क्या अंतत: भारत का समय आ गया है? देश महामारी से उबर रहा है और वह एक बार फिर दुनिया की सबसे तेज विकसित होती बड़ी अर्थव्यवस्था का रुतबा हासिल करने की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में यह विचार करना उपयुक्त है कि 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री का दायित्व संभालने के आठ वर्ष बाद देश कहां खड़ा है। ‘ब्रिक’ जैसा जुमला देने वाले जिम ओनील ने उस वक्त कहा था कि यह ’30 वर्षों में भारत में घटित हुआ सबसे सकारात्मक घटनाक्रम है।’ शेयर बाजार में तेजी आई और वैश्विक तेल कीमतों में कमी आने से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने तथा अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मदद मिली। आठ वर्ष बाद वैश्विक माहौल उतना अनुकूल नहीं रह गया है। परंतु भारत के आर्थिक आधार में अहम बदलावों ने शायद आने वाले वर्षों में वृद्धि का मंच तैयार किया है।
सरकार ने अच्छे और बुरे दोनों तरह के समय मेंं बुनियादी निवेश पर ध्यान केंद्रित किया है और राजमार्ग निर्माण की गति काफी तेज की गई है। नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर सार्वजनिक प्रतिबद्धता जताई गई है जिससे पर्यावरण के अनुकूल वृद्धि का माहौल बना है। सन 2000 के दशक की दूरसंचार क्रांति ने डिजिटल सार्वजनिक बेहतरी के नये युग को जन्म दिया है जिसका नेतृत्व एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई) और इंडिया स्टैक ने किया। आशा है कि इनकी बदौलत नवाचार, निवेश और वृद्धि में इजाफा होगा तथा डिजिटल आधारित वृद्धि का ऐसा परिदृश्य बनेगा जो इतिहास में अपनी तरह का अनूठा होगा। भारत को अपने समकक्ष देशों से तुलना का भी लाभ मिला। 2014 से भारत चीन के अतिरिक्त किसी भी अन्य बड़ी अर्थव्यवस्था की तुलना में तेजी से विकसित हुआ। परंतु चीन के साथ दुनिया के संबंध बिगड़े हैं क्योंकि उसके नेतृत्व ने अंतर्मुखी रुख अपनाया है और वह दूसरे देशों तथा विदेशी कंपनियों के साथ संबंधों को लेकर अधिक कटु हुआ है। भूराजनीतिक तनाव तथा महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला मुश्किल में पड़ी और ऐसे में बहुत संभव है कि वैश्विक मूल्य शृंखला में भारत का लंबे समय से टलता आ रहा प्रवेश घटित होगा। निश्चित तौर पर वैश्विक निवेशक उभरते बाजारों में स्थिरता और वृद्धि की तलाश में हैं और उन्हें भारत के अलावा ज्यादा विकल्प नजर नहीं आएंगे।
ऐसी आशाएं बेवजह नहीं हैं और लेकिन इन्हें एक संदर्भ में देखना होगा। वर्तमान भारत को लेकर चाहे जो भी आशावाद हो लेकिन तथ्य यह है कि लगातार कई तिमाहियों में पूंजी हमारी अर्थव्यवस्था से बाहर गई है और नयी पूंजी नहीं आई है। व्यापक और गहराई वाले कल्याणकारी राज्य ने मोदी को ऐसी लोकप्रियता प्रदान की जिसका दूसरा उदाहरण मुश्किल है। इसकी कीमत पात्रता वाले राज्य की छवि और बढ़ती कीमत के साथ चुकानी पड़ी। केंद्र और राज्यों के रिश्ते आर्थिक प्रगति और निवेशकों के भरोसे के लिए अहम हैं लेकिन उनमें कमजोरी आई है। आंतरिक मतभेद भी भारत के भविष्य की आशावादी तस्वीर को क्षति पहुंचा सकते हैं।
यह स्पष्ट है कि मोदी के आठ वर्ष के कार्यकाल में भारत आगे बढ़ा है लेकिन किसी भी अन्य क्षेत्र में यह प्रगति उतनी अधिक नहीं रही जितनी कि वृहद आर्थिक स्थिरता के क्षेत्र में रही। वर्ष 2013 में भारत सबसे जोखिम भरे पांच देशों में शुमार था। वहां से अब तक काफी सुधार हुआ है और हमारी नीति ऐसी होनी चाहिए कि इस स्थिरता का बचाव किया जा सके। वृद्धि के संदर्भ में बात करें तो इन वर्षों मेंं हमारी महत्त्वाकांक्षा में इजाफा नहीं हुआ। 2014 में दो अंकों की वृद्धि की संभावना पर विचार किया जा सकता था। वर्ष 2022 में 6 फीसदी की वृद्धि संभावित है। देश में वास्तविक बदलाव के लिए इसे 8-9 प्रतिशत होना चाहिए।
