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Editorial: इन्वेंटरी आधारित ईकॉमर्स में एफडीआई को मिले इजाजत

ईकॉमर्स केवल बाजार नहीं है बल्कि एकीकृत आपूर्ति श्रृंखला है जिससे विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स और निर्यात सभी जुड़े होते हैं

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- November 04, 2025 | 10:43 PM IST

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने कथित तौर पर विभिन्न विभागों के बीच एक प्रस्ताव वितरित किया है। यह प्रस्ताव इन्वेंटरी आधारित ई-कॉमर्स में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से संबंधित है। हालांकि यह अनुमति केवल निर्यात संबंधी कामों के लिए होगी। यह एक तरह से इस बात को भी स्वीकार करना है कि ई-कॉमर्स केवल बाजार नहीं है बल्कि यह एकीकृत आपूर्ति श्रृंखला है जिससे विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स और निर्यात सभी जुड़े होते हैं। इसके बावजूद इस रियायत को केवल निर्यात तक सीमित रखकर सरकार घरेलू और वैश्विक खुदरा कारोबार के बीच कृत्रिम अंतर कायम करने का जोखिम ले रही है।

मौजूदा ढांचे में मार्केटप्लेस मॉडल में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत है। यहां ई-कॉमर्स कंपनियां सिर्फ बिचौलिए की भूमिका में होती हैं और खरीदारों एवं विक्रेताओं को एक साथ लाती हैं। इन्वेंटरी आधारित मॉडल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर रोक बनी हुई है, जहां प्लेटफॉर्म उत्पादों का स्वामित्व रखते हैं और उन्हें सीधे उपभोक्ताओं को बेचते हैं।

कहा जाता है कि यह अंतर इसलिए रखा गया ताकि विदेशी फंडिंग वाले प्लेटफॉर्म्स को भारी भरकम छूट देने और कीमतें आक्रामक रूप से कम रखने से रोका जा सके क्योंकि इससे छोटे कारोबारियों को नुकसान पहुंच सकता है। देश के डिजिटल कॉमर्स के शुरुआती दिनों में इसका तुक समझा जा सकता था लेकिन तब से अब तक बाजार में परिपक्वता आ चुकी है।

देश में ई-कॉमर्स क्षेत्र अब बड़ा, विविधता भरा और प्रतिस्पर्धी हो चला है। ऐसे में इन्वेंटरी आधारित ई-कॉमर्स में घरेलू बाजारों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रतिबंधित करना अप्रासंगिक हो चला है। इन्वेटरी का स्वामित्व किसके पास है, इसके बजाय इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि बाजार किस तरह काम करता है।

उचित प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने वाले नियम, पारदर्शी मूल्य निर्धारण और विक्रेताओं के लिए गैर भेदभावकारी पहुंच जहां शक्ति का केंद्रीकरण रोक सकते हैं, वहीं यह जरूरी पूंजी और तकनीक जुटाने में भी मददगार हो सकते हैं। इन्वेंटरी आधारित ई-कॉमर्स में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी से कई लाभ हो सकते हैं। इससे गोदामों, शीत गृहों, लॉजिस्टिक्स, पैकेजिंग और गुणवत्ता नियंत्रण आदि के क्षेत्रों में निवेश लाया जा सकता है। ये क्षेत्र देश की खुदरा श्रृंखला में कमजोर कड़ी रहे हैं।

इससे किसानों, ​शिल्पकारों और अन्य छोटे व मझोले उपक्रमों को भारतीय और वैश्विक ग्राहकों से बेहतर तरीके से जोड़ने में मदद मिलेगी। इससे उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है, रोजगार तैयार हो सकते हैं, और औपचारिकीकरण की दिशा में बढ़ने में मदद मिल सकती है। उपभोक्ताओं के लिए इसका अर्थ होगा बेहतर विकल्प, विश्वसनीयता और सेवा। इस प्रकार के सुधार सीधे तौर पर विदेश व्यापार नीति 2023 के उद्देश्यों का समर्थन करते हैं जो देश की ई-कॉमर्स निर्यात क्षमता को वर्ष 2030 तक 200-300 अरब डॉलर की सीमा में लाने का लक्ष्य रखती है। यह ई-कॉमर्स निर्यात केंद्रों को गैर-पारंपरिक निर्यात के वाहक के रूप में विकसित करने की परिकल्पना करती है।

निश्चित तौर पर छोटे कारोबारियों की चिंताओं को खारिज नहीं किया जाना चाहिए। परंतु उन्हें बचाने का यह अर्थ नहीं है कि प्रगति को स्थायी रूप से बाधित कर दिया जाए। मार्केटप्लेस मॉडल का अनुभव बताता है कि मजबूत निगरानी, ​​विक्रेताओं के साथ उचित व्यवहार, अनुपालन का ऑडिट प्रमाणन और मूल्य हेरफेर पर प्रतिबंध, समान अवसर सुनिश्चित कर सकते हैं। ऐसा करके एक समान प्रतिस्पर्धी वातावरण बनाया जा सकता है।

ऐसी व्यवस्था को इन्वेंटरी आधारित संचालन पर लागू करना, मौजूदा निवेश प्रतिबंधों को बनाए रखने की तुलना में कहीं अधिक रचनात्मक होगा। भारत अब उस स्तर तक पहुंच चुका है जहां उसे अपनी नियामक क्षमता और उद्यमशीलता पर भरोसा करना चाहिए। इन्वेंटरी आधारित ई-कॉमर्स को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोलकर सरकार खुदरा क्षेत्र को बेहतर बना सकती है।

ऐसे में सरकार को मल्टीब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर अपने रुख पर दोबारा विचार करना चाहिए। भौतिक और ऑनलाइन खुदरा, दोनों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोलने से बड़े पैमाने पर निवेश आ सकता है, इस क्षेत्र की दक्षता में सुधार हो सकता है और रोजगार के नए अवसर बन सकते हैं। इससे उपभोक्ताओं को ही लाभ होगा।

First Published : November 4, 2025 | 10:27 PM IST