जिन करदाताओं ने पुरानी आयकर व्यवस्था चुनी है, वे इस समय कर बचाने की जुगत भिड़ाते-भिड़ाते परेशान होंगे। मगर उनमें से ज्यादातर को यह नहीं पता होगा कि कर बचाने की योजना में अपने जीवनसाथी और बच्चों को शामिल करने से उनका कर का बोझ कानूनी तौर पर काफी कम हो सकता है।
कोई भी व्यक्ति अपने जवनसाथी को कर्ज देकर कर में कमी ला सकता है। मान लीजिए कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को नेल स्पा खोलने के लिए कुछ पैसा उधार देता है और वह इसे ब्याज सहित वापस करने के लिए तैयार हो जाती है। उस सूरत में उसके व्यापार या काम-धंधे से होने वाली कमाई को कर वसूलने के इरादे से पति की आय में जोड़ा नहीं जाता। अंतरराष्ट्रीय कर वकील वरुण चबलानी बताते हैं, ‘लेकिन अगर पति अपनी पत्नी को यह पैसा तोहफे में देता है तो जोखिम पैदा हो सकता है। कर अधिकारी कारोबार से हुई कमाई को किसी भी समय आयकर अधिनियम की धारा 64 (1) (2) के तहत पति की आय के साथ जोड़कर कर वसूलने के लिए कह सकते हैं।’
चबलानी की सलाह है कि जीवनसाथी को कर्ज का बाकायदा एग्रीमेंट यानी समझौता कराना चाहिए ताकि कर ऑडिट में उसका इस्तेमाल हो सके और इसे तोहफा न माना जाए।
जीवनसाथी को उपहार में दिया गया धन या संपत्तियां कर के दायरे में नहीं आते मगर इस उपहार को निवेश करने से हुई आय को उस व्यक्ति की आय में जोड़ा जा सकता है, जिसने उपहार दिया है।
वेद जैन ऐंड एसोसिएट्स के पार्टनर अंकित जैन की राय है, ‘इसीलिए जीवनसाथी को संपत्ति खरीदनी हो तो उसे पैसा उधार देना अच्छा रहता है। उन संपत्तियों से हुई आय का इस्तेमाल कर्ज चुकाने में किया जा सकता है। उस सूरत में आय पर केवल जीवनसाथी (जिसे तोहफा मिला है) को ही कर चुकाना पड़ेगा।’
कर कानून कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति या अविभाजित हिंदू परिवार (एचयूएफ) एक साल में 50,000 रुपये से ज्यादा की नकदी या संपत्तियां तोहफे में देता है तो तोहफा पाने वाले को उस पर कर चुकाना ही पड़ेगा।
आयकर अधिनियम की धारा 56 के मुताबिक इसे ‘अन्य स्रोतों से आय’ माना जाता है। पीएसएल एडवोकेट्स ऐंड सॉलीसिटर्स में पार्टनर शोएब कुरैशी बताते हैं, ‘तोहफा चाहे चल हो या अचल हो, अगर 50,000 रुपये से ज्यादा कीमत का है तो उसे आय मानकर पूरा कर वसूला जाएगा।’
मगर रिश्तेदारों से मिले तोहफों पर कर नहीं वसूला जाता चाहे उनकी कीमत कितनी भी क्यों न हो। आयकर अधिनियम की धारा 2(41) के मुताबिक जीवनसाथी भी ‘रिश्तेदारों’ की श्रेणी में आते हैं। इस लिहाज से पति या पत्नी द्वारा एक-दूसरे को दिया तोहफा कर से मुक्त होता है।
आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराणा कहते हैं, ‘आयकर अधइन तोहफों से हुई आय को पति की आय (यदि तोहफा पति ने दिया है) मानकर कर मांगा जाएगा क्योंकि इसमें आयकर अधिनियम की धारा 64 के तहत आने वाला ‘क्लबिंग’ यानी आय जोड़ने का प्रावधान लागू होगा। मगर इस आय से भी कोई कमाई होती है तो उसे पत्नी की आय माना जाएगा पति की नहीं।’
यह भी मायने रखता है कि ट्रांसफर यानी हस्तांतरण किस तरह का है। सीएनके में पार्टनर पल्लव प्रद्युम्न नारंग समझाते हैं, ‘करीबी परिजनों को दी गई संपत्ति पर कर नहीं लगता। माना जाता है कि यह संपत्ति कभी वापस नहीं ली जाएगी। यदि संपत्ति वापस लेने का मामला होता है तो उससे होने वाली आय पर उस व्यक्ति से कर वसूला जाएगा, जिसने संपत्ति दी है।’
पति-पत्नी घर के लिए साथ मिलकर कर्ज लेते हैं तो भी कर बचत हो जाती है। आयकर अधिनियम की धारा 24(बी) के तहत कोई नागरिक होम लोन पर ब्याज के तौर पर चुकाई गई 2 लाख रुपये तक की रकम पर कर छूट का दावा कर सकता है।
जैन का कहना है, ‘जब आप और आपकी पत्नी संयुक्त रूप से होम लोन लेते हैं तो दोनों ही ब्याज पर कर छूट का दावा कर सकते हैं।’ कुरैशी समझाते हैं, ‘अगर शादीशुदा जोड़े ने संयुक्त रूप से होम लोन लिया है और दोनों की उसमें 50-50 फीसदी हिस्सेदारी है तो दोनों 2-2 लाख रुपये यानी कुल 4 लाख रुपये की कर छूट का दावा कर सकते हैं।’
यदि पति-पत्नी मिलकर होम लोन लेते हैं तो चुकाए गए मूलधन पर वे धारा 80सी के तहत 3 लाख रुपये तक की कर छूट का दावा कर सकते हैं। कुरैशी का कहना है कि यदि पति-पत्नी दोनों का कर कटता है तो कर बचाने के लिए यह तरीका बहुत कारगर होगा।
फैमिली फ्लोटर प्लान के प्रीमियम को बांटकर आपका जीवनसाथी और आप 25-25 हजार रुपये तक कर छूट का दावा कर सकते हैं। इस तरह आप दोनों कर योग्य आय में से कुल 50,000 रुपये घटवा सकते हैं।
अगर आप अपने जीवनसाथी के लोक भविष्य निधि (पीपीएफ) खाते में निवेश करते हैं या उसका जीवन बीमा प्रीमियम भरते हैं तो भी आप धारा 80सी के तहत कर बचा सकते हैं।
सुराणा का कहना है कि इसी तरह कुछ शर्तें पूरी हो रही हों तो आप अपने जीवनसाथी के शिक्षा ऋण पर चुकाए ब्याज के बदले भी धारा 80ई के तहत कर छूट मांग सकते हैं।