वर्ष 2020 के अंत में यह उम्मीद करने की वजह थी कि महामारी का दूसरा वर्ष यानी 2021, पहले वर्ष से बेहतर रहेगा। यदि ऐसा है तो हम भारतीयों ने अपनी गलतियों से गलत आकलन से सही सबक लिए हैं। गत वर्ष लगभग इसी समय प्रकाशित मेरे आलेख के शीर्षक का भाव यही था कि 2020 की गलतियों को मत दोहराइए। उस आलेख में मैंने लिखा था कि वायरस से निजात पाना तो दूर की बात है, अगर वायरस का कोई नया प्रकार आ गया तो जल्दी ही हम सब कोविड महामारी की दूसरी लहर की चपेट में होंगे। मैंने यह चेतावनी भी दी थी कि यदि कहीं ज्यादा तेज गति से संक्रमित करने वाला स्वरूप आबादी में फैल गया तो कोविड-19 के टीके योजना की तुलना में कहीं अधिक जल्दी लगाने पड़ सकते हैं। हालांकि उस समय तक सरकार टीकाकरण को लेकर कोई तार्किक लक्ष्य भी तय नहीं कर रही थी।
मार्च 2021 में भी मैंने अपने इस स्तंभ में ऐसी ही बातें दोहराई थीं। बस इस बार थोड़ी घबराहट के साथ मैंने चेतावनी दी थी कि भारत में पर्याप्त जीनोम सीक्वेंसिंग नहीं हो रही है तथा दूसरी लहर के आने की संभावना तथा देश की टीकाकरण की क्षमता और गति को लेकर हम सब कुछ ज्यादा ही आश्वस्त हैं। उस वक्त हम दु:स्वप्न साबित होने वाली दूसरी लहर से कुछ ही सप्ताह दूर थे। वह लहर जिसने हमारे कई मित्रों और रिश्तेदारों को हमसे छीन लिया। ऐसी परिस्थितियों में जब हम 2021 के बाद 2022 में प्रवेश कर चुके हैं तो अपनी स्थिति के बारे में विचार करना भी हमें परेशान करता है। यह लगभग तय है कि हम एक बार फिर वही गलतियां दोहराएंगे जो ढिठाई, अति आत्मविश्वास और अक्षमताओं के कारण उपजी थीं। हमारे देश में तो इस बात को लेकर भी कोई चर्चा नहीं हो रही है कि हमने अपने लिए टीकाकरण का जो वास्तविक लक्ष्य तय किया था, हम उसे हासिल करने में भी पूरी तरह विफल रहे हैं।
मई 2021 में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने जनता से कहा था कि वर्ष के अंत तक हर वयस्क भारतीय को कोविड टीके की दो खुराक लग जाएंगी। हम उस लक्ष्य से काफी पीछे रह गए हैं। 31 दिसंबर, 2021 तक दो तिहाई से भी कम वयस्कों को टीके लगे हैं। ऐसा टीकों की आपूर्ति में कमी की वजह से नहीं हुआ है। खबरों के मुताबिक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के पास कोविशील्ड की 50 करोड़ खुराक हैं जबकि नोवावैक्स द्वारा बनाए गए टीके की 15 करोड़ खुराक भी उसके पास हैं। जाहिर है केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर सरकार मध्यवर्ती समस्याओं का निराकरण नहीं कर सकी है।
यह बात ध्यान देने लायक है कि अन्य देशों ने भी भारत सरकार की इस नाकामी की कीमत चुकाई है। एसआईआई के टीके की रखी हुई या बेकार होने वाली हर खुराक एक ऐसी खुराक है जो कोवैक्स कार्यक्रम में शामिल नहीं की जा सकी और जो दुनिया में किसी को लग सकती थी। भारत ने एक वर्ष पहले वैश्विक स्तर पर व्यापक टीकाकरण का जो वादा किया था वह तोड़ दिया। बीबीसी की श्रुति मेनन कहती हैं, ‘कोवैक्स कार्यक्रम के तहत 144 देशों को जो 70 करोड़ टीके दिए गए, उनमें चार करोड़ टीके एसआईआई ने मुहैया कराए थे।’ इन टीकों में से केवल 1.2 करोड़ टीके अप्रैल/मई 2021 में आई दूसरी लहर के बाद दिए गए। ब्लूमबर्ग में प्रकाशित एक हालिया आलेख में इस बात की पड़ताल की गई है कि इस वर्ष के आरंभ में भारत जीनोम सीक्वेंसिंग में पीछे क्यों रहा। ध्यान रहे कि ऐसा न होने की वजह से ही वायरस का डेल्टा स्वरूप बहुत अधिक तेजी से फैला। अगर समय रहते इसका पता लगाया जाता तो नए प्रकार का वायरस इस गति से नहीं फैलता। दक्षिण अफ्रीका ने ओमीक्रोन की जिस तरह सीक्वेंसिंग की है उसे देखते हुए तो यह और भी अजीब लगता है। बहरहाल इन बातों के बीच वास्तविक प्रश्न यह है कि हाल ही में समाप्त हुए वर्ष में हाथ लगी नाकामी के बावजूद आखिर क्यों भारत में बहुत कम लोगों ने जांच और सीक्वेंसिंग को जिम्मेदार ठहराया। क्या तब से अब तक इसमें कोई सुधार हुआ है?
शायद बीते वर्ष की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि हम खयाली पुलाव पकाते रहे। हममें से कई लोगों ने गत वर्ष यह सोचते हुए नए वर्ष में प्रवेश किया था कि हमारे देश का वातावरण वायरस के अनुकूल नहीं है, हमने बचपन में जो टीकाकरण कराया है और हमारा सामना नाना प्रकार के वायरसों से हो चुका है इसलिए हम कोविड महामारी को लेकर दूसरे देशों की तुलना में कम जोखिम में हैं। यह अपवाद होने का भ्रम बुरी तरह गलत साबित हुआ। एक वर्ष पहले हमें लगा था कि हालात अपेक्षाकृत जल्दी सामान्य हो जाएंगे। हमें लगने लगा था कि मास्क लगाना और शारीरिक दूरी बरतना बोर करने वाला काम है। ये सारे अनुमान न केवल गलत साबित हुए बल्कि 2021 के आगे बढऩे के साथ-साथ इन्हें न अपनाना खतरनाक होता गया। हमने 2022 में एक नए रूप वाले वायरस के संक्रमण के साथ प्रवेश किया है। इस बार भी हम उसी निराधार आत्मविश्वास के शिकार हैं। हम मान रहे हैं कि हमने पर्याप्त टीकाकरण कर लिया है क्योंकि हमारे यहां टीकाकरण के आंकड़े दूसरे देशों से बेहतर हैं। यह भी कि आखिरकार इस वर्ष हम सामान्य हालात की ओर लौट सकेंगे। लेकिन 2022 के शुरुआती दिनों में भी हमारे पास इन बातों पर यकीन करने का कोई ठोस आधार नहीं है। खयाली पुलाव, आश्वस्त होने और राष्ट्रवादी बचाव ने 2021 में हमारी जान लगभग ले ही ली थी। 2022 में हमें इन कमियों को किसी भी हालत में दोहराना नहीं है।