बुधवार को संसद में प्रस्तुत वित्त वर्ष 2023-24 के बजट के बारे में मैं यह कहूंगा कि मोदी सरकार के शासनकाल के बेहतर बजट में से एक है। वर्तमान वित्त मंत्री ने अब तक जितने बजट पेश किए हैं उनमें संभवत: यह सबसे शानदार है।
बजट में ऐसी कोई बात नहीं कही गई है जिससे किसी को हानि हो। वित्त मंत्री ने पूंजीगत व्यय जारी रखने को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता जताई है और अर्थव्यवस्था को भी प्रोत्साहित करने के प्रयास किए हैं। बजट में सरकार ने कोई लोकलुभावन घोषणा करने से परहेज किया है।
आंकड़े इन बातों को और अधिक स्पष्ट करते हैं। बजट में नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत मानते हुए प्रावधान किए गए हैं। केंद्र का शुद्ध कर राजस्व 11.7 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान जताया गया है। जीडीपी में वृद्धि के लिहाज से कर बढ़ोतरी (बॉयंसी) को सामान्य कहा जा सकता है।
निगमित कर और आयकर दोनों में 10.5 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान व्यक्त किया गया है। चालू वित्त वर्ष की तरह ही विनिवेश से प्राप्त रकम 51,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) एवं सार्वजनिक उपक्रमों से लाभांश प्राप्तियां 48,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष में 41,000 करोड़ रुपये रहा था। वित्त वर्ष 2022 में यह आंकड़ा 1,01,000 करोड़ रुपये रखने का लक्ष्य रखा गया था।
सार्वजनिक उपक्रमों से भी लाभांश 43,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है। सरकार ने इन आंकड़ों को लेकर सतर्क अनुमान लगाए हैं और किसी तरह का अति उत्साह दिखाने से परहेज किया है।
व्यय की बात करें तो अच्छी बात यह है कि सरकार ने पूंजीगत व्यय बढ़ाने पर जोर दिया है। पूंजीगत खाते से व्यय 37 प्रतिशत बढ़कर 10 लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव दिया गया है। प्रभावी पूंजीगत व्यय 30 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है। राजस्व खाते से व्यय में केवल 1.25 प्रतिशत बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया है। इस मद में व्यय वित्त वर्ष 2023 के 3,74,707 लाख करोड़ रुपये से कम होकर 5,21,585 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है।
पीएम-किसान योजना के लिए प्रावधान नहीं बढ़ाया गया है और इसे 60,000 करोड़ रुपये पर अपरिवर्तित रखा गया है। दूसरी तरफ मनरेगा के लिए रकम 89,400 करोड़ रुपये से घटाकर 60,000 करोड़ रुपये कर दी गई है। ऐसा बिल्कुल नहीं लग रहा है कि यह बजट अगले वर्ष आसन्न लोकसभा चुनावों को देखकर तैयार किया गया है।
बजट में राजस्व व्यय बढ़ाने से परहेज किया गया है और राजस्व के मद में बढ़ोतरी पूरी तरह पूंजीगत व्यय बढ़ाने पर इस्तेमाल की जाएगी। वित्त मंत्री ने राजकोषीय मोर्चे पर अपनी पुरानी प्रतिबद्धता कायम रखने का निर्णय लिया है। वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.9 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया है।
उन्होंने एक बार फिर कहा है कि वित्त वर्ष 2026 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.5 प्रतिशत तक सीमित रखने रखने की हरसंभव कोशिश की जाएगी। इस तरह, प्रभावी राजस्व घाटा 2,85,000 करोड़ रुपये कम हो जाएगा और यह जीडीपी का 2.9 प्रतिशत से कम होकर वित्त वर्ष में 1.7 प्रतिशत रह जाएगा। यह एक सही दिशा में उठाया गया कदम है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि सरकार ने उधारी कार्यक्रम का लक्ष्य 3 प्रतिशत (35,000 करोड़ रुपये) बढ़ा दिया है।
बजट में एक और सकारात्मक कदम उठाते हुए आयकर दर में बदलाव किया है। वित्त मंत्री ने भारतीय करदाताओं को 35,000 करोड़ रुपये कर कटौती का तोहफा दिया है। हालांकि यह आंकड़ा भारी भरकम तो नहीं माना जा सकता मगर इस उपाय से बड़ी संख्या में करदाताओं को लाभ होगा और निश्चित तौर पर इससे सबका उत्साह भी बढ़ेगा। सरकार ने शुरुआती छूट की सीमा 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 7 लाख रुपये कर यह तोहफा दिया है।
कर दायरे में भी कुछ बदलाव किए गए हैं और इसके तहत उच्चतम कर की प्रभावी दर 42.75 प्रतिशत से कम कर 39 प्रतिशत कर दी गई है। ये सभी बदलाव नई कर प्रणाली के तहत किए गए हैं। आने वाले समय में अधिकांश करदाता इस नई कर प्रणाली की जद में आ जाएंगे। कर कटौती से उपभोग को बढ़ावा मिलेगा और इससे उपभोक्ताओं की धारणा भी मजबूत होनी चाहिए। खासकर, मध्य आय वर्ग के करदाताओं का उत्साह जरूर बढ़ना चाहिए।
शहरी क्षेत्र में आधारभूत संरचना मजबूत करने के लिए एक नई योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत प्राथमिक क्षेत्र को कर्ज आवंटन का लक्ष्य पूरा नहीं करने वाले वित्तीय संस्थान बची रकम इस योजना के लिए देंगे। माना जा रहा है कि हरेक साल इस योजना के लिए 10,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त रकम का बंदोबस्त हो जाएगा।
बजट में रेलवे के लिए पूंजीगत व्यय बढ़ाया गया है और इसे अब 2,40000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह रेलवे के लिए पूंजीगत व्यय का सर्वाधिक आंकड़ा है और वित्त वर्ष 2014 के पूंजीगत आवंटन की तुलना में नौ गुना अधिक है। बजट में हरित ऊर्जा और हाइड्रोजन के लिए भी प्रावधान किए गए हैं। सरकार हरित ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाने को लेकर गंभीर दिख रही है और इस योजना के लिए एक बड़ी रकम के प्रावधान करने की प्रस्ताव दिया है।
सरकार ने कारोबारी पहचान प्रक्रिया भी सरल बनाने की बात कही है। सरकार ने जोखिम आधारित एक नई केवाईसी ढांचा लाने की बात कही है। स्थायी खाता संख्या (पैन) का इस्तेमाल करने वाली सभी कंपनियों के लिए पैन सभी डिजिटल लेनदेन के लिए विशिष्ट पहचान के तौर पर मान्य होगा।
विभिन्न सरकारी एजेंसियों में एक ही दस्तावेज जमा करने की जटिलता दूर करने और एकीकृत प्रक्रिया शुरू करने पर भी चर्चा चल रही है। पर्यटन क्षेत्र के लिए भी बजट में कुछ प्रावधान किए गए हैं। इसके अलावा 45 लाख से अधिक विद्यार्थियों के लिए राष्ट्रीय ऐप्रेंटिसशिप योजना शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया है। एमएसएमई क्षेत्र के लिए नई 9,000 करोड़ रुपये की ऋण गारंटी योजना भी स्वागतयोग्य कदम है।
राज्यों को राजकोषीय घाटा राज्य जीडीपी के 3.5 प्रतिशत तक रखने की अनुमति दी गई है। बिजली क्षेत्र में सुधार के लिए उन्हें अलग से भी रियायत दी गई है। इस तरह, जो राज्य अपनी निर्धारित उधारी सीमा का पूरा इस्तेमाल करना चाहते हैं उन्हें अपने बिजली बोर्ड को दुरुस्त और सक्षम बनाने के लिए कदम उठाने होंगे।
बजट में पूंजीगत लाभ कर के मोर्चे पर कुछ नहीं किया गया है। सरकार इसमें कोई बदलाव करती को शेयर बाजार में निवेशकों को झटका लगा होता। कुल मिलाकर मुझे बजट के प्रावधान विश्वसनीय लग रहे हैं। राजकोषीय और अन्य आंकड़ों को लेकर सतर्क अनुमान दिए गए हैं और पूंजीगत व्यय तथा उपभोग को बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया है। इस बजट की इसलिए भी सराहना की जानी चाहिए कि यह अगले साल होने वाले आम चुनाव से पूर्व अंतिम बजट होगा।
वित्त मंत्री ने लोक लुभावन घोषणाएं करने से दूर रही हैं और निजी क्षेत्र से निवेश बढ़ाने के अपने लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही हैं। बजट में ऐसा कोई भी बिंदु नहीं है जिसे पसंद नहीं किया जाएगा। बजट में सुधार के विशेष उपाय किए जा सकते थे मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह चुनाव से पहले का पूर्ण बजट है। सभी परिस्थितियों पर विचार करने के बाद यह कहा जा सकता है कि वित्त मंत्री ने अच्छा बजट पेश किया है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)