चंद रोज पहले एक प्रमुख सरकारी विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने मुझे इस बात पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया कि वे अपने पाठ्यक्रम को किस प्रकार आधुनिक बनाएंगे। जब बोलने की मेरी बारी आई तो मैंने कहा कि आधुनिकीकरण की दिशा में सबसे अहम पहला कदम होगा डिजिटल ह्यूमैनिटीज यानी मानविकी की पढ़ाई शुरू कराना। शुरुआत में इसे स्नातक स्तर पर शुरू किया जा सकता है और स्कूलों से कला या विज्ञान की पढ़ाई करके आने वाले बच्चों को इसे पढ़ाया जा सकता है। जब मैं अपनी बात कह रहा था तब मैंने ध्यान दिया कि वहां बैठे दर्जन भर प्रोफेसरों के चेहरों पर पहेलीनुमा भाव थे।
उनमें से एक ने मुझसे कहा, ‘मैं इस बात की गारंटी दे सकता हूं कि कला और मानविकी से पढ़ाई करने वाला एक भी बच्चा इस पाठ्यक्रम में दाखिला नहीं लेगा: डिजिटल शब्द उसे भयभीत कर देगा।’ एक बार उनके यह कह लेने के बाद कक्ष में मौजूद अन्य प्रोफेसरों ने भी उनकी बात से सहमति जताई। मैंने पूछा, ‘क्या आपको पता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत इस वर्ष से देश के सभी विद्यालयों में डेटा विज्ञान पढ़ाया जाएगा?’ मेरे इस प्रश्न के उत्तर में भी उन लोगों के चेहरों पर उलझन के भाव नजर आए। तब मैंने बताया कि यह उस 11 सदस्यीय विशेषज्ञ समूह का प्रमुख सुझाव है जिसमें मैं भी शामिल था और जिसने 2020 की यह शिक्षा नीति तैयार की है।
जब विशेषज्ञ समूह के सभी सदस्यों ने मेरे सुझाव को तत्काल सुझाव कर उसे प्रमुख अनुशंसा बनाया था तो मैं भी रोमांचित हो गया था। अब तो इसका क्रियान्वयन किया जा रहा है और मैं देख सकता हूं कि प्रारंभिक पुस्तक तैयार भी हो चुकी है। इसे इंटरनेट पर ‘डेटा साइंस ग्रेड 8 टीचर हैंडबुक’ के नाम से तलाश भी किया जा सकता है।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन (सीबीएससी) के स्कूलों ने भी डेटा विज्ञान को लेकर अपनी उत्सुकता दिखाई है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है, ‘इस पाठ्यक्रम का लक्ष्य है डेटा विज्ञान के लिए बुनियाद तैयार करना, डेटा संग्रहण के तरीके को समझना, उसका विश्लेषण करना और यह देखना कि समस्याओं को हल करने और निर्णय लेने में उनका इस्तेमाल किस प्रकार किया जा सकता है। इसमें डेटा से जुड़े नैतिकता के प्रश्नों को भी संबोधित किया जाएगा तथा डेटा विज्ञान के एआई आधारित इस्तेमालों का आधार तैयार किया जाएगा। ऐसे में सीबीएसई डेटा विज्ञान का 12 घंटों का एक कौशल मॉड्यूल पेश कर रहा है जो कक्षा आठ के लिए होगा। कक्षा नौ से बारहवीं तक यह एक कौशल संबंधी विषय होगा।’
दूसरे शब्दों में कहें तो तीन वर्षों में हमें देश में कॉलेज जाने के इच्छुक बच्चों में बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की होगी जो डेटा विज्ञान को लेकर उत्साहित होंगे और नई बातें जानने को लेकर उत्सुक भी होंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इस लक्ष्य के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है वे हैं: ‘विज्ञान, समाज विज्ञान, कला, मानविकी तथा खेल आदि विविध क्षेत्रों में समग्र शिक्षा की मदद से हर प्रकार के ज्ञान की एकता और अखंडता सुनिश्चित होगी।’ उस दिन मेरे साथ जो प्रोफेसर थे उनमें से एक ने अपना हाथ उठाया और पूछा, ‘क्या आपका कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे सभी बच्चों को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सीखनी होगी और कंप्यूटर प्रोग्रामर बनना होगा?’
जवाब में मैंने उनसे कहा कि ऐसा नहीं है। मैंने कहा कि अगर आप अपनी बच्ची को साइकिल चलाना सिखाना चाहते हैं तो आप उसे गति के नियमों पर भाषण नहीं देते, आप उसे यह नहीं समझाते कि रबर के टायर कैसे बनते हैं और कैसे धातु से साइकल के अन्य हिस्से बनाए जाते हैं। आप उसे साइकिल पर बिठाते हैं, साइकिल को पकड़कर उसे संतुलन बनाना सिखाते हैं और बताते हैं कि कैसे अपने पैर जमीन पर रखकर संतुलन कायम करना है आदि आदि। समय बीतने के साथ वह खुद साइकिल चलाना सीख जाती है।
इसी प्रकार अगर कोई बच्चा डेटा विज्ञान सीखना चाहता है तो जरूरी नहीं है कि उसे कंप्यूटर प्रोग्रामिंग ही सिखाई जाए। उदाहरण के लिए वह तीन क्रिकेटरों के 10 मैचों के स्कोर को देखकर यह पता लगा सकते हैं कि इनमें से किसने सबसे अधिक रन बनाए, हम यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि हर क्रिकेटर का औसत कितना रहा और उनमें से प्रत्येक के बनाए रनों में कितना मानक विचलन रहा। इससे हम पता लगा सकते हैं कि किसकी बल्लेबाजी में सबसे अधिक निरंतरता है। ऐसे वास्तविक अनुभवों के साथ डेटा विज्ञान के खास गुण सिखाए जा सकते हैं।
जब मैं यह सब कह रहा था, मैं देख सकता था कि प्रोफेसरों के चेहरे पर राहत के भाव थे लेकिन इसके साथ ही भविष्य की एक चुनौती भी नजर आ रही थी। अगर इसे सही ढंग से अंजाम दिया गया तो सभी स्तरों पर नागरिक डिजिटल दुनिया में कूद पड़ेंगे। उदाहरण के लिए जब मैं मुंबई में अपने आसपास के इलाके से गुजरता हूं तो मैं देख सकता हूं कि कैसे सड़क किनारे फल और मछली बेचने वाले क्यूआर कोड लगाए रहते हैं और डिजिटल भुगतान स्वीकार करते हैं। इस समय 1.2 अरब भारतीयों के पास आधार संख्या है। करीब 30 करोड़ भारतीय ऑनलाइन खरीदारी करत हैं और उन सभी ने यह डिजिटल बदलाव खुशी-खुशी स्वीकार किया है।
बहरहाल, मैं चेतावनी के रूप में यही कह सकता हूं कि किसी भी नई तकनीकी लहर का तेज प्रसार सामाजिक उथल-पुथल भी पैदा कर सकता है। मुझे अभी भी याद है कि 1971 में जब मैंने आईआईएम कलकत्ता से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद काम करना शुरू किया था तब बंबई के परेल इलाके में 100 के करीब कॉटन मिल थीं जो बहुत अच्छी स्थिति में थीं। उसके बाद हड़ताल और हिंसा तथा सस्ते सिंथेटिक कपड़े मसलन नायलॉन तथा टेरी कॉटन आदि के आगमन के बाद महज आठ से 10 वर्ष में ये मिलें पूरी तरह ढह गईं।
डेटा विज्ञान डिजिटल युग का ही एक हिस्सा है और इसके भी ऐसे पहलू होंगे जो निजता, झूठी खबर और डिजिटल धोखाधड़ी जैसे खतरों से बने होंगे। इनकी वजह से पहले ही चिंता का माहौल बनने लगा है। इन चुनौतियों से उचित तरीके से निपटने तथा अवसरों का लाभ लेने के लिए जरूरी यह है कि डेटा विज्ञान का ज्ञान हर वर्ग के लोगों तक पहुंचे। ऐसा होने पर ही मनुष्य के रूप में हम सही चयन कर पाएंगे।
(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं)