आयकर विभाग ने आयकर रिटर्न तैयार करने वालों और मध्यस्थों के एक बड़े रैकेट का पता लगाया है, जिसने फर्जी और धोखाधड़ी भरे (आईटीआर) दाखिल करने में लोगों की मदद की। इन रिटर्न में रियायत और छूट के फर्जी दावे किए गए।
आयकर कानून में सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल धारा 10(13ए) का किया जाता है, जिसके तहत मकान के किराये भत्ते (एचआरए) पर छूट मिलती है। बीडीओ इंडिया की पार्टनर (कर एवं नियामकीय सेवा) प्रीति शर्मा कहती हैं, ‘करदाता एचआरए पर छूट का झूठा दावा करने के लिए अक्सर किराये की फर्जी रसीदें जमा कर देते हैं या माता-पिता अथवा रिश्तेदारों को अपना मकान मालिक दिखा देते हैं।’
अरविंद राव ऐंड एसोसिएट्स के संस्थापक अरविंद राव ने कहा, ‘कर्मचारी कभी-कभी किराये का फर्जी करारनामा तैयार कर लेते हैं या दावा करते हैं कि किराया नकद जुकाया गया ताकि बैंक से कुछ पता ही नहीं लगाया जा सके।’
फर्जी टिकट और बोर्डिंग पास लगाकर अवकाश यात्रा भत्ता (एलटीए) पर छूट का भी झूठा दावा कर दिया जाता है।
आयकर अधिनियम की धारा 80 जी के तहत धर्मादा संस्थाओं, धारा 80जीजीसी के तहत राजनीतिक दलों और 80 जीजीए के तहत वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थाओं को दान में भी खूब फर्जीवाड़ा किया जाता है। राव बताते हैं, ‘कभी-कभी ऐसे दान चेक से किए जाते हैं, दान देने वाले को रसीद मिलती है और बाद में पैसा भी उसे वापस मिल जाता है।’क्लियरटैक्स की कर विशेषज्ञ शेफाली मूंदड़ा समझाती हैं, ‘कभीकभार फर्जी दान के लिए ऐसे राजनीतिक दलों का नाम भी इस्तेमाल होता है, जो पंजीकृत तो हैं मगर जमीन पर कुछ काम नहीं करते।’
आयकर अधिनियम की धारा 80डी के तहत चिकित्सा बीमा के लिए रियायत पाने या धारा 80सी के तहत बीमा एवं निवेश के नाम पर छूट का दावा करने के लिए भी फर्जी रसीदें इस्तेमाल की जाती हैं। प्रीति समझाती हैं, ‘कर्ज के नाम पर छूट का दावा तो तब भी कर दिया जाता है, जब अपात्र ऋणदाता (जैसे किसी दोस्त से कर्ज) से कर्ज लिया जाता है। कई बार एक ही कर्ज के ब्याज पर दो अलग-अलग धाराओं के तहत दिखाकर दो बार छूट ले ली जाती है। चिकित्सा संबंधी रियायत के लिए डॉक्टरों से फर्जी फॉर्म 10आई सर्टिफिकेट खूब लिया जाता है।’
शेफाली का कहना है कि कई करदाताओं को पता ही नहीं होता कि यह गैर कानूनी है और ज्यादा से ज्यादा रिफंड पाने के चक्कर में वे ऐसे मध्यस्थों पर भरोसा कर लेते हैं। कई बार करदाता जानबूझकर ऐसा करते हैं।
करदाता जांच शुरू होने से पहले इन गलत दावों को ठीक कर सकते हैं। मुंबई के चार्टर्ड अकाउंटेंट सुरेश सुराणा बताते हैं, ‘मूल रिटर्न समय पर दाखिल किया गया अथवा देर से किया गया, अगर गलती हुई है तो धारा 139(5) के तहत संशोधित रिटर्न दाखिल किया जा सकता है। जिस कर निर्धारण वर्ष में रिटर्न दाखिल किया गया है, उसके खत्म होने से तीन महीने पहले तक संशोधित रिटर्न दाखिल हो जाना चाहिए। इसका मतलब है कि वित्त वर्ष 2024-25 के लिए संशोधित रिटर्न 31 दिसंबर, 2025 तक किया जा सकता है बशर्ते कर निर्धारण उससे पहले पूरा न हो चुका हो।’
बीटीजी अद्वय के प्रमुख (कर) अमित वैद्य कहते हैं कि संशोधित रिटर्न मूल रिटर्न की जगह ले लेता है, अलग से नहीं रखा रहता।
अगर करदाता समय पर संशोधित रिटर्न दाखिल करने से चूक गए हों तो वे अपडेटेड रिटर्न भर सकते हैं। सिरिल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर (प्रमुख-कराधान) एसआर पटनायक ने कहा, ‘कर निर्धारण वर्ष खत्म होने के 48 महीनों के भीतर इसे दाखिल किया जा सकता है मगर इसमें कर देनदारी घटाने का दावा नहीं किया जा सकता। इसमें मूल कर के ऊपर अतिरिक्त कर और ब्याज भी भरना होता है।’
अपडेटेड रिटर्न कब भरा जा रहा है, इसे देखकर कर और ब्याज का 25 से 70 फीसदी तक कर अलग से लिया जा सकता है। वैद्य चेताते हैं कि अगर छापे, छानबीन या जांच की प्रक्रिया शुरू हो जाती है तो सुधार करने के ये रास्ते काफी हद तक बंद हो जाते हैं।
करदाताओं को आयकर ई-फाइलिंग पोर्टल पर लॉग इन कर ‘ई-प्रसीडिंग’ या ‘व्यू नोटिसेस/ऑर्डर्स’ सेक्शन में जाना चाहिए और नोटिस देखना चाहिए। पटनायक की सलाह है कि नोटिस में पैन, नाम और कर निर्धारण वर्ष जांच लेना चाहिए।
इसके बाद सबूत जुटाने की सलाह देकर पटनायक कहते हैं, ‘उन सबूतों के आधार पर कर अधिकारी के लिए चिट्ठी लिखें, जिसमें बताएं कि कर में रियायत का दावा किस आधार पर किया गया था। सबूतों के साथ उस चिट्ठी को ई-फाइलिंग पोर्टल पर अपलोड किया जा सकता है।’
सुराणा आगाह करते हैं कि अगर आप तय समय के भीतर जवाब नहीं दे सके या आपने आधी अधूरी जानकारी दी तो किसी तीसरे पक्ष से जांच, जुर्माना या मुकदमा भी शुरू हो सकता है।