भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बोर्ड ने पिछले सप्ताह भारत सरकार को वर्ष 2022-23 के लिए अधिशेष रकम के रूप में 87,416 करोड़ रुपये हस्तांतरित करने का निर्णय लिया। सरकार ने RBI, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों से अधिशेष रकम के रूप में 48,000 करोड़ रुपये प्राप्त होने का लक्ष्य रखा था।
RBI ने वर्ष 2021-22 के लिए जितनी अधिशेष रकम हस्तांतरित की थी उसकी तुलना में यह रकम लगभग तीन गुना है। मगर RBI के लेखा वर्ष में बदलाव के कारण केवल नौ महीने पर विचार किया गया था। अनुमान जताया जा रहा है कि केंद्रीय बैंक के विदेशी मुद्रा बाजार परिचालन के कारण अधिशेष रकम में बढ़ोतरी हुई है।
चूंकि, RBI ने इस मद में तय कुल बजट रकम से 82 प्रतिशत अधिक राशि हस्तांतरित करने का निर्णय लिया है इसलिए बाकी चीजें अपरिवर्तित रहने पर सरकार को राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 5.9 प्रतिशत से कम करने में मदद मिलनी चाहिए। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का भी वित्तीय प्रदर्शन ठीक रहा है इसलिए इस वर्ष के अंत तक सरकार को इस मद में बड़ी रकम मिल सकती है।
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हालांकि, दूसरे ऐसे मद भी हैं जो इस वित्त वर्ष में वास्तविक राजकोषीय आंकड़ों पर प्रभाव डाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, पिछले सप्ताह इस समाचार पत्र में खबर प्रकाशित हुई थी कि सरकार चालू वित्त वर्ष में कोई नया विनिवेश या निजीकरण करने से परहेज कर सकती है और 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद ही ये कार्यक्रम शुरू हो पाएंगे।
सरकार ने 2023-24 के लिए विनिवेश से 51,000 करोड़ रुपये प्राप्त होने का लक्ष्य रखा था। अगर चालू वर्ष में कुछ उपक्रमों में सरकार हिस्सेदारी बेचती है तब भी सरकार विनिवेश लक्ष्य से काफी पीछे रह सकती है। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि महंगाई दर कम रहने से कर राजस्व के मोर्चे पर संग्रह कमजोर रह सकता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2022-23 के दौरान महंगाई दर औसत 9.5 प्रतिशत के स्तर पर रहने के बाद थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई ऋणात्मक हो गई है।
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक के कुछ दिनों पहले आए एक नोट में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के अंत में नॉमिनल (महंगाई समायोजित किए बिना) GDP लगभग 9 प्रतिशत रह सकती है। केंद्रीय बजट में नॉमिनल GDP 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है।
व्यय के मोर्चे पर बात करें तो उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी एक बार फिर बजट अनुमान से अधिक रह सकती है। मॉनसून को लेकर अनिश्चितता भी बजट पर दबाव बढ़ा सकती है। इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव और अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं जिन्हें देखते हुए सरकार कुछ खास क्षेत्रों में व्यय बढ़ा सकती है।
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वैसे तो चालू वित्त वर्ष शुरू हुए कुछ ही समय हुए हैं मगर नॉमिनल GDP में तेज गिरावट से सरकार के लिए राजकोषीय घाटा सीमित रखने का तय लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है। यह ध्यान में रखना जरूरी है कि चालू वित्त वर्ष में वास्तविक राजकोषीय आंकड़े मध्यम अवधि तक असर डाल सकते हैं। सरकार ने वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटा GDP का 4.5 प्रतिशत से नीचे रखने का लक्ष्य रखा है।
इसका अप्रत्यक्ष रूप से यह आशय है कि अगले दो वर्षों के दौरान घाटा सालाना 0.7 प्रतिशत दर से कम करना होगा। अगर सरकार चालू वित्त वर्ष में घाटा 0.5 प्रतिशत अंक कम नहीं कर सकी तो उक्त लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल हो जाएगा। मध्यम अवधि में वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर नरम रह सकती है जिसका असर भारत की संभावनाओं पर भी पड़ेगा और राजकोषीय घाटा कम करने का दबाव और बढ़ जाएगा।
यद्यपि राजकोषीय घाटा GDP का 4.5 प्रतिशत से कम रखने का लक्ष्य भी अधिक है इसलिए अगले कुछ वर्षों तक राजकोषीय समेकन कम करने की जरूरत को बढ़ा-चढ़ा कर पेश नहीं किया जा सकता है। ऋण का बोझ और सामान्य सरकारी घाटा अधिक होने से सरकार को ब्याज के मद में अधिक भुगतान करना होगा। इसे देखते हुए पूंजीगत व्यय बढ़ाकर आर्थिक वृद्धि को समर्थन देना सरकार के लिए कठिन हो जाएगा।