तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच बांग्लादेश विकट स्थिति में फंस गया है। कभी आर्थिक मोर्चे पर दमदार प्रगति कर दुनिया को चौंकाने वाला यह देश पिछले एक महीने से चल रहे विरोध प्रदर्शन के बाद विपरीत हालात से जूझ रहा है। ऐसी खबरें हैं कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना इस्तीफा देने के बाद देश छोड़कर भारत पहुंच गई हैं। हसीना ने प्रधानमंत्री के रूप में बांग्लादेश में सबसे अधिक अवधि तक शासन किया है। उनके कार्यकाल में बांग्लादेश 2026 तक मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था बनने की तरफ अग्रसर था।
वर्तमान संकट का तात्कालिक कारण वहां छात्रों का विरोध प्रदर्शन है। छात्र सरकारी नौकरियों में आरक्षण का विरोध कर रहे हैं, जो हिंसा का रूप ले चुका है। इसमें जुलाई से 300 लोगों की जान जा चुकी है। यह विरोध प्रदर्शन बांग्लादेश की राजनीतिक-आर्थिक अर्थव्यवस्था में आई दो प्रमुख कमजोरी का लक्षण है। वहां राजनीतिक संस्थाएं कमजोर हो चुकी हैं और आर्थिक बुनियाद में भी दरारें दिखने लगी हैं।
इन दोनों कारणों से बांग्लादेश में शेख हसीना की लोकप्रियता को चोट पहुंची। हसीना इस वर्ष जनवरी में चुनाव जीतने के बाद लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री बनी थीं, मगर उन्हें लेकर वहां असंतोष भी साफ दिख रहा था। हसीना का रवैया सत्तावादी रहा था और उनकी सरकार के आलोचकों के प्रति उनका व्यवहार सख्त था। परंतु, बांग्लादेश के तेज आर्थिक विकास के बीच इन बातों की अनदेखी हो गई।
वस्त्र उद्योग, विशेषकर, तैयार परिधानों के निर्यात में बांग्लादेश का प्रदर्शन सराहनीय रहा है। इस उद्योग के दम पर वहां 2.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकल पाए और महिलाओं के सशक्तीकरण में भी बहुत मदद मिली है। बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति आय पिछले कुछ वर्षों में भारत से भी अधिक अधिक थी और दक्षिण एशिया में कई मानव सूचकांकों पर इसका प्रदर्शन शानदार रहा था।
हालांकि, कोविड-19 महामारी के बाद वैश्विक स्तर पर मांग कमजोर होने के बाद बांग्लादेश में परिस्थितियां बिगड़ने लगी थीं। वहां सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर सुस्त पड़ने लगी और भुगतान संकट बिगड़ता चला गया। पिछले वर्ष इस देश को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से सहायता लेनी पड़ी।
कोविड पूर्व दर्ज आर्थिक वृद्धि और रोजगार के अवसर तैयार करने के लिए बांग्लादेश में निजी निवेश का दायरा वस्त्र निर्यात से आगे ले जाने की आवश्यकता स्पष्ट रूप से महसूस की जा रही है। परंतु, ऐसा कर पाने में देश संघर्ष करता दिखा। निजी निवेश सीमित रहने से सरकारी नौकरियों पर वहां के युवाओं की निर्भरता बढ़ने लगी। ऐसे आरोप लगते रहे कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ सत्ताधारी अवामी लीग से संबद्ध लोगों को मिलते रहे।
बांग्लादेश में नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का निर्णय देर से आया और इस बीच परिस्थितियां वहां बेकाबू हो गईं। सरकार के खिलाफ वहां के लोगों के विरोध प्रदर्शन की जड़ें हसीना के सत्तावादी शासन से जुड़ी थीं। जब वह चौथी बार चुनाव जीतीं तो यह बात साफ दिख रही थी। चुनाव से पहले विपक्षी नेताओं के खिलाफ सख्त मुहिम चलाई गई और मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नैशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया। चुनाव में मात्र 40 प्रतिशत मतदाता मतदान करने आए और धांधली के आरोप भी लगे।
बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की पुत्री शेख हसीना अपना देश छोड़कर भारत पहुंच गई हैं। इस पूरी घटना को भारत की किसी तरह की भूमिका से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। दक्षिण एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बांग्लादेश इस क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। अपने विभिन्न कार्यकालों में हसीना का भारत के प्रति मित्रवत व्यवहार रहा है। उन्होंने इस्लामी उग्रवादियों का पता लगाने एवं समाप्त करने में भारत की सहायता की और सीमा विवाद भी सुलझाने में प्रमुख भूमिका निभाई। हसीना भारत विरोध के स्वरों को दबाने में भी आगे रहीं।
बांग्लादेश के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित एवं शेख हसीना के आलोचक मोहम्मद यूनुस ने भारत से ढाका में चल रहे घटनाक्रम से दूरी बरतने की नीति छोड़ने का आग्रह किया है। परंतु, बांग्लादेश की राजनीति और वहां सेना की भूमिका का एक विशेष इतिहास रहा है। वहां वर्ष 1975 से सेना राजनीतिक नेतृत्व के खिलाफ 29 बार विद्रोह कर चुकी है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए भारत के लिए फिलहाल इंतजार करना ही समझदारी वाला कदम होगा।