स्वाभाविक दर में महामारी के बाद की अवधि में सुधार देखने को मिला है। ऐसा मोटे तौर पर संभावित उत्पादन में मजबूत वृद्धि के कारण हुआ है।
चूंकि एमपीसी का अनुमान है कि चालू वर्ष में हेडलाइन मुद्रास्फीति की औसत दर 4.5 फीसदी रहेगी इसलिए 6.5 फीसदी की नीतिगत रीपो दर को निरपेक्ष माना जा सकता है क्योंकि यह स्वाभाविक ब्याज दर के ऊपरी स्तर के करीब है। निचले स्तर पर भी नीतिगत दर को 50 आधार अंक तक ही कम किया जा सकता है। बहरहाल, यह बात उल्लेखनीय है कि मौजूदा ढांचागत बदलावों के कारण देश में स्वाभाविक ब्याज दर का अनुमान लगाना आसान नहीं है। ऐसे में मौद्रिक नीति समिति के लिए ऊपरी सिरे पर विचार करना बेहतर होगा। ऐसा इसलिए भी क्योंकि स्वाभाविक दर बढ़ रही है।
देश की अर्थव्यवस्था की निवेश संबंधी जरूरतों को देखते हुए भारत को उच्च बचत की आवश्यकता है जो अधिक नीतिगत समायोजन से प्रभावित हो सकती है। यह बात भी रेखांकित करने लायक है कि बैंकों को जमा की तुलना में उच्च ऋण वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में उन्हें बाजार से फंड जुटाने पर विवश होना पड़ रहा है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गत सप्ताह सही उल्लेख किया कि इससे बैंकिंग व्यवस्था ढांचागत तरलता की दिक्कतों की शिकार हो सकती है। नीतिगत दर में समय से पहले कमी से यह प्रवृत्ति बढ़ सकती है। इन तमाम मुद्दों पर विचार करते हुए यह समझदारी भरा प्रतीत होता है कि मौद्रिक नीति समिति मुद्रास्फीति की दर को सहजता से चार फीसदी के लक्ष्य के करीब स्थिर होने दे।
चूंकि भारत मजबूती से वृद्धि हासिल कर रहा है और शोध दिखाते हैं कि हमारी क्षमताओं में सुधार है, तो यह रिजर्व बैंक को जरूरी नीतिगत गुंजाइश प्रदान करता है ताकि वह मुद्रास्फीति प्रबंधन पर ध्यान दे सके।