मार्च 2023 के दूसरे हफ्ते में समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक खबर में बताया गया था कि भारत में लक्जरी मकानों की बिक्री जोरों पर है। इस खबर के मुताबिक डीएलएफ की एक प्रीमियम रिहायशी परियोजना में तकरीबन 7,700 करोड़ रुपये के मकान केवल 72 घंटे के भीतर बिक गए।
इसी तरह गोदरेज प्रॉपर्टीज दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास अपनी लक्जरी परियोजना में करीब 24 करोड़ रुपये का मकान दे रही है, जिसे खरीदने वाले भी आसानी से जुट रहे हैं। इससे पता चलता है कि देश में लक्जरी मकानों का बाजार एक बार फिर गर्म हो गया है।
लक्जरी आवास में लगातार पांच-छह साल सुस्ती के बाद कोविड महामारी के दौरान ही हलचल दिखने लगी थी, जो अब तेज हो रही है। एनारॉक रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक 2019 से 2022 के बीच लक्जरी माइक्रो-मार्केट में औसत कीमतें 7 से 21 फीसदी बढ़ी हैं।
ऐसे में इस बार के आम बजट में आयकर अधिनियम की धारा 54 और 54एफ में प्रस्तावित बदलावों से लक्जरी आवास बाजार पर क्या असर पड़ेगा? इस बदलाव के तहत कटौती को 10 करोड़ रुपये तक सीमित कर दिया गया है। क्या उससे बाजार की रफ्तार धीमी हो जाएगी?
बेहतर की चाहत ने उठाया बाजार
लक्जरी रिहायश के बाजार में उछाल की एक बड़ी वजह महामारी का दौर रहा, जब लोगों में बड़े मकान खरीदने की इच्छा बढ़ने लगी। घर से ही काम करने की वजह से लोगों को लगा कि दफ्तर के काम के लिए अलग कमरा होना चाहिए या बड़ी जगह होनी चाहिए।
एनारॉक ग्रुप के चेयरमैन अनुज पुरी कहते हैं, ‘छूट, कीमत चुकाने की आकर्षक योजनाओं और डेवलपर से मिल रहे दूसरे ऑफर्स की वजह से भी लक्जरी रियल्टी का कायाकल्प हुआ है।’ लक्जरी मकानों के बाजार को आम तौर पर अति धनाढ्य व्यक्ति (एचएनआई) रफ्तार देते हैं।
उन पर महामारी का सबसे कम असर पड़ा। मई, 2022 से रिजर्व बैंक की सख्ती के कारण आवास ऋण की ब्याज दरें काफी बढ़ गई हैं मगर उन्हें इसकी कोई फिक्र नहीं है क्योंकि वे मकान खरीदने के लिए बैंक से लोन नहीं लेते बल्कि नकद खरीद ही करते हैं।
इंडिया सॉदबीज इंटरनैशनल रियल्टी के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) अमित गोयल का कहना है, ‘महंगी संपत्तियों की मांग अक्सर कंपनियों में शीर्ष पर बैठे अधिकारियों, कारोबारियों और स्टार्टअप संस्थापकों की ओर से आती है। पिछले दो साल में इन सभी ने शेयर बाजार से जमकर कमाई की है।’
महामारी के कारण नीचे बैठा बाजार मार्च 2020 से अक्टूबर 2021 के बीच जमकर दौड़ा था और उस दौरान शेयर बाजार में कई एचएनआई की पांचों अंगुलियां घी में आ गईं। उनमें से अधिकतर ने शेयरों की कमाई से अपनी संपत्ति काफी बढ़ा ली।
कुशमैन ऐंड वेकफील्ड के प्रबंध निदेशक (रिहायशी सेवा) शालीन रैना ने कहा, ‘शेयर बाजार में पिछले एक साल में जमकर उठापटक हुई है, जिससे निवेशकों ने पहले के सालों में कमाई दौलत का बड़ा हिस्सा लक्जरी रियल एस्टेट में लगा दिया है। वहां कीमतों में खासी बढ़ोतरी भी हुई है।’
कोरोना महामारी के दौरान नए मकान बनने भी बंद हो गए थे क्योंकि निर्माण कार्य ठप पड़ गया था। कॉलियर्स इंडिया के प्रबंध निदेशक (सलाहकार सेवा) शुभंकर मित्रा बताते हैं, ‘2020 के आखिरी के महीनों में मकान काफी किफायती पड़ रहे थे क्योंकि उस समय बढ़िया छूट दी जा रही थी। इसी वजह से 2020 के आखिरी और 2021 के शुरुआती महीनों में कई सौदे हुए। 2021 के आखिरी महीनों और 2022 की शुरुआत में जब नए मकान बाजार में आए तो उन्हें हाथोहाथ लिया गया।’
अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) ने भी लक्जरी रिहायश के बाजार की चमक बढ़ाई है। महामारी के दौरान उन्हें लगा कि भारत में भी उनका एक ठिकाना होना चाहिए। रैना कहते हैं, ‘जब दुनिया मंदी से जूझ रही है तब भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। इस कारण एनआरआई के लिए भारत निवेश का पसंदीदा ठिकाना बन गया है।’
धारा 54 और 54एफ में संशोधन
आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 54 और धारा 54एफ के तहत लंबे समय से रखी गई पूंजीगत परिसंपत्ति की बिक्री से होने वाले पूंजीगत लाभ पर कटौती का प्रावधान किया गया है। इसके लिए शर्त यही है कि करदाता ने भारत में मकान या संपत्ति का मालिकाना हक बदलने की तारीख से कम से कम एक साल पहले या उस तारीख के कम से कम दो साल बाद उसे खरीदा हो। दूसरा तरीका यह है कि मालिकाना हक बदलने के तीन साल के भीतर वह भारत में रिहायशी संपत्ति बना ले।
किसी मकान को बेचने पर हुए दीर्घावधि पूंजीगत लाभ कर पर कटौती के संबंध में धारा 54 तब लागू होती है, जब उससे मिली रकम को कोई और रिहायशी संपत्ति खरीदने या बनाने में लगा दिया जाए। धारा 54एफ तब आती है, जब किसी अन्य दीर्घावधि पूंजीगत संपत्ति (रिहायशी मकान नहीं) की बिक्री से हुए लाभ को रिहायशी संपत्ति में लगाया जाता है।
सरकार को लगा कि एचएनआई इन प्रावधानों का दुरुपयोग कर रहे हैं (मसलन स्टार्टअप संस्थापकों अपनी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी या शेयरों के जरिये तगड़ा मुनाफा कमाया और मुनाफे की रकम को लक्जरी संपत्ति में लगा दिया)। फिलहाल इस तरह से मिली रकम पर कटौती की कोई सीमा नहीं है।
मगर इस बार के बजट में अधिकतम 10 करोड़ रुपये की कटौती तय करने का प्रस्ताव रखा गया है।मान लीजिए कि मकान बेचकर किसी शख्स को 15 करोड़ रुपये का दीर्घावधि पूंजीगत लाभ होता है। एएसएल पार्टनर्स के मैनेजिंग पार्टनर अभिनय शर्मा समझाते हैं, ‘प्रस्तावित बदलाव लागू हो गए तो मकान बेचने वाले को नया मकान खरीदने पर भी केवल 10 करोड़ रुपये की ही कटौती का फायदा मिलेगा। बाकी 5 करोड़ रुपये पर इंडेक्सेशन के साथ 20 फीसदी कर वसूला जाएगा।’
निवेश मांग को लग सकता है झटका
पूंजीगत लाभ रीसेल पर मिलता है। इसलिए रीसेल बाजार पर इसका असर पड़ सकता है। पुरी मानते हैं, ‘एचएनआई निवेशक अगर 10 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई को अधिक से अधिक कर बचाते हुए निवेश नहीं कर पाते तो वे लक्जरी मकान कम ही बेचना चाहेंगे।’
इस तरह की सीमा तय करने से निवेश की मांग बिगड़ सकती है। वेद जैन ऐंड एसोसिएट्स के पार्टनर अंकित जैन की राय है, ‘जो अपने रहने के लिए मकान खरीदते हैं, उन पर भले ही इसका कोई असर नहीं पड़े मगर निवेश के नजरिये से संपत्ति खरीदने वाले प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि इस कर बदलाव के बाद उन्हें पहले से कम रिटर्न मिलेगा।’
मगर कुछ विशेषज्ञों को यह भी लगता है कि प्रस्तावित बदलावों का खास असर नहीं पड़ेगा। सीएनके के पार्टनर प्रद्युम्न नारंग ने कहा, ‘आमतौर पर लक्जरी प्रॉपर्टी में निवेश करने वाले लोग केवल कर बचाने के इरादे से उन्हें नहीं खरीदते। साथ ही इस जमात के खरीदारों के नाम आम तौर पर एक से अधिक संपत्ति होती हैं, इसलिए उन्हें कर बचत का यह फायदा मिल ही नहीं पाता।’
कर योजना बनाना जरूरी
जानकारों का कहना है कि कर से जुड़ी कुछ योजना बनाई जा सकती है। शर्मा समझाते हैं, ‘करदाता को अब अपनी लक्जरी रिहायशी संपत्तियां अलग-अलग करनी होंगी और उन्हें पति, पत्नी, बच्चे, हिंदू अविभाजित परिवार आदि के नाम पर कराना होगा। इस तरह उनमें से हरेक संपत्ति पर 10-10 करोड़ रुपये की कर बचत हो सकेगी।’
कुछ विशेषज्ञ मान रहे हैं कि धारा 54 और धारा 54एफ के तहत कटौती अलग-अलग हैं। जैन ने कहा, ‘कानून के मुताबिक करदाता अब भी एक ही कर निर्धारण वर्ष में दोनों धाराओं के तहत कटौती का दावा कर सकते हैं। इसलिए वे पूंजीगत लाभ पर 20 करोड़ रुपये तक की कटौती का फायदा ले सकते हैं।’
टैक्समैन के उप महाप्रबंधक नवीन वाधवा के हिसाब से करदाता धारा 54 के साथ धारा 54ईसी का भी फायदा ले सकते हैं। लेकिन उनके मुताबिक धारा 54ईसी की अहम शर्त पूरी होनी चाहिए, जिसके अनुसार बेची गई संपत्ति अचल हो।
यह संशोधन वित्त वर्ष 2023-24 से ही लागू हेगा। आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराणा बताते हैं, ‘जिन करदाताओं ने रिहायशी संपत्तियों में अभी निवेश नहीं किया है या जिनकी पूंजीगत लाभ की रकम अभी पड़ी है, वे पूरी छूट हासिल करने के लिए 31 मार्च, 2023 से पहले नई रिहायशी संपत्ति खरीद सकते हैं।’