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कृषि को लाभदायक बिजनेस बनाने के लिए ज्यादा ऑटोमेशन की आवश्यकता

अब आवश्यकता इस बात की है कि कृषि उत्पादकता को अधिकतम करने के लिए भू-स्थानिक प्रोग्रामिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी नवीन और अत्याधुनिक तकनीकों को बढ़ावा दिया जाए

Last Updated- November 12, 2025 | 10:55 PM IST
Agriculture

कृषि उपकरणों पर माल एवं सेवा कर (जीएसटी) को 12-18 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिए जाने के कारण इनकी कीमतें कम हो गई हैं। इससे भारतीय कृषि में मशीनीकरण को आवश्यक प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है। खेतों में काम हाथ से करने के बजाय मशीनों से करना मानव श्रम पर निर्भरता कम करने के लिए आवश्यक है, जिसकी वैसे भी ग्रामीण क्षेत्रों से लगातार हो रहे पलायन के कारण कमी होती जा रही है। यही नहीं उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के वास्ते कृषि कार्यों में अधिक सटीकता सुनिश्चित करने के लिए भी यह आवश्यक है। इससे कृषि कार्य में होने वाली थकान भी कम होती है, जो ग्रामीण युवाओं को खेती से दूर कर रही है।

उद्योग सूत्रों के अनुसार, कम जीएसटी की वजह से ट्रैक्टरों की कीमतों में हॉर्सपावर रेंज के आधार पर 40,000 रुपये से 60,000 रुपये तक की गिरावट आई है। पावर टिलर लगभग 12,000 रुपये तक सस्ते हो गए हैं। पराली जलाने की समस्या को कम करने के लिए जिन मशीनों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जैसे स्ट्रॉ रीपर, सुपर सीडर और हैप्पी सीडर, उनकी कीमतों में 10,000 रुपये से 20,000 रुपये तक की कटौती हुई है। सबसे बड़ी 1,87,000 रुपये से अधिक की गिरावट बड़े आकार के हार्वेस्टर-कम्बाइन की कीमतों में आई है, जिनका इस्तेमाल ज्यादातर सेवा प्रदाता गेहूं और धान की कटाई के लिए करते हैं।

दरअसल, जीएसटी सुधार के लाभ कृषि मशीनरी तक ही सीमित नहीं हैं। ये कृषि से जुड़े कई क्षेत्रों जैसे पशुपालन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन और कृषि वानिकी में इस्तेमाल होने वाली कई चीजों (इनपुट) को अपने दायरे में समेटते हैं। इनमें जैव कीटनाशक, जैव उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्त्व और ट्यूबवेल चलाने व अन्य कृषि कार्यों में इस्तेमाल होने वाले सौर ऊर्जा उपकरण शामिल हैं। कोल्ड स्टोर और अन्य प्रकार के पर्यावरण-नियंत्रित गोदामों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले उपकरण, साथ ही जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों के परिवहन के लिए रेफ्रिजरेटेड वाणिज्यिक मालवाहक वाहनों में इस्तेमाल होने वाले उपकरण भी सस्ते हो गए हैं।

कीमतों में इन कटौतियों के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही उदार सब्सिडी और कृषि मशीनरी खरीदने के लिए संस्थागत ऋण की आसान पहुंच ने किसानों के लिए इन यांत्रिक उपकरणों तक पहुंच को बढ़ाया है। इस उपाय के लाभार्थियों में स्वयं सहायता समूह, कृषि स्टार्टअप और कस्टम-हायरिंग केंद्र भी शामिल हैं, जो किसानों को मशीन किराये पर देते हैं या किसानों के खेतों पर ठेके पर काम करते हैं।

इस समय भारत में कृषि कार्य का 50 फीसदी से भी कम मशीनों के माध्यम से किया जाता है। मशीनीकरण का यह स्तर चीन में 60 फीसदी, ब्राजील में 75 फीसदी और अमेरिका में 95 फीसदी तक के स्तर से काफी कम है। हालांकि भारत ने भी इस स्तर को 75 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, लेकिन इसे 25 वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। देश की कृषि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक उपाय के लिए इतना लंबा इंतजार अनुचित है। आधुनिक तकनीक का उपयोग, जो कृषि कार्यों को समय पर और अधिक सटीकता के साथ करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, कृषि की समग्र दक्षता को बढ़ाकर इसे वैश्विक मानकों के बराबर लाने की कुंजी है।

देश भर में कृषि मशीनीकरण का पैमाना और प्रकृति व्यापक रूप से भिन्न है, जो मुख्यतः फसलों के प्रकार और किए जाने वाले कृषि संबंधी कार्यों पर निर्भर करता है। गेहूं की खेती में जहां 50-70 फीसदी कार्य आमतौर पर यंत्रों द्वारा किया जाता है, वहीं अन्य फसलें इस मामले में बहुत पीछे हैं। इसके अलावा, कृषि की दृष्टि से प्रगतिशील उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में, जिसमें पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश शामिल हैं, देश के अन्य भागों की तुलना में मशीनीकरण बहुत अधिक है। पूर्वोत्तर में यह लगभग नगण्य है, जहां अधिकांश कृषि कार्य हाथ से किए जाते हैं।

लगभग पूरे देश में भूमि की तैयारी और बोआई के काम में निराई जैसे अन्य कृषि कार्यों की तुलना में कहीं अधिक मशीनों से काम किया जाता है, हालांकि इन कार्यों में अत्यधिक श्रम-प्रधानता के कारण मशीनीकरण की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। हालांकि धान की रोपाई और कपास की तुड़ाई का काम श्रमसाध्य है, फिर भी पंजाब और हरियाणा जैसे अत्यधिक मशीनीकृत राज्यों में भी ये अधिकांशतः हाथ से ही की जाती हैं।

कृषि यंत्रीकरण के आर्थिक लाभों का मूल्यांकन विभिन्न अध्ययनों द्वारा किया गया है और उन्हें काफी महत्त्वपूर्ण पाया गया है। परिणाम दर्शाते हैं कि फसलों की बोआई और पौध पोषक तत्त्वों के उपयोग के लिए उपयुक्त मशीनों का उपयोग करके बीज और उर्वरक जैसे महंगे निवेश पर होने वाले खर्च में 15-20 फीसदी की कमी की जा सकती है।

इसके अलावा, जब मशीनों के माध्यम से बोआई की जाती है और बीजों को मिट्टी में सही गहराई और समान अंतराल पर रखा जाता है, तो फसल का अंकुरण सामान्यतः 10-25 फीसदी अधिक होता है। अनुमान है कि किसी कार्य को मशीन से करने में लगने वाला समय पारंपरिक तरीकों की तुलना में 20 से 30 फीसदी कम होता है। बीज, उर्वरक और पौध संरक्षण रसायनों सहित सभी नकद निवेशों के उपयोग से प्राप्त शुद्ध लाभ, यंत्रीकृत खेती में कहीं अधिक पाया गया है।

अब जरूरत इस बात की है कि कृषि उत्पादकता को बेहतर बनाने के लिए भू-स्थानिक प्रोग्रामिंग और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसी नवीन और अत्याधुनिक तकनीकों को बढ़ावा दिया जाए। फसल निगरानी, ​​कीटनाशकों के छिड़काव और उपज अनुमान जैसे कार्यों के लिए ड्रोन और उपग्रह-आधारित रिमोट सेंसिंग का इस्तेमाल पहले ही शुरू हो चुका है। इन तकनीकों को और बढ़ावा देने से कृषि वास्तव में ज्ञान-आधारित और तकनीक-चालित लाभदायक व्यवसाय में बदल सकती है।

First Published - November 12, 2025 | 10:55 PM IST

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