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टीकाकरण में उपलब्धि और ‘के’-आकृति की समस्या

Last Updated- December 11, 2022 | 11:48 PM IST

कोविड-19 महामारी का एक दुष्परिणाम आर्थिक असमानता में आई तेजी है। भारत की टीकाकरण नीति का डिजाइन इसे और बढ़ाने का काम करेगा। टीकाकरण की दर उच्च आय वाले समूहों में कहीं ज्यादा है। भारत की करीब 130 करोड़ की आबादी में से 78 फीसदी यानी 1 अरब से थोड़े ज्यादा लोग कोरोना टीका लगवाने की पात्रता रखते हैं। इनमें से करीब 75 फीसदी यानी 75 करोड़ लोगों को टीके की कम-से-कम एक खुराक दी जा चुकी है। इसका मतलब है कि 25 करोड़ पात्र लोगों को अभी इस टीके की एक भी खुराक नहीं मिली है।
सरकार का दावा है कि लगभग 30 फीसदी पात्र लोगों को दोनों खुराकें दी जा चुकी हैं। इसे मानें तो दोनों दावों के बीच करीब 5 करोड़ का बड़ा फर्क नजर आता है। अगर 75 करोड़ लोगों को एक ही खुराक लगी है तो सीधा गणित यही बताता है कि दोनों खुराकें ले चुके लोगों की संख्या सिर्फ 25 करोड़ है। लेकिन अगर हम यह मान लेते हैं कि दोनों खुराकें लगवा चुके लोगों की संख्या करीब 30 करोड़ है तो फिर एक खुराक लगे लोगों की संख्या 70 करोड़ ही बचती है। हालांकि कोविन ऐप पर एक नंबर से कई लोगों का पंजीकरण कराने की सुविधा दी गई है लेकिन टीकाकरण अभियान के ‘स्मार्ट डिजाइन’ ने स्मार्टफोन न रखने वाले लोगों के लिए टीके की बुकिंग कर पाना मुश्किल बना दिया। भारत में स्मार्टफोन की पहुंच 45-50 करोड़ लोगों तक ही है और उनमें भी बड़ा हिस्सा उच्च आय वर्ग का है। इस तरह इसमें अधिक आय वाले समूहों के प्रति एक तरह का पूर्वग्रह साफ देखा जा सकता है।
इस तबके के प्रति दूसरा पूर्वग्रह टीका आपूर्ति के सार्वजनिक एवं निजी चरित्र में निहित है। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर टीका मुफ्त में उपलब्ध है और यहां पर करीब 75 फीसदी टीके लगाए गए हैं जबकि टीके का शुल्क वसूलने वाले निजी अस्पतालों पर करीब 25 फीसदी टीके लगाए गए हैं। अधिकांश सरकारी कर्मचारियों एवं सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारियों की आय कम न होते हुए भी उन्हें सरकारी अस्पतालों में मुफ्त टीके लगाए गए। इस तरह ज्यादा आमदनी वाले समूह काफी हद तक टीका लगवा चुके हैं। लेकिन कम आमदनी वाले तबके बड़े पैमाने पर कोविड टीके से अभी वंचित ही हैं। इसके अलावा लॉजिस्टिक संबंधी समस्याओं की वजह से इस विभेद में शहरी एवं ग्रामीण इलाकों का पूर्वग्रह भी जरूर रहा होगा।
हमें यह ध्यान रखना होगा कि महामारी विज्ञान संबंधी सारे भरोसेमंद पूर्वानुमान कोविड-19 की तीसरी लहर आने की बात कर रहे हैं और वह लहर वर्ष 2022 के मध्य तक बनी रहेगी। हालांकि तीसरी लहर की गंभीरता सामूहिक प्रतिरोधकता के स्तर और पहले संक्रमित हो चुके लोगों की संख्या के आधार पर अलग-अलग होगी। इसके अलावा महामारी विशेषज्ञ वायरस की किसी नई किस्म उभरने की आशंका को भी खारिज नहीं कर रहे हैं। यह साफ दिख रहा है कि तीसरी लहर की जद में निम्न आय वर्ग के लोग ज्यादा आएंगे। लॉकडाउन से बाहर आने और रोजगार पर लौटने से इस समूह के लोगों में संक्रमित होने का जोखिम ज्यादा होगा और फिर बाकी लोग भी चपेट में आ सकते हैं।
टीकाकरण से वंचित वयस्कों का दायरा बढ़ाने के अलावा कई तरह की बड़ी चुनौतियां भी हैं। इनमें दूसरी खुराक देने से जुड़े इंतजाम और शुरुआती दौर में दोनों खुराकें लगवा चुके लोगों में प्रतिरोधकता कम होने पर उन्हें बूस्टर खुराक देने के साथ-साथ 18 साल से कम उम्र के किशोरों का भी टीकाकरण करने से जुड़ी चुनौतियां शामिल हैं। इसके साथ ही वायरस की नई किस्मों से निपटने के लिए ज्यादा असरदार टीकों के विकास से जुड़े शोध की भी जरूरत होगी। यह देखा जाना बाकी है कि इन चुनौतियों का कितने प्रभावी ढंग से सामना किया जाता है? आय आधारित पूर्वग्रहों से के-आकृति वाला टीकाकरण दायरा बन रहा है और अगर टीका नीति में आमूलचूल बदलाव नहीं किए गए तो भविष्य में भी यह आकार बना रह सकता है।
भारत में महामारी आने के पहले के-आकृति वाली अर्थव्यवस्था मौजूद थी। क्रेडिट सुइस की ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2020 के अंत तक शीर्ष 1 फीसदी लोगों के पास देश की 40.5 फीसदी परिसंपत्तियां थीं। खास बात यह है कि वर्ष 2020 में अर्थव्यवस्था में संकुचन होने के बावजूद अमीर लोगों की परिसंपत्ति हिस्सेदारी बढ़ी। आय समानता को मापने वाला सूचकांक गिनी को-इफिशियंट 82.3 के बेहद ऊंचे स्तर पर रहा। अगर गिनी सूचकांक शून्य पर है तो यह आय वितरण एकदम समान होने का सूचक होता है।
अप्रैल-जून 2020 में लगे सख्त लॉकडाउन में बेरोजगारी बढ़ी थी और इतने समय बाद भी रोजगार स्तर 2018-19 की बराबरी नहीं कर पाया है। रोजगार गंवाने वाले लोग ज्यादातर असंगठित क्षेत्र में थे जो पहले ही नोटबंदी एवं खराब ढंग से लागू हुई जीएसटी प्रणाली के कारण भारी दबाव में था। इसने कम आय वाले समूहों को कहीं ज्यादा प्रभावित किया। वह ढलान गरीबी के आंकड़ों में नजर आएगी। पिछली चार तिमाहियों के कंपनियों के नतीजे भी यही दर्शाते हैं कि संगठित क्षेत्र (जो कि अधिक आय वाला समूह है) ने असंगठित क्षेत्र की तुलना में कही ज्यादा तेजी से बहाली की है। यहां पर हमें ध्यान रखना होगा कि असंगठित क्षेत्र में कहीं ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है और इसमें आय भी कम है।
हमें एक और दीर्घकालिक चिंता भी सता रही है। स्मार्टफोन एवं ब्रॉडबैंड से लैस उच्च आय वर्गों की ऑनलाइन पढ़ाई तक पहुंच कहीं ज्यादा रही है। लिहाजा पहले से ही के-आकृति वाली शिक्षा व्यवस्था में अब यह और भी ज्यादा गहरी हो गई है। इससे एक युवा कार्यबल के बहुचर्चित जनांकिकी लाभांश लेने एवं भावी उत्पादकता भी घटती है।
ये मुद्दे एकदम साफ हैं और किसी भी हाल में उनसे निपटना मुश्किल होगा। लेकिन उन्हें स्वीकार करने से एक शुरुआत होगी और फिर ईमानदारी से उनका मुकाबला करने की कोशिश की जाए। लेकिन 100 करोड़ टीके लगाने पर अपनी पीठ थपथपाने में लगी व्यवस्था में इसकी स्वीकृति भी साफ तौर पर नदारद है।

First Published - November 2, 2021 | 11:09 PM IST

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