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Bihar Elections 2025: भाकपा माले की साख दांव पर, पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती

Bihar Elections: माले ने 2020 के विधान सभा चुनावों में 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें 12 पर उसे जीत हासिल हुई थी।

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अर्चिस मोहन   
Last Updated- November 05, 2025 | 11:14 PM IST

Bihar Elections 2025: वर्ष 2025 का बिहार विधान सभा चुनाव ‘झंडे पर तीन तारा’ (तीन सितारों वाला झंडा) पार्टी के लिए एक महत्त्वपूर्ण परीक्षा है। यह पार्टी कोई और नहीं बल्कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन है जिसे ‘भाकपा माले’ या ‘माले’ के नाम से भी जाना जाता है।

भाकपा (माले) या संक्षेप में ‘माले’ पर इस चुनाव में अपना पिछला दमदार स्ट्राइक रेट दोहराने का दबाव है। माले ने 2020 के विधान सभा चुनावों में 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें 12 पर उसे जीत हासिल हुई थी। यह देश में वाम आंदोलन की उम्मीदों का बोझ भी उठा रहा है क्योंकि यह कानपुर में ऐसे दौर में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की स्थापना का शताब्दी वर्ष मना रही है जब देश में कम्युनिस्ट धड़ा वर्तमान में चुनावी बिसात पर सबसे कमजोर प्रतीत हो रहा है।

माले के 64 वर्षीय प्रमुख दीपंकर भट्टाचार्य ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि उनकी पार्टी के विधायकों और उम्मीदवारों को कैसे ‘फर्जी मामलों में फंसाया जा रहा है’ ताकि वे चुनाव न लड़ सकें। माले ने इसे ‘सामंती हितों के खिलाफ अपने संघर्ष पर जान बूझकर किया गया’करार दिया है।

प्रचार के दौरान भट्टाचार्य और माले उम्मीदवार पैदल चलकर लोगों तक पहुंचने और छोटी जन सभाओं को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। भट्टाचार्य कहते हैं,‘चुनावों में यह महत्त्वपूर्ण नहीं है आप कितनी बड़ी रैलियां कर रहे हैं। अहम बात यह है कि आप किस तरह लोगों से संवाद करने का समय निकाल कर उन तक अपनी बात पहुंचाते हैं।‘

कई अन्य राजनीतिक दलों के विपरीत संसाधनों, कार्यकर्ताओं के लिए भोजन, प्लास्टिक की कुर्सियां, एक छोटा शामियाना, लाउडस्पीकर और बैठक के लिए दरियों का इंतजाम करने का दायित्व माले की स्थानीय समिति पर है न कि उम्मीदवारों पर।

माले सूत्रों का कहना है कि पार्टी को तमाम राजनीतिक गुणा-भाग के बीच 2020 के प्रदर्शन को दोहराने का विश्वास है क्योंकि पिछली बार उसने कुछ सीटें मामूली अंतर से गंवा दी थीं।

इस बार माले जिन 20 सीटों (पिछले विधान सभा चुनाव की तुलना में एक अधिक) पर चुनाव लड़ रही है उनमें 14 पर गुरुवार को पहले चरण में मतदान होगा। माले ने इंडिया गठबंधन के घटक के रूप में 2024 के लोक सभा चुनावों में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था जिनमें दो सीटों पर इसे जीत मिली थी। 2024 के झारखंड विधान सभा चुनावों में माले ने इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल के रूप में चार सीटों पर चुनाव लड़ा और दो सीटें जीतीं।

भट्टाचार्य कहा कि माले और इंडिया गठबंधन ने बिहार में विकास के ‘फ्लाईओवर-बाईपास मॉडल” को उजागर किया है, और ‘एजेंडा सेट किया है’। उन्होंने कहा,‘जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चुनाव को घुसपैठिये और अन्य दूसरे मुद्दों में उलझाने का प्रयास कर रही थी तब हमने उन्हें नौकरियों के बारे में बात करने, 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने और महिलाओं के ऊपर कर्ज जैसे विषयों पर बात करने के लिए विवश कर दिया।‘कल्याणपुर में एक सार्वजनिक बैठक में भट्टाचार्य अपनी सभा में मौजूद महिलाओं से पूछते हैं कि उनमें से कितनों को 10,000 रुपये मिले हैं। चार हाथ उठते हैं लेकिन अन्य कहते हैं कि उन्हें आने वाले हफ्तों में पैसे मिलने का भरोसा है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया,‘यह भाजपा द्वारा कर्ज बोझ तले दबी महिलाओं में निराशा दूर करने का एक हताश प्रयास है। हालांकि वह यह भी मानते हैं कि कहीं न कहीं भाजपा के वादे का महिला मतदाताओं पर असर तो हुआ है। अपनी सार्वजनिक बैठकों में भट्टाचार्य महिलाओं से 10,000 रुपये जेब में रखने और ऋण माफी की मांग जारी रखने का आग्रह कर रहे हैं।‘

बिहार में माले की सफलता का एक बड़ा कारण इसका गरीब लोगों के अधिकारों से जुड़े आंदोलनों में भाग लेना है। भट्टाचार्य अपने पार्टी कार्यालयों और पार्टी के विधायकों के सरकारी बंगलों से बाहर रहते हैं जो पार्टी कार्यालयों के रूप में कार्य करते हैं। इसके उम्मीदवार पार्टी के उद्देश्यों के प्रति प्रतिबद्धता और आंदोलनों से उभर कर आए नेताओं का मिश्रण हैं। पार्टी ने छात्र नेताओं, सरकारी नौकरी छोड़ने वाले लोगों और पिछड़े वर्गों, विशेष रूप से दलितों और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) से आने वाले लोगों आदि को चुनावी मैदान में उतारा है।

आरा सीट से ईबीसी एवं माले के उम्मीदवार कायमुद्दीन अंसारी तब चर्चा में आए जब स्थानीय मीडिया में खबरें चलीं कि नामांकन दाखिल करते समय उनके बैंक खाते में केवल 5,000 रुपये थे। उनके चुनाव हलफनामे के अनुसार अंसारी के बैंक खाते में 5 लाख रुपये हैं और उनके पास एक साइकिल भी नहीं है।

सुपौल में पिपरा से पार्टी के उम्मीदवार अनिल कुमार ने कृषि वैज्ञानिक के रूप में अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी जबकि भोरे से धनंजय डॉक्टरेट कर रहे हैं। तरारी सीट से मदन सिंह चंद्रवंशी ने अपनी राजनीतिक सक्रियता के लिए नौ साल जेल में बिताए हैं। पालीगंज से संदीप सौरभ, जो एक छात्र नेता भी हैं, ने राजनीतिक सक्रियता को आगे बढ़ाने के लिए अपनी सरकारी नौकरी नहीं ली, जबकि दीघा से पार्टी की उम्मीदवार दिवा गौतम ने बिहार सरकार की नौकरी छोड़ दी।

पार्टी के राजगीर उम्मीदवार विश्वनाथ चौधरी एक सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता हैं और कल्याणपुर के रंजीत कुमार राम ने 2003 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को काले झंडे दिखाने के लिए महीनों जेल में बिताए थे। पार्टी इंडिया गठबंधन के घोषणापत्र में बंटाईदारों पर बंद्योपाध्याय आयोग की रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों को शामिल करने में सफल रही है। भट्टाचार्य को विश्वास है कि इंडिया गठबंधन सरकार बनाएगा।

उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी के सरकार में शामिल होने का सवाल पूरी तरह खुला है। उन्होंने अपनी सार्वजनिक बैठकों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सीधा हमला करने से परहेज किया है। भट्टाचार्य ने कहा कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में नीतीश कुमार का योगदान जरूर रहा है मगर अब भाजपा उन (नीतीश) पर हावी होती जा रही है। कुमार के साथ भट्टाचार्य ने फरवरी 2023 में संभावित इंडिया गठबंधन का पहला मसौदा तैयार किया था। वह बातचीत के दौरान इस बात के संकेत भी दे रहे हैं कि बिहार की राजनीति में 14 नवंबर के बाद और अधिक उथल-पुथल दिख सकती है।

First Published : November 5, 2025 | 10:45 PM IST