आम बजट में देश के कारोबारी जगत की इच्छाओं को पूरा करने से अधिक जरूरी है कि नीतिगत खामियों से बचा जाए। बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य
खबरों के मुताबिक वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बजट पूर्व बैठक में उद्योग जगत की ओर से यह मांग की गई है कि उन कंपनियों को प्रत्यक्ष कर दरों में राहत प्रदान की जाए जिनकी कर योग्य आय 20 लाख रुपये तक है।
इसके अलावा पेट्रोल और डीजल कीमतों में उत्पाद शुल्क कम करने, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA ) के तहत न्यूनतम मजदूरी में इजाफा करने तथा किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि अथवा पीएम किसान के तहत दी जाने वाली राशि बढ़ाने की बातें भी शामिल हैं।
एक औद्योगिक संगठन ने तो वस्तु एवं सेवा कर (GST) को तीन दरों वाली प्रणाली में बदलने तथा पूंजीगत लाभ कर के जटिल ढांचे को सरल करने की भी मांग की।
अब सवाल उठता है कि सरकार की इन अनुशंसाओं को स्वीकार करने और जुलाई में पेश होने वाले बजट में इनकी घोषणा करने की क्या संभावना है? इन अनुशंसाओं से परे उन अहम मुद्दों का आकलन करना भी जरूरी है जो मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में नजर आ सकते हैं।
विभिन्न जीएसटी दरों को तीन दरों में समाहित करने की मांग उपयुक्त है। ऐसा करके राजस्व निरपेक्ष दर को बढ़ाया जा सकता है और कर संग्रह में सुधार किया जा सकता है। परंतु आम बजट में ऐसी घोषणाओं की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।
केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधित्व वाली एक समिति इस मसले का परीक्षण कर रही है और इस समिति की अनुशंसाओं के आधार पर जीएसटी परिषद इस पर निर्णय ले सकती है। क्या वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट में जीएसटी दरें कम करने के सवाल पर केंद्र का रुख स्पष्ट करेंगी? लगता तो नहीं।
वित्तीय और गैर वित्तीय परिसंपत्तियों के लिए एक समान सरल पूंजीगत लाभ कर ढांचे की मांग भी उचित ही है। यह अनुशंसा विशेष रुचि का विषय होगी जिसमें उद्योग संगठन की मांग है कि वित्तीय परिसंपत्तियों पर दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर लगाने के लिए धारण अवधि को 12 महीने के समान स्तर पर लाया जाना चाहिए तथा दरों को 10 फीसदी करना चाहिए।
इसी प्रकार अल्पावधि के पूंजीगत लाभ कर की दर की बात करें तो वित्तीय परिसंपत्तियों के लिए इसे 15 फीसदी होना चाहिए। पूंजीगत लाभ के ढांचे को सरल और पारदर्शी बनाने का सुझाव उचित है। इसमें सुधार का मूल विचार कुछ वर्ष पुराना है। अब सरकार को इस पर अंतिम निर्णय लेना चाहिए।
परंतु क्या सरकार नए ढांचे को बजट के माध्यम से पेश करेगी? बीते कई वर्षों के दौरान आम बजट के भाषणों में ऐसी घोषणाएं नहीं की गई हैं जो शेयर बाजार पर असर डाल सकती हों।
सरकार नहीं चाहेगी कि शेयर बाजार के किसी भी हिस्से को नकारात्मक ढंग से प्रभावित कर सकने वाली किसी भी अलोकप्रिय खबर को बजट के सकारात्मक प्रभावों या उसके कर राहत संबंधी प्रस्तावों के प्रभावों को नष्ट करने दिया जाए। ऐसे में बजट में शायद उन्हीं बातों को शामिल किया जाए जो शेयर बाजार पर सकारात्मक असर डालें।
पूंजीगत लाभ कर व्यवस्था के पुनर्गठन जैसी बातें, जो कुछ लोगों को खुश तो कुछ अन्य को नाखुश कर सकती हैं, उनसे शायद बचा जाए। वर्ष2024-25 के बजट में अलग-अलग तरह की संपत्तियों पर पूंजीगत लाभ कर की जरूरतों को सरल किया जा सकता है, लेकिन वास्तविक कार्य इस वर्ष बाद में करने के लिए एक अधिकारप्राप्त समिति पर छोड़े जा सकते हैं।
मनरेगा (MGNREGA) के तहत मजदूरी बढ़ाने और पीएम किसान योजना के तहत किसानों को दी जाने वाली राशि बढ़ाने की बात मोदी सरकार के लिए मौजूदा राजनीतिक माहौल में अनुकूल साबित हो सकती है।
चुनाव के बाद हुए हालिया सर्वेक्षण बताते हैं कि ग्रामीण भारत में सत्ताधारी दल को लेकर रुचि कम हुई है। ऐसे में 2024-25 का बजट मनरेगा और पीएम किसान की राशि के प्रति झुकाव वाला हो सकता है। मनरेगा के मेहनताने में हाल के वर्षों में बढ़ी महंगाई नजर आनी चाहिए। इसी तरह पीएम किसान योजना के तहत 2019 में 6,000 रुपये की जो वार्षिक राशि तय की गई थी उसमें भी मुद्रास्फीति के हिसाब से उचित इजाफा किया जाना चाहिए।
यह सरकार की राजकोषीय मजबूती की कोशिश के लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए क्योंकि बेहतर कर राजस्व और रिजर्व बैंक से हासिल होने वाले अधिशेष से इसकी आसानी से भरपाई हो जानी चाहिए।
बड़ी बहस इस बात पर होगी कि मध्य वर्ग को आय कर में राहत देने की बात केंद्र सरकार स्वीकार करेगी या नहीं। वर्ष 2021-22 में लगभग 6.8 करोड़ भारतीयों ने आयकर रिटर्न दाखिल किया। इनमें से 5.8 करोड़ लोगों की सकल वार्षिक आय 2.5 लाख से 20 लाख रुपये के बीच थी। तब से अब तक इस आय वर्ग के लोगों की संख्या में इजाफा हुआ होगा। अगर करदाताओं की इस श्रेणी को कर राहत दी जाती है तो इससे बड़ी तादाद में लोग लाभान्वित होंगे।
परंतु अगर बजट में ऐसी राहत की घोषणा की गई तो इससे राजस्व में भी कमी आएगी। उद्योग जगत की दलील है कि कर राहत और मनरेगा तथा पीएम किसान के तहत बढ़ी हुई राशि से खपत मांग बढ़ेगी।
मोदी सरकार ने अब तक मांग बढ़ाने के लिए ऐसी कर राहत पर कम ही यकीन किया है। उसने अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए निवेश बढ़ाने को प्राथमिकता दी। चुनाव के पहले कर राहत देने से कुछ राजनीतिक लाभ मिल भी सकता था। परंतु अब चुनाव हो चुके हैं और मोदी सरकार को प्रत्यक्ष कर पुनर्गठन के वादे को पूरा करना ही होगा। कुछ वर्ष पहले शुरू हुए इन सुधारों को पूरा करना समझदारी भरा होगा।
मध्य वर्ग के लिए कर दरों में कटौती के आधार पर बजट का आकलन करना सही नहीं होगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में अनिश्चितता को देखते हुए पेट्रोल और डीजल पर कर को कम करना जोखिम भर हो सकता है।
बजट का ऐसी मांगों के पूरा होने के आधार पर आकलन करने के बजाय उसका आकलन इस आधार पर होना चाहिए कि यह कम से कम चार नीतिगत कमियों से बच पाता है या नहीं।
पहली, इसे राजकोषीय मजबूती की उस राह से परे नहीं हटना चाहिए जो कोविड के बाद के वर्षों में बजट में रेखांकित की गई। हां, अगर इसके लिए लक्ष्य को एक वर्ष आगे बढ़ाया जाए तो बेहतर होगा।
दूसरा, बजट को कुछ वर्ष पहले शुरू की गई आयात शुल्क बढ़ाने की प्रक्रिया को पलट देना चाहिए। अगर देश की निर्यात वृद्धि को तेज करना है तो आयात शुल्क कम करने की प्रक्रिया एक बार फिर से शुरू करनी चाहिए।
तीसरा, सरकार को अधोसंरचना तैयार करने में निवेश कम करना चाहिए। बीते कुछ वर्षों में सरकार के पूंजीगत व्यय ने अर्थव्यवस्था को गति प्रदान की है। अभी तक निजी निवेश में सुधार के कोई संकेत नहीं नजर आए हैं। आखिर में उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन यानी पीएलआई योजना के तहत क्षेत्रों की तादाद बढ़ाने की चाह पर अंकुश लगना चाहिए। पीएलआई योजना की कई लागत ऐसी हैं जो केंद्र के साथ विनिर्माण क्षेत्र को भी चुकानी पड़ रही हैं। ऐसे में प्रतिस्पर्धा सुधार की चिंता किए बिना सब्सिडी पर उसकी निर्भरता बढ़ रही है।
2024-25 के बजट में शायद उद्योग जगत की कर राहत, पेट्रोल-डीजल में शुल्क कटौती, पूंजीगत लाभ कर पुनर्गठन और मनरेगा तथा पीएम किसान योजना के तहत दी जाने वाली राशि बढ़ाने जैसी सारी इच्छाएं पूरी नहीं हो सकें। परंतु यह दलील उचित है कि अगर चार नीतिगत कमियों से बचा जाए तो देश के उद्योग जगत को ही लाभ होगा।