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किसी भी देश की लंबे समय तक चलने वाली समृद्धि और मजबूती का रहस्य क्या है, इसके बारे में नोबेल अर्थशास्त्र पुरस्कार समिति लगातार बताती रही है। जोएल मोकिर, फिलिप एगियों और पीटर हॉविट को यह बताने के लिए पुरस्कृत किया गया कि कैसे संस्कृति, संस्थान और ‘रचनात्मक विध्वंस’ यानी, पुराने और कम कुशल तरीकों को नए और बेहतर विचारों से लगातार बदलना, हमेशा नए आविष्कारों को उत्पादकता में बदलते रहते हैं।
यदि इन पुरस्कारों को एक साथ देखा जाए तो ये एक नीतिगत पुस्तिका प्रतीत होते हैं। देश तभी समृद्ध और मजबूत बनते हैं जब वे ऐसी संस्थाएं बनाते हैं जो नए-नए विचारों का सृजन करें और उन्हें तेजी से बड़े पैमाने पर लागू करें साथ ही साथ अपने प्राकृतिक संसाधनों को भी संरक्षित रखें।
अगर इस संदर्भ में भारतीय संस्करण की बात करें तो यह ‘ग्रीन फ्रंटियर’ यानी टिकाऊ आर्थिक विकास मॉडल हो सकता है जिसका लक्ष्य ऐसी वृद्धि करना जो वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बनाए रखने के साथ-साथ स्थिरता को भी साथ लेकर चले। भारत के लिए, इसका मतलब है कि हमें तकनीकी संस्थाओं का निर्माण करने की आवश्यकता है जो स्थायी समृद्धि के इंजन बनें। देशों ने कॉरपोरेट अनुसंधान प्रयोगशालाओं को एक प्रमुख चालक के रूप में रखते हुए शक्तिशाली नवाचार तंत्र का निर्माण कर इसे हासिल किया है।
इन कॉरपोरेट प्रयोगशालाओं को धैर्य के साथ टिकी रहने वाली पूंजी के साथ बनाए रखा गया है और उनके नवाचारों को तेजी से बढ़ाया गया है। इस लिहाज से बेल लैब्स एक मानक बनी हुई है क्योंकि इसने मौलिक सिद्धांतों को इंजीनियरिंग के साथ जोड़ा और इसके नतीजे अर्थव्यवस्था में दिखे। बेल लैब्स के आविष्कारों में ट्रांजिस्टर, सूचना सिद्धांत, लेजर, सीसीडी (चार्ज कपल्ड डिवाइस), यूनिक्स और सी शामिल हैं, जिसने 10 नोबेल और पांच ट्यूरिंग पुरस्कार हासिल किए। गौर करने वाली बात यह है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) की तकनीकी सफलता गूगल की एआई अनुसंधान प्रयोगशाला, गूगल ब्रेन के आठ शोधकर्ताओं द्वारा लिखे गए एक ही शोध पत्र से मिली थी।
जर्मनी के फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट सरकारी अनुदान और अनुबंध राजस्व के आधार पर चलते हैं ताकि इन लैब्स को पूंजी की कमी न हो और इनमें नए विचारों की तेजी बनी रहे। वहीं जापान शोध से लेकर इसके प्रदर्शन और इसे लागू करने तक के पूरे चक्र के लिए फंडिंग करता है जिसके कारण यहां दशक भर के लिए दांव लगाया जाता है और समय-समय पर यह भी देखा जाता है कि यह अपने लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं या नहीं।
चीन ने यह सबक लिया है कि जब कंपनियां आपस में कड़ी प्रतिस्पर्द्धा करती हैं तब वे शोध एवं विकास (आरऐंडडी) में आगे बढ़ सकती हैं। इससे कंपनियां नए उत्पादों को बनाने की मशीन बन जाती हैं। सबसे जरूरी बात यह है कि लगातार फंडिंग होती रहनी चाहिए ताकि लैब्स में समय के साथ सीखने का काम बढ़ता रहे। हमारे बड़े व्यापारिक घरानों को इस चुनौती का सामना करना चाहिए। वे आपूर्ति श्रृंखलाओं को नियंत्रित करते हैं, उनके पास अपार वित्तीय संसाधन और ग्राहकों तक शानदार पहुंच है। नतीजतन, वे किसी भी मंत्रालय या विश्वविद्यालय की तुलना में विचारों का प्रसार कारखानों, ग्रिडों और डेटा केंद्रों तक तेजी से कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नीतिगत ढांचा प्रदान किया है। अनुसंधान राष्ट्रीय शोध फाउंडेशन (एएनआरएफ) को रणनीति और उद्योग-विश्वविद्यालय सहयोग को आधार देने के लिए बनाया गया है। अनुसंधान, विकास और नवाचार योजना अपनी तरह के पहले निवेशों को जोखिम से बचाने के लिए लंबी अवधि की कम लागत वाली पूंजी देती है। इस क्षेत्र से जुड़े अभियान जैसे कि इंडियाएआई, प्रोग्राम संबंधी चैनल जोड़ते हैं। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर) की मान्यता और धारा 35 की कटौती घरेलू शोध एवं विकास की प्रभावी लागत को कम करती है।
कई नई तकनीकों में महारत हासिल करने की जरूरत है। उदाहरण के तौर पर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) में, हम अपने डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को जनसंख्या पर आधारित पैमाने के परीक्षण मंच के रूप में उपयोग कर सकते हैं, लेकिन प्रयोगशालाओं को मूल्यांकन, सुरक्षा साधन चेन और डोमेन मॉडल पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिन्हें सरकारें और उद्यम वास्तव में खरीद सकते हैं।
सेमीकंडक्टर में, हमें मोबिलिटी और ग्रिड से जुड़े आधुनिक पैकेजिंग, पावर इलेक्ट्रॉनिक्स और विशेष नोड्स पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही, भारतीय बौद्धिक संपदा को ऐसे घटकों में बदलना चाहिए जिन्हें दुनिया भर में भेजा जा सके। क्वांटम कंप्यूटिंग में हमें सबसे पहले कम समय में होने वाली सेंसिंग और सुरक्षित संचार पर ध्यान देना चाहिए। इसके साथ ही, कंप्यूटिंग के लिए त्रुटि निवारक और हार्डवेयर क्षमता बनानी चाहिए।
हरित ऊर्जा में, हमें बैटरी के बेहतर रसायन और पावर इलेक्ट्रॉनिक्स में प्रगति के लिए जोर देना चाहिए। साथ ही छोटे मॉड्यूलर नाभिकीय रिएक्टर बनाने पर जोर देना चाहिए ताकि डेटा सेंटर और बिजली से चलने वाले उद्योग को स्वच्छ ऊर्जा मिल सके। अंतरिक्ष में, हमें सिर्फ अभियानों पर ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि बाजार पर भी ध्यान देना होगा।
हमें ऐसी तकनीक बनानी होगी जिससे उपग्रह से मिली जानकारी का इस्तेमाल करके कृषि क्षेत्रों, शहरों और समुद्री इलाकों के लिए सही फैसले लिए जा सकें। जीवन विज्ञान में, ऐसे डेटा प्लेटफॉर्म बना सकते हैं जो लोगों की जानकारी को गोपनीय रखे। फिर इन मंचों को विनिर्माण, तीव्र परीक्षण नेटवर्क और चिकित्सा में उपयोगी एआई के साथ जोड़ सकते हैं जिससे कोई भी खोज तुरंत लोगों के काम आ सके।
कंपनियों को प्रतिभाशाली लोगों को आकर्षित करने और ऐसे लोगों की खेप तैयार करने की आवश्यकता है जो हमारी अनुसंधान प्रयोगशालाओं को ताकत देंगे। हमें शोधकर्ताओं को वैश्विक वेतन का भुगतान करने, उन्हें कॉरपोरेट सलाहकारों के साथ जोड़ने और लैब तक पहुंच की गारंटी देने की आवश्यकता है। एएनआरएफ की मदद से प्रोफेसरों की नियुक्तियां और विदेशों से लौटे प्रोफेसरों को जोड़ना चाहिए, ताकि वे नेतृत्वकर्ता की भूमिका में आ सकें।
लैब को चलाने वाले लोगों (जैसे तकनीशियन, मैट्रोलॉजी विशेषज्ञ, जैव सुरक्षा प्रबंधकों) को बेहतर प्रशिक्षण देकर और उनके वेतन को बढ़ाकर उनके काम को पेशेवर बनाना चाहिए। हमें इन लोगों को योग्यता के अनुसार करियर में आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए, ताकि वे कॉरपोरेट शोध लैब में अपना बेहतरीन काम कर सकें।
सवाल यह है कि अब बड़े कारोबारी समूहों को क्या करना चाहिए? अलग-अलग क्षेत्र के लिए शोध एवं विकास के लक्ष्य तय करते हुए 10 साल के लिए लैब बनाएं, ताकि नेतृत्वकर्ता के बदलने पर भी काम चलता रहे। दूसरा स्वतंत्र लैब प्रशासन तैयार करें: यानी ईमानदार और काबिल लोगों को नेतृत्वकर्ता बनाएं। ऐसे विशेषज्ञ रखें जो लंबे समय तक काम कर सकें और यह देखते रहें कि काम सही चल रहा है या नहीं।
विश्वविद्यालय और स्टार्टअप के साथ बौद्धिक संपदा को साझा करने के नियम बनाएं। तीसरा, पहला खरीदार खुद बने: अपने लैब से बनने वाले नए उत्पाद को सबसे पहले खुद खरीदें और इसे खर्च न समझें, बल्कि भविष्य के बीमा की तरह देखें। चौथा, जैसे आप अपनी कंपनी के बारे में जानकारी देते हैं, वैसे ही शोध के बारे में भी बताएं। शेयर बाजार में इस पारदर्शिता को सराहा जाएगा। सरकार का काम है एक स्थिर नीति बनाए रखना और स्वदेशी तकनीक खरीदना। जब सरकार पहली खेप खरीदती है तब कंपनियां दूसरी खेप में निवेश करती हैं। इस तरह नोबेल की कहानी भारत की कहानी भी बन सकती है।
एक दशक बाद, हमारा सवाल यह नहीं होना चाहिए कि क्या भारत बेल जैसी लैब बना सकता है। सवाल यह होना चाहिए कि कौन सी कॉरपोरेट लैब एआई, चिप, क्वांटम, ग्रीन एनर्जी, अंतरिक्ष और लाइफ साइंसेज में हमारे लाभ को आधार बनाती है और उनके विचार कितनी जल्दी कारखानों, डेटा केंद्रों, उपग्रहों, अस्पतालों और कृषि क्षेत्रों में स्थापित हो जाते हैं। इसी तरह तकनीक एक टिकाऊ वृद्धि इंजन बन सकती है और भारत टिकाऊ आर्थिक विकास में अपना झंडा गाड़ सकता है।
(लेखक केंद्रीय मंत्री और लोक सभा सदस्य रह चुके हैं। ये उनके निजी विचार हैं)