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दोधारी तलवार : सशस्त्र बलों को मिले पेशेवर सैन्य शिक्षा

इस संस्थान में हमारे देश के सबसे बेहतरीन सैनिकों को प्रशिक्षित होना था लेकिन इसके निर्माण का प्रस्ताव इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के मुख्यालय की फाइलों में धूल फांक रहा है।

Last Updated- October 10, 2023 | 10:39 PM IST
Educating our security chieftains
इलस्ट्रेशन- बिनय सिन्हा

मई 2013 में गुरुग्राम के बिनोला में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (आईएनडीयू) की आधारशिला रखी थी। यह एक ऐसा अकादमिक संस्थान होना था जहां प्रमुख रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषयों पर ध्यान दिया जाना था।

यह संस्थान तब बना जब सन 1999 में करगिल समीक्षा समिति की अध्यक्षता कर रहे रणनीतिक मामलों के सुप्रसिद्ध विचारक के सुब्रमण्यम ने कहा था कि सेना को एक ऐसे अकादमिक संस्थान की आवश्यकता है जो प्रमुख रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर ध्यान दे।

प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अध्ययन में सैन्य और असैन्य दोनों क्षेत्रों को प्रशिक्षित करने की महत्ता को समझा और ब्रिटिश जनरल चार्ल्स जॉर्ज गॉर्डन को उद्धृत किया, ‘जो देश वैचारिक व्यक्ति योद्धा व्यक्तियों के बीच एक व्यापक विभाजक रेखा खींचने का प्रयास करता है तो उसके विचारक कायर निकलते हैं और उसके लिए लड़ने वाले मूर्ख होते हैं।’

यह तय किया गया कि थलसेना, नौसेना और वायुसेना के तीन सितारा सेवारत जनरलों को आईएनडीयू का प्रमुख बनाया जाएगा। इसका संचालन भारतीय प्रबंध संस्थानों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के तर्ज पर किया जाना था। इसके दो तिहाई विद्यार्थी सेना से होने थे और बाकी सरकार, पुलिस संगठनों और आम नागरिकों में से चुने जाने थे।

शिक्षकों में सैन्य और असैन्य क्षेत्र के लोगों को समान संख्या में रखा जाना था। प्रधानमंत्री ने कहा था कि आईएनडीयू केवल हमारे विचारकों और नीति निर्माताओं को ही युद्ध और संघर्ष की जटिलताएं नहीं समझाएगा बल्कि यह सैन्य पेशेवरों को राष्ट्रीय शक्ति के सभी पहलुओं के आंतरिक संबंधों से भी अवगत कराएगा।

एक दशक बाद भी आईएनडीयू का कहीं कोई जिक्र नहीं है। इस संस्थान में हमारे देश के सबसे बेहतरीन सैनिकों को प्रशिक्षित होना था लेकिन इसके निर्माण का प्रस्ताव इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के मुख्यालय की फाइलों में धूल फांक रहा है। यह मुख्यालय में एक ब्रिगेडियर के अधीन है लेकिन यह अधिकारी हर वर्ष एक सुरक्षा कंपनी के साथ सुरक्षा गार्ड के अनुबंध के सिवा कुछ नहीं करता।

उस गार्ड का काम है उस उपेक्षित और उजाड़ परिसर को अतिक्रमण से बचाना। इस बीच ऐसे ही एक अन्य संगठन राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (आरआरयू) की स्थापना गुजरात में की गई। इसे उत्कृष्टता संस्थान का दर्जा दिया गया है लेकिन वहां औसत योग्यता वाले प्रोफेसर जो चुनिंदा विषय पढ़ाते हैं उनमें कुछ खास उत्कृष्टता नहीं नजर आती।

इस बीच अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और यहां तक कि पाकिस्तान भी पेशेवर सैन्य शिक्षा संस्थानों (पीएमई) की स्थापना के लिए समय निकालते हैं, प्रयास करते हैं और संसाधन जुटाते हैं। अमेरिकी संयुक्त स्टाफ इन संस्थानों को ऐेसे शिक्षण संस्थानों के रूप में चिह्नित करता है जहां ऐसी शिक्षा पर ध्यान दिया जाता है जो संज्ञानात्मक क्षेत्र पर ध्यान कें​द्रित करता है और व्यापक दृष्टिकोण, विविध नजरियों, अहम विश्लेषण, अमूर्त तर्क, अस्पष्टता और अनिश्चितता के साथ सहजता और नवीन विचारों को प्रश्रय देती है, खासतौर पर जटिल गैर रेखीय समस्याओं के मामले में।

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भारतीय सेना की पीएमई व्यवस्था में रणनीतिक अध्ययन से संबंधित सामग्री बहुत कम है। इसके बजाय यह पेशेवर​ विकास के सभी चरणों में सामरिक स्तर पर ध्यान केंद्रित करती है। इसके परिणामस्वरूप उसके वरिष्ठ नेतृत्व को रणनीतिक अध्ययन का पर्याप्त अनुभव नहीं मिलता है। इसका असर रणनीतिक सलाह देने की उनकी क्षमता पर पड़ता है। हमारे पीएमई ज्यादातर सेना के नियंत्रण में हैं। यहां प्रशिक्षक अल्पावधि की नियुक्ति पर आते हैं।

वे रणनीति और संचालन के बारे में बात करते हैं और इस तरह शिक्षा के बजाय प्रशिक्षण देते हैं। भारत में पीएमई का संचालन ज्यादातर सेना द्वारा किया जाता है जहां कुछ नागरिक समितियां भी अपनी समझ का इस्तेमाल करती हैं। प्राथमिक स्तर पर जो खड़गवासला स्थित कैडेट राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में तीन वर्ष का प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करते हैं उन्हें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से स्नातक डिग्री दी जाती है।

तमिलनाडु के वेलिंगटन स्थित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज (डीएसएससी) से पढ़ाई पूरी करने वाले अधिकारियों को मद्रास विश्वविद्यालय से मास्टर्स डिग्री मिलती है। अपने करियर के बीच के दौर से गुजर रहे अधिकारियों को हाई कमांड कोर्स के लिए चुना जाता है। इसके बाद सबसे बेहतरीन अधिकारियों का चयन नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के लिए किया जाता है।

बहरहाल, कई अधिकारी जिन्होंने इन पाठ्यक्रम की पढ़ाई की है उनका कहना है कि वे पढ़ाई पूरी होने के बाद होने वाले मेलजोल की तरह अधिक होते हैं जहां पा​र्टियों, पिकनिक और खेल गतिविधियों पर जोर दिया जाता है, न कि राज्य नीति के तत्त्वों और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी बातों को आत्मसात करने के।

जबकि उसकी बदौलत वे देश के राजनीतिक नेतृत्व को रणनीतिक सलाह देने में सक्षम बनेंगे जो​ कि किसी भी संकट की स्थिति में अहम होगी। बीते वर्षों में भारत और पाकिस्तान में स्टाफ कॉलेज पाठ्यक्रम में शामिल होने वाले अमेरिकी सैन्य अधिकारियों का तुलनात्मक अध्ययन इस नतीजे पर पहुंचा कि डीएसएससी में भारत का पाठ्यक्रम इस लिहाज से कमजोर था कि यहां अधिकांश पढ़ने वाले पिछले पाठ्यक्रम के नोट के भरोसे थे।

सेना के पास कोई सुवि​कसित शैक्षणिक परंपरा या ढांचा नहीं है। राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन के मामले में भी नहीं। अधिकारियों को एक या दो साल का सवैतनिक अध्ययन अवकाश मिलता है। बहरहाल, वे जो शिक्षा हासिल करते हैं वह शायद ही सेना के काम की होती है।

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मौजूदा सरकार का कहना है कि प्रधानमंत्री के परिवर्तन, सुधार और प्रदर्शन के एजेंडे के तहत सैन्य माहौल में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। इसके लिए अधिकारियों को अस्थिर, अनिश्चित, जटिल और अस्पष्ट माहौल में प्रभावी ढंग से काम करना होता है। उन्नत और आधुनिक सेनाएं इन अधिकारियों को जमीनी शिक्षा मुहैया करा रही हैं जो उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों की बड़ी तस्वीर से अवगत कराती हैं।

हर वर्ष करीब 30 भारतीय सैन्य अधिकारियों को विदेशी सेनाओं के साथ अध्ययन के लिए बाहर के स्टाफ कॉलेज पाठ्यक्रमों में भेजा जाता है। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे आधुनिक हथियारों, ड्रोन की नई भूमिका, चरमपंथ से निपटने के नए तरीकों, आत्मनिर्भरता, मानवाधिकार के मसले, अधिग्रहण की प्रक्रिया, निर्माण कार्य आदि विषयों पर आधुनिक सिद्धांतों को अपनाएंगे।

बहरहाल, अधिकांश अधिकारी स्वीकार करते हैं कि पीएमई में कल्पनाशीलता का अभाव है और ये परिचालन में रूढि़वादी हैं। वहां जानकार छात्र समूहों के बीच सामूहिक चर्चा के लिए बहुत कम गुंजाइश होती है जो तर्क-वितर्क करके किसी समाधान पर सहमत हो सकें।

इसके बजाय पीएमई का झुकाव अधिकारियों को अगले मोर्चे के लिए तैयार करने पर होता है न कि निकट भविष्य में वरिष्ठ, रणनीतिक नियुक्तियों की तैयारी करने के। पीएमई का पूरी तरह पुनर्गठन करने की आवश्यकता है ताकि अधिकारियों के संज्ञानात्मक क्षेत्र का विस्तार किया जा सके, इससे वृहद मसलों पर उनकी समझ बढ़ेगी। भारत के सशस्त्र बलों को इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

First Published - October 10, 2023 | 10:39 PM IST

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