हमारे मित्रों और परिजनों ने जैसा बताया और जिस प्रकार की खबरें आ रही हैं उनसे यह बात एकदम स्पष्ट है कि अगर दिल्ली से मुंबई जाने के लिए हवाई यात्रा करना चाहते हैं तो बिना किसी सामान के भी आपको घर से निकलने और मुंबई पहुंचने के बीच कम से कम सात घंटे का समय लगेगा।
अगर आपके साथ सामान भी है और आप गंतव्य पर पहुंचकर अपना सामान दोबारा पाने में लगने वाले समय को भी शामिल कर लें तो यह अवधि आठ से नौ घंटे की हो सकती है। जबकि इस बीच आपकी हवाई यात्रा में लगने वाला कुल समय केवल दो घंटे 15 मिनट का होगा। इस खबर के सामने आने के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या विमान यात्रा के बजाय ट्रेन से सफर करना समय और पैसे के हिसाब से अधिक किफायती नहीं होगा, जबकि अब तक इसका उलटा ही सही माना जाता था।
लेकिन शायद ही किसी को यह पता है कि पिछले सप्ताह ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली हवाई अड्डा देश का सबसे व्यस्त हवाई अड्डा बन गया। शुरुआत में ऐसा लगा कि हवाई अड्डे पर अफरातफरी और भीड़ छुट्टियों का मौसम होने के कारण है। खासकर इसलिए कि महामारी के बाद लोग जमकर घूमने निकल रहे थे। परंतु आंकड़े बताते हैं कि यात्रियों की संख्या में कोविड के पहले की तुलना में कोई खास इजाफा नहीं हुआ था।
स्पष्टता के अभाव में विमानन जगत के कई कारकों को उत्तरदायी ठहराया गया। पहले विमानन कंपनियों से कहा गया कि वे अपनी उड़ानों का समय बदलें और कुछ उड़ानों को भीड़भाड़ वाले टर्मिनल से कम भीड़ वाले टर्मिनल पर ले जाएं। उनसे यह भी कहा गया कि वे पीक टाइम यानी भीड़भाड़ वाली अवधि में उड़ानों की संख्या कम करें। यह अलग बात है कि खुद पीक टाइम की परिभाषा स्पष्ट नहीं थी।
यह अलग बात है कि उड़ानों को रद्द करने तथा उनका समय बदलने का अर्थ था और अधिक गड़बड़ी। जब उड़ानों को नए सिरे से तय करने से भी दिल्ली हवाई अड्डे को व्यवस्थित करने की दिशा में वांछित परिणाम हासिल नहीं हुए तब सरकार ने पांच बिंदुओं वाली एक कार्य योजना तैयार की जिसमें पुराने आदेशों के साथ कुछ नई बातें जोड़ कर हालात को ठीक करने का प्रयास किया गया।
इसमें हर प्रवेश द्वार पर डिजिटल बोर्ड लगाकर प्रतीक्षा समय की जानकारी देना, विमान कंपनियों के चेक इन काउंटर पर अनिवार्य तैनाती, सुरक्षा जांच के लिए स्वचालित ट्रे व्यवस्था, आव्रजन काउंटरों पर अधिक कर्मचारियों की तैनाती और सुबह 5 से 9 बजे के बीच उड़ान कम करना शामिल था। ये उपाय नाकाम होने के बाद अधिकारियों ने संकेत दिया कि हर यात्री द्वारा जैकेट, कोट और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए अलग-अलग ट्रे का इस्तेमाल करने के कारण भी दिक्कत हो रही है।
पांच बिंदुओं वाली कार्य योजना से ध्यान विमानन कंपनियों की ओर स्थानांतरित हो गया और उनसे कहा गया कि वे व्यवस्था बनाएं। सरकार द्वारा कराई गई जांच में पाया गया कि कई विमानन कंपनियों के काउंटर पर कोई व्यक्ति नहीं था। कंपनियों से तत्काल कहा गया कि वे चेक इन काउंटरों पर पर्याप्त कर्मचारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करें। परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर संसद की स्थायी समिति ने दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (डायल) के मुख्य कार्याधिकारी विदेह कुमार जयपुरकर को तलब किया। जाहिर है उनके साथ भी इसी विषय पर चर्चा हुई होगी।
जीएमआर के नेतृत्व वाली डायल अन्य वजहों से भी नजर में है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने डायल को खराब यात्री सेवाओं के लिए नोटिस दिया है और कहा है कि वह उस पर जुर्माना लगा सकता है। संयोग से डायल ने हाल ही में ब्रिटेन की एक हवाई यातायात प्रबंधन कंपनी से क्षमता अध्ययन कराया है। अध्ययन में कहा गया है कि इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की क्षमता को एक दशक में दोगुना बढ़ाकर 14 करोड़ किया जा सकता है।
महामारी के पहले यानी 2019 में इसकी क्षमता 6.9 करोड़ थी। हवाई अड्डों की क्षमता के बारे में 2015 में मैकिंजी द्वारा पेश की गई वैश्विक रिपोर्ट में कुछ अहम बातें कही गई थीं। लंदन, टोक्यो और पेइचिंग जैसे दुनिया के कुछ सर्वाधिक व्यस्त हवाई अड्डों में यात्रियों की वृद्धि में स्थिरता आ रही थी और हवाई अड्डों पर भीड़ के लिहाज से शहर पीछे थे। अध्ययन में स्लॉट के कारोबार को औपचारिक बनाने के विषय पर भी राय देते हुए कहा गया कि यह काफी मूल्यवान साबित हो सकता है। इसके अलावा मैकिंजी रिपोर्ट में विमानन कंपनियों द्वारा विमानतल के विस्तार में मदद का विचार भी रखा गया।
आठ वर्ष पहले सामने आए इन विचारों में से कुछ पर आज भी भारतीय संदर्भों में विचार किया जा सकता है। परंतु फिलहाल कुछ ताजा हल जरूरी हैं, न कि विमानन अधिकारियों को तलब करना और कंपनियों को दोष देना। अब वक्त आ गया है कि समुचित कदम उठाए जाएं।
जैसा कि विमानन क्षेत्र के एक अधिकारी ने बताया, वर्तमान समस्या चक्रीय भी है और ढांचागत भी। चक्रीय से तात्पर्य उड़ानों की संख्या बढ़ने, व्यस्ततम समय में उड़ानों और सुरक्षा व्यवस्था की प्रतिक्रिया में लचीलापन न होने से है। ढांचागत समस्या यह है कि यात्री जिस जगह बोर्डिंग के पहले वाली औपचारिकता पूरी करते हैं उसका आकार बाकी जगहों की तुलना में बहुत छोटा है।
उदाहरण के लिए शॉपिंग वाले इलाके में कभी भीड़ नहीं होती। साथ ही विमानन कंपनियां अक्सर टर्मिनल 1 या टर्मिनल 2 के बजाय टर्मिनल 3 से सेवा देना चाहती हैं जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का एकीकृत टर्मिनल है। दिल्ली हवाई अड्डे पर भीड़भाड़ की समस्या का मध्यम या दीर्घावधिक का हल यही है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एक और हवाई अड्डा बनाया जाए।
सबकी निगाहें नोएडा के जेवर एयरपोर्ट पर हैं जिसके लिए ज्यूरिख एयरपोर्ट को साझेदार बनाया गया है और अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वहां अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता, किफायत और सुरक्षा आदि का पूरा ध्यान रखा जाए, बजाय अन्य बातों के। ज्यूरिख एयरपोर्ट को करीब दो दशक से सर्वश्रेष्ठ हवाई अड्डा ठहराया जा रहा है।
वहां बिना कई जगह जांच परख के आसानी से हवाई अड्डे के गेट पार किए जा सकते हैं। आशा है कि जेवर हवाई अड्डा भी ऐसा ही होगा। हवाई अड्डे पर वाणिज्यिक गतिविधियों को नहीं बल्कि यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखना चाहिए। ऐसा करके ही हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण की दिशा में बढ़ा जा सकेगा।