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राज्यों के बजट आंकड़ों का सही आकलन जरूरी

राज्यों में सुधार का एजेंडा आगे बढ़ाए जाने की उम्मीद है। ऐसे में एक ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है ताकि उनके बजट आंकड़ों का सही ढंग से आकलन किया जा सके।

Last Updated- March 28, 2024 | 9:34 PM IST
The state of state budgets राज्यों के बजट आंकड़ों का सही आकलन जरूरी

अब तक कई राज्य 2024-25 का अपना बजट पेश कर चुके हैं। उनमें से कई ने गुलाबी तस्वीर पेश की है और ऊंचे-ऊंचे वादे किए हैं। यह तो वक्त ही बताएगा कि ये घोषणाएं हकीकत में बदलेंगी या नहीं। इसके लिए वादे निभाने होंगे या फिर नीतियों पर कारगर तरीके से अमल करना होगा।

लेकिन अगर क्रियान्वयन के प्रश्न से हटकर देखें तो ये बजट एक और उद्देश्य की पूर्ति करते हैं। वे उन वास्तविक तथा संशोधित आंकड़ों को सामने लाते हैं जो बीते तीन वर्षों में पेश किए गए बजट में छिपे होते हैं। इस आलेख का उद्देश्य है इन बजटों की मदद से यह आकलन करना कि कोविड के बाद 2021-22 से 2023-24 तक इन राज्यों का प्रदर्शन कैसा रहा? अब इन वर्षों के लिए विश्वसनीय आंकड़े मौजूद हैं। इनकी तुलना इन्हीं वर्षों में केंद्र के बजट में दिखे रुझानों से भी की जा सकती है।

स्वाभाविक रुप से 2021-22 और 2022-23 के लिए वास्तविक आंकड़े मौजूद हैं जबकि चालू वित्त वर्ष के लिए संशोधित आंकड़े हैं। आंध्र प्रदेश और ओडिशा जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उन्हें छोड़कर 20 बड़े राज्यों के बजट आंकड़ों पर नजर डालने पर कई जानकारीपरक सूचनाएं सामने आती हैं।

इन राज्यों के राजकोषीय समेकन के प्रश्नों पर बात करें तो मिलीजुली तस्वीर सामने आती है। कुछ ही राज्य हैं जो बजट में उल्लिखित अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने में चूके हैं। उदाहरण के लिए 2023-24 में सात राज्यों ने अपने घाटे के लिए संशोधित अनुमान पेश किया जो बजट में किए गए उल्लेख से अधिक था। असम, बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और राजस्थान घाटे के लक्ष्य पर टिके नहीं रह सके। कर्नाटक और उत्तर प्रदेश किसी तरह अपने तय लक्ष्य के करीब बने रह सके।

इस प्रदर्शन में कोई रुझान शामिल नहीं था। अगर आप सोचते हैं कि समस्या पूर्वी, पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के साथ है तो फिर तमिलनाडु, महाराष्ट्र और राजस्थान के खराब प्रदर्शन के लिए क्या कहा जाए? कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के साधारण प्रदर्शन को समझ पाना भी मुश्किल है।

जिन राज्यों ने अपने राजकोषीय घाटे में उल्लेखनीय कमी की उनकी सूची और भी दिलचस्प है। ये राज्य हैं: दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, तेलंगाना, गोवा, झारखंड और केरल। यहां इसे केवल इस बात से समझा जा सकता है कि अपेक्षाकृत छोटे राज्यों का राजकोषीय समेकन बड़े राज्यों की तुलना में कहीं बेहतर रहा है। गुजरात और पश्चिम बंगाल जरूर अपवाद हैं।

कोविड के बाद के सालों में राज्यों का राजकोषीय समेकन कैसा रहा? जिन 20 राज्यों ने 2024-25 के लिए बजट पेश किया उनमें से 13 राज्य 2023-24 में राजकोषीय घाटे से जूझ रहे थे जिसका स्तर 2021-22 के स्तर से अधिक था। ये राज्य हैं असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु, गोवा, झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान और त्रिपुरा। यह उल्लेखनीय है कि आज के कुछ मजबूत राज्यों का राजकोषीय घाटा 2021-22 के स्तर से अधिक है।

इस मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, पंजाब, पश्चिम बंगाल, केरल और तेलंगाना। वे केंद्र सरकार का मुकाबला कर सकते है जिसने इन वर्षों के दौरान हर वर्ष घाटे के मोर्चे पर अपना प्रदर्शन बेहतर किया। इस अवधि में उसने घाटे में एक फीसदी की कमी की। चिंता की बात यह है कि कई बड़े राज्य किफायती संचालन के बावजूद घाटे को कम नहीं कर सके।

पूंजीगत व्यय की बात करें तो केंद्र सरकार इसे 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 फीसदी से बढ़ाकर 2023-24 में 3.2 फीसदी करने में कामयाब रही। ऐसा ही कुछ बल्कि इससे बेहतर राज्यों के साथ हुआ। इस अवधि में इन 20 राज्यों का कुल पूंजीगत व्यय उनके राज्य सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में 2.09 फीसदी से बढ़कर 3.36 फीसदी हो गया।

चकित करने वाला प्रदर्शन उन राज्यों का है जिनके पूंजीगत व्यय में सबसे अधिक इजाफा हुआ। वे हैं गोवा, उत्तर प्रदेश, झारखंड और राजस्थान। इन सभी का पूंजीगत व्यय आवंटन बढ़कर एसजीडीपी का दोगुने से अधिक हो गया। असम, उत्तराखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र और त्रिपुरा का पूंजीगत व्यय भी बढ़ा लेकिन कम बढ़ा।

जिन राज्यों के पूंजीगत व्यय में गिरावट नजर आई या बहुत मामूली इजाफा दिखा वे हैं दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और हरियाणा। फिसड्डी राज्यों का अध्ययन करके पता लगाया जाना चाहिए कि आखिर अधोसंरचना विकास को गति देने में कहां कमी रह गई जबकि कोविड के बाद केंद्र सरकार अधोसंरचना विकास पर बहुत जोर दे रही है।

कर संग्रह और राजस्व व्यय में वृद्धि का व्यापक दायरा केंद्र और इन 20 राज्यों के लिए कमोबेश एक जैसा रहा। केंद्र सरकार के राजस्व व्यय की हिस्सेदारी सकल घरेलू उत्पाद की12-13 फीसदी रहा जबकि इन 20 राज्यों का राजस्व व्यय उनके राज्य सकल घरेलू उत्पाद के 13 से 13.5 फीसदी के दरमियान रहा।

वास्तविक अंतर कर राजस्व संग्रह में नजर आता है। केंद्र सरकार ने अपने शुद्ध कर संग्रह को इस अवधि में सकल घरेलू उत्पाद के 7-8 फीसदी के स्तर पर रखने में कामयाबी पाई जो कोविड पूर्व के स्तर से बहुत अधिक नहीं था। इन 20 राज्यों में कर राजस्व राज्य सकल घरेलू उत्पाद के 6.5 फीसदी से 7 फीसदी रहा। परंतु राज्यों को केंद्र के कर हस्तांतरण से काफी राशि हासिल हुई जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 3 से 3.5 फीसदी तक अतिरिक्त थी।

अगर कुछ राज्य इस हस्तांतरण के बाद भी घाटे के लक्ष्य की पूर्ति नहीं कर पाए तो उन पर करीबी नजर रखने की आवश्यकता है। यहां बड़ा सवाल पैदा होता है कि आखिर क्यों राज्य सरकारों के वित्तीय प्रदर्शन को लेकर उतनी बात नहीं होती जितनी केंद्र सरकार के वित्तीय प्रबंधन को लेकर होती है। ऐसा तब है जबकि राज्यों के कुल बजट का आकार केंद्र के बजट से 18 फीसदी अधिक है।

राज्यों की वित्तीय स्थिति का विश्लेषण नहीं होता है जबकि केंद्र के बजट का जमकर विश्लेषण किया जाता है। इसके लिए अक्सर राज्यों के बजट से संबंधित आंकड़ों की कमी को वजह माना जाता है। राज्यों के बजट के आंकड़े न केवल आसानी से उपलब्ध नहीं होते हैं बल्कि अलग-अलग राज्य सरकारें उन्हें अलग-अलग तरह से पेश भी करती हैं। इससे उनकी आपसी तुलना करना मुश्किल हो जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक जरूर राज्यों के बजट का वार्षिक सार प्रस्तुत करता है लेकिन ऐसा कुछ महीने के अंतराल पर किया जाता है।

ऐसे समय पर जबकि केंद्र सरकार राज्यों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है, उनसे अगली पीढ़ी के आर्थिक सुधारों में मदद की अपेक्षा कर रही है, यह एक अच्छा विचार है कि एक संस्थागत प्रणाली विकसित की जाए जिसके तहत राज्यों के बजट आंकड़ों को इस प्रकार एकत्रित और प्रकाशित किया जाए जिससे कि उनकी केंद्र के बजट के साथ तुलना की जा सके। भारत में राज्यों की वित्तीय स्थिति को लेकर अधिक बहस की जरूरत है। इस दिशा में पहला कदम होगा राज्यों के बजट के आंकड़ों के संग्रह और प्रकाशन की बेहतर व्यवस्था।

First Published - March 28, 2024 | 9:34 PM IST

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