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कमोडिटी की कराह

Last Updated- December 05, 2022 | 4:59 PM IST

पिछले हफ्ते दुनिया भर में कमोडिटी की कीमतों में अचानक तगड़ी गिरावट दर्ज की गई। इस महीने के शुरू में कमोडिटी की कीमतें अब तक की सर्वाधिक ऊंचाई पर पहुंच गई थीं।


लिहाजा इसे अचानक लगे तगड़े झटके से ज्यादातर पर्यवेक्षकों को हैरत हुई। हैरत की एक बड़ी वजह यह भी थी कि पिछले 50 साल में हफ्ते भर के भीतर कमोडिटी ने इतना गोता कभी नहीं लगाया था। हफ्ते भर के दौरान हुई सबसे तेज गिरावट का पिछला रेकॉर्ड दिसंबर 1980 में उस वक्त बना था, जब पूरे हफ्ते में कमोडिटी की कीमतों में 9.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। उस वक्त अचानक हुई इस गिरावट के पीछे अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले का हाथ था।


अमेरिकी फेडरल रिजर्व के निर्देश के बाद उस वक्त अमेरिकी बैंकों ने ब्याज दरों में 20 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी थी।इस बार भी कुछ चौंकाने वाला ही हुआ है। सोने, कच्चे तेल, धातुओं और खाद्य कमोडिटी मार्केट (जिनमें मक्का, गेहूं और खाद्य तेल शामिल हैं) में अच्छीखासी गिरावट दर्ज की गई है।यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि इस नाटकीय गिरावट का अंदाजा पहले से किसी को भी नहीं था। पर यह नहीं कहा जा सकता है इस गिरावट की व्याख्या करना ही नामुमकिन है।


पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से कमोडिटी की कीमतें कुलाचे भर रही थीं, इसके पीछे छिपे कारकों को लेकर बातें सामने आ रही थीं। मिसाल के तौर पर, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कच्चे तेल समेत दूसरी कई कमोडिटीज की कीमतें बढ़ने के पीछे सटोरियों की भूमिका होने का अंदेशा जताया था।


दरअसल, शेयर बाजारों की पतली हालत और अमेरिकी डॉलर के लगातार कमजोर होने की वजह से कमोडिटी को निवेश का बेहतर विकल्प बताया जाने लगा था। लोग कमोडिटी (खासतौर पर सोना) की खरीदारी करने लगे। पर जैसे ही इस आशय की खबरें आईं कि अमेरिका और दूसरे कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं से संकट के बादल छंटने वाले हैं और मंदी का दौर खत्म होने वाला है, इस आशय की खबरें बलवती होने लगीं कि मांग में कमी होने की वजह से आने वाले दिनों में कमोडिटी की कीमतों की ऊंची उड़ान कायम नहीं रहेगी।


ऐसे में कमोडिटी मार्केट के निवेशक बिकवाली में जुट गए और नतीजा पिछले हफ्ते की गिरावट के रूप में सामने आया। कच्चे तेल की कीमतें एक दफा फिर से 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से नीचे आ गईं। गेहूं, कॉर्न, खाने के तेल समेत कुछ खाद्य कमोडिटी, जो कच्चे तेल के वैकल्पिक स्रोत (बायो फ्यूल) के तौर पर देखे जाते हैं, की कीमतों में भी कमी देखने को मिली, जो 20 फीसदी से भी ज्यादा थी।


अब जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में कटौती किए जाने के बाद डॉलर एक दफा फिर से मजबूत होने लगा है, ऐसे में निवेशकों की वापसी दोबारा शेयर बाजारों की ओर होने लगी है। इससे यह बात तो साबित हो ही गई है कि स्टॉक और कमोडिटी मार्केट आज भी निवेश के 2 अहम स्रोत हैं।

First Published - March 24, 2008 | 11:16 PM IST

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