किसी आम नागरिक के मन में शायद ‘ब्लॉकचेन’ शब्द से नकाबपोश व्यक्तियों की छवि बनती होगी जो दलाल पथ के अंधेरे कोनों में एक दूसरे के कान में कुछ फुसफुसाते होंगे और कानून तथा प्रवर्तन अधिकारियों से बचते फिरते हुए अवैध मौद्रिक लेनदेन करके अपने लिए पैसे बनाते होंगे।
ब्लॉकचेन तकनीक की सच्चाई इससे एकदम उलट है। यह दुनिया भर में लेनदेन की लागत को बहुत कम करने वाली तकनीक है। इसमें न तो महंगे दलालों, बैंकरों और अधिवक्ताओं की आवश्यकता है और न ही अन्य लोगों की जो भारी भरकम शुल्क वसूलते हैं। उदाहरण के लिए एक साधारण शेयर संबंधी लेनदेन को एक सेकंड से भी कम समय में निपटाया जा सकता है। इस प्रक्रिया में प्राय: कोई मानव हस्तक्षेप भी नहीं होता है। निस्तारण यानी शेयर के स्वामित्व के हस्तांतरण में अभी एक सप्ताह का समय लग सकता है। ब्लॉकचेन को अपनाने से यह काम तत्काल हो सकेगा।
यह संयोग नहीं है कि पहला ब्लॉकचेन यानी बिटकॉइन सन 2008 के वित्तीय संकट के तुरंत बाद आम जनमानस के सामने आया। यह वह समय था जब मीडिया और आम जनता के बीच स्थापित वित्तीय संस्थानों और उपायों को लेकर गहरी नाराजगी थी। दस वर्ष बाद स्थापित वित्तीय संस्थानों की किस्मत में आ रहा उतार-चढ़ाव शायद जवाबदेह और गहराई से विचार करने वाले लोगों को ब्लॉकचेन को गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित कर रहा है।
मेरा मानना है कि यह बात दुखद है कि बिटकॉइन, ब्लॉकचेन तकनीक का वह पहला उत्पाद है जिसने लोगों का ध्यान खींचा। अगर औषधि और उर्वरक क्षेत्र के बजाय गैर पुनर्चक्रीय प्लास्टिक रासायनिक तकनीक का पहला सुर्खियों में आने वाला उत्पाद होता तो सिंथेटिक केमिस्ट्री का क्या होता?
आर्थिक और वित्तीय जगत के विद्वान भी ब्लॉकचेन पद्धति के सोच को लेकर विचलित हैं: एक लेनदेन पूरा होने के बाद इसे एक नेटवर्क के जरिये भेजा जाता हैं जहां दुनिया भर के कंप्यूटर आपस में जुड़े हुए हैं। ये कंप्यूटर अल्गोरिदम का इस्तेमाल करते हैं, लेनदेन की वैधता सुनिश्चित करते हैं और ऐसे वैध लेनदेन को ब्लॉक में एकत्रित करके आगे बढ़ाया जाता है।
आप विस्मित हो सकते हैं कि इस प्रक्रिया में लेनदेन को वैध ठहराने के लिए किसी अधिवक्ता या बैंकर जैसे विशेषज्ञ की जरूरत नहीं पड़ती? केवल कुछ लोग इसे मंजूरी देते हैं और अल्गोरिदम इसकी वैधता स्थापित करता है?
यहां एक मिनट के लिए रुकिए और विशेषों बनाम आम आदमी के विचारों के बारे में अपनी मान्यताओं का परीक्षण कीजिए। अगर कोई ऐसा प्रस्ताव रखता है कि जिस तरह लोकसभा चुनाव के जरिये सांसद चुने जाते हैं और फिर वे हमारा प्रधानमंत्री चुनते हैं, उसी तरह इन चुनावों में मतदान का अधिकार भी केवल कॉलेज डिग्री रखने वाले या एक खास अर्हता रखने वालों को हो तो इस विचार पर नाराजगी की कल्पना की जा सकती है।
हममें से जो लोग आजादी के बाद पैदा हुए हैं उनके लिए ऐसे चुनावों की कल्पना करना मुश्किल है जहां देश के हर नागरिक को अपना नेता चुनने का अधिकार न हो।
जब 18वीं सदी में ब्रिटिश संसद में प्रतिनिधि भेजने के लिए मतदान की शुरुआत हुई तो इंगलैंड और वेल्स में कुल 2.14 लाख लोग ही मतदान की अर्हता रखते थे। यह तादाद कुल आबादी के 3 फीसदी से भी कम थी। ब्रिटेन ने सासंद चुनने के लिए मतदान की प्रक्रिया इसलिए शुरू की ताकि 19वीं सदी में बाकी के यूरोप में बनने वाली स्थिति से बच सके। यानी यह सुधार क्रांति के खतरे को देखते हुए शुरू किया गया। विद्वान इस बात पर सहमत होंगे कि मतदान के अधिकार ने 20वीं सदी में ब्रिटेन की राजनीतिक स्थिरता में काफी योगदान किया।
तब से हम सभी खासतौर पर सन 1951 के बाद भारत में रहने वाले लोगों ने यही सीखा कि किसे चुना जाना चाहिए और किसे नहीं इसे लेकर तथाकथित आम जनता और विशेषज्ञों के नजरिये में कोई खास फर्क नहीं है। ब्लॉकचेन तथा उससे संबंधित तकनीकों को संदेह की दृष्टि से देखे जाने की एक वजह इसकी बुनियाद में छिपी है। 30 अक्टूबर, 2008 को एक व्यक्ति जिसने अपना नाम सातोषी नाकामोतो बताया, उसने एक श्वेत पत्र जारी करके बिटकॉइन नामक डिजिटल मुद्रा के बारे में जानकारी दी। उसने कहा कि यह इलेक्ट्रॉनिक नकदी सीधे एक पक्ष से दूसरे पक्ष को भेजी जा सकेगी और इसमें किसी वित्तीय संस्थान की आवश्यकता नहीं। बिटकॉइन नेटवर्क की शुरुआत 3 जनवरी, 2009 को हुई और प्रत्येक बिटकॉइन की कीमत 0.0008 डॉलर रखी गई और अब इसका बाजार मूल्य 60,000 डॉलर या उससे अधिक है।
इसके इर्दगिर्द रहस्य उस समय गहरा होने लगा जब दो वर्ष बाद 23 अप्रैल, 2011 को नाकामोतो ने बिटकॉइन के अपने साथी को एक विदाई मेल लिखकर कहा कि अब वह दूसरी चीजों की ओर आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने अपने मेल में यह आश्वस्ति भी दी कि बिटकॉइन का भविष्य अच्छे हाथों में है। तब से उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है और इससे ब्लॉकचेन को लेकर संदेह और बढ़े हैं। ब्लॉकचेन एक डिजिटल बहीखाता है जो विभिन्न पक्षों को यह इजाजत देता है कि वे बिना किसी केंद्रीय प्राधिकार को विश्वसनीय बिचौलिया बनाए लेनदेन करें। इस बहीखाते में लेनदेन को ब्लॉक्स में एकत्रित किया जाता है जो एक दूसरे से इस तरह बंधे होते हैं कि इसका एक गणितीय इतिहास तैयार होता है। यह कोई नई तकनीक नहीं है बल्कि यह मौजूद तकनीक के इस्तेमाल की एक नवाचारी व्यवस्था है।
वल्र्ड वाइड वेब और ईमेल को विश्व स्तर पर इसलिए अपनाया जा सका क्योंकि उसके साथ टीसीपी/आईपी जैसी तकनीक जुड़ी थी। टीसीपी/आईपी के निर्माण के पहले इलेक्ट्रॉनिक संचार व्यवस्था को दुनिया भर में प्रसारित कर पाना संभव नहीं था। जिस तरह टीसीपी/आईपी ने विश्व स्तर पर व्यक्तिगत संदेश को संभव बनाया उसी तरह बिटकॉइन द्विपक्षीय वित्तीय लेनदेन को संभव बनाता है। ब्लॉकचेन का विकास और रखरखाव भी टीसीपी/आईपी की तरह ही खुला, वितरित और साझा है। दुनिया भर में स्वयंसेवकों की एक टीम ब्लॉकचेन के मूल सॉफ्टवेयर की उसी प्रकार देखरेख और रखरखाव करती है जैसे टीसीपी आईपी तथा अन्य ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का किया जाता है।
ब्लॉक चेन से स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट जैसी क्रांति आएगी। ठीक टीसीपी/आईपी ईमेल और इंस्टैंट मेसेजिंग की तरह यह किन्हीं दो पक्षों के बीच विश्वसनीय लेनदेन और समझौतों की इजाजत देगा और इस दौरान किसी केंद्रीय प्राधिकार, विधिक व्यवस्था या बाहरी प्रवर्तन प्रणाली की भूमिका न होगी। कल्पना कीजिए कि इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा।
(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं)
