Sectoral ETFs: म्युचुअल फंड हाउस लगातार अपने प्रोडक्ट्स रेंज का विस्तार कर रहे हैं और सेक्टोरल थीम पर आधारित योजनाएं ला रहे हैं, जो आमतौर पर एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड्स (ETFs) के रूप में होती हैं। इसी कड़ी में एक नई स्कीम — कोटक निफ्टी केमिकल ईटीएफ (Kotak Nifty Chemical ETF) है, जिसका न्यू फंड ऑफर (NFO) फिलहाल सब्सक्रिप्शन के लिए खुला हुआ है।
कोटक म्युचुअल फंड के फंड मैनेजर देवेन्द्र सिंघल ने कहा, “निफ्टी केमिकल इंडेक्स को ट्रैक करके यह ईटीएफ बाजार की लीडिंग केमिकल कंपनियों की एक बास्केट में निवेश का अवसर प्रदान करता है, जिससे एक ही स्टॉक पर निर्भरता का जोखिम कम होता है और इस सेक्टर की व्यापक वृद्धि की संभावनाओं का लाभ मिलता है।”
कई अन्य संकरे उद्देश्य (narrow-mandate) वाले ईटीएफ रियल एस्टेट, ऑटो, कैपिटल मार्केट्स और रेलवे जैसे सेक्टरों को ट्रैक करते हैं। फिसडम के रिसर्च हेड नीरव आर करकेरा ने कहा कि ऐसे फंड उन सेक्टरों पर ध्यान देते हैं जिनमें सुधार या तेजी की संभावना होती है। इनका उद्देश्य सीमित संख्या में लिस्टेड कंपनियों में निवेश कर बेहतर रिटर्न पाने का होता है।
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यदि किसी सेक्टर में अनुकूल चक्र चलता है तो संकरे सेक्टोरल फंड्स मजबूत रिटर्न दे सकते हैं। वॉलेट वेल्थ के फाउंडर और सीईओ एस. श्रीधरन के अनुसार, “जब चुना गया सेक्टर विकास के चरण में प्रवेश करता है, तो संकरे सेक्टोरल फंड बेहतर रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं। ऐसे फंड निवेशकों को किसी विशेष उद्योग में संरचनात्मक या चक्रीय रुझानों से मिलने वाले अवसरों का लाभ उठाने का मौका देते हैं।”
ये ईटीएफ उन सेक्टरों में निवेश का रास्ता भी खोलते हैं जो फिलहाल बाजार की नजर में कमजोर हैं। चूंकि ये पैसिव रूप से मैनेज होते हैं, इसलिए इनमें फंड मैनेजर के निर्णय का जोखिम नहीं होता और इनकी फीस भी अपेक्षाकृत कम होती है।
इन फंड्स का ध्यान एक ही सेक्टर पर केंद्रित होता है, इसलिए इनमें उतार-चढ़ाव और नुकसान का खतरा ज्यादा रहता है। सिंघल के मुताबिक, ऐसे फंड्स में एक ही सेक्टर पर निर्भरता, विविधता की कमी और ज्यादा अस्थिरता जैसे जोखिम होते हैं। निवेश करने से पहले उस सेक्टर को अच्छी तरह समझना और बाजार की स्थिति को ध्यान से देखना जरूरी है।
श्रीधरन का कहना है कि ऐसे फंड कई तरह के जोखिमों से जुड़े होते हैं — जैसे आर्थिक चक्र में बदलाव, सरकारी नियमों में परिवर्तन, ज्यादा वैल्यूएशन और शेयरों की खरीद-बिक्री में कमी। कुछ सेक्टर लंबे समय तक खराब प्रदर्शन कर सकते हैं, जिससे कुल रिटर्न पर असर पड़ सकता है।
आम तौर पर ईटीएफ बड़ी और आसानी से खरीदी-बेची जाने वाली कंपनियों में निवेश करते हैं, लेकिन किसी सेक्टर की मजबूती अक्सर कुछ बड़ी कंपनियों पर ही निर्भर होती है। इसलिए निवेशक कई बार सेक्टर की सबसे अच्छी कंपनियों से मिलने वाले मुनाफे से वंचित रह सकते हैं।
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इन सेक्टोरल ईटीएफ से मिलने वाला रिटर्न इस बात पर बहुत निर्भर करता है कि निवेशक कब एंट्री करता है और कब बाहर निकलता है। करकेरा के अनुसार, “टाइमिंग रिस्क इन फंड्स की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। निवेशक अक्सर चक्र के टॉप पर निवेश करते हैं और निचले स्तर पर बाहर निकलते हैं, जिससे अनुमानित नुकसान वास्तविक नुकसान में बदल जाता है। केवल अल्पकालिक मुनाफे के लिए बार-बार पोर्टफोलियो में बदलाव या सेक्टर बदलने की कोशिश करना भी निवेश की इंटरनल रेट ऑफ रिटर्न (IRR) को कम कर सकता है, क्योंकि इसमें टैक्स और अन्य खर्चों के कारण रिटर्न घट जाता है।”
सेक्टोरल फंड्स अनुभवी निवेशकों के लिए ज्यादा बेहतर विकल्प हैं। सिंघल के अनुसार, “ऐसे निवेशक जो बाजार के चक्रों को अच्छी तरह समझते हैं, किसी खास सेक्टर की बारीकियों को जानते हैं, ज्यादा जोखिम उठाने को तैयार हैं और अस्थिरता (volatility) को स्वीकार कर सकते हैं — वही इन फंड्स के लिए उपयुक्त हैं।”
श्रीधरन ने कहा, “पहली बार निवेश करने वाले या कम जोखिम उठाने वाले निवेशकों को सेक्टोरल फंड्स से दूर रहना चाहिए। कुल इक्विटी पोर्टफोलियो का अधिकतम 10 फीसदी ही ऐसे फंड्स में लगाना चाहिए और कम से कम पांच साल का निवेश लक्ष्य रखना चाहिए ताकि सेक्टोरल चक्रों को झेला जा सके और संभावित लाभ हासिल हो सके। टाइमिंग रिस्क को संभालने के लिए SIP का तरीका अपनाना बेहतर है, क्योंकि सेक्टर के सही मोड़ का अनुमान लगाना काफी मुश्किल होता है।”
करकेरा का सुझाव है कि निवेशक सेक्टोरल ईटीएफ को अपने इक्विटी पोर्टफोलियो के सैटेलाइट हिस्से (मुख्य निवेश के बाहर के छोटे हिस्से) में शामिल करें।
(लेखक गुरुग्राम स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)