निवेशकों को आजकल मैन्युफैक्चरिंग फंड बहुत पसंद आ रहे हैं और पिछले कुछ दिनों में आए नए फंड ऑफर (एनएफओ) देखकर आसानी से यह समझा जा सकता है। एचडीएफसी म्युचुअल फंड ने कुछ समय पहले नया मैन्युफैक्चरिंग फंड पेश किया, जिसने 9,563 करोड़ रुपये जुटा लिए। किसी एनएफओ के जरिये जुटाई गई यह तीसरी सबसे अधिक रकम है।
महिंद्रा मैन्युलाइफ म्युचुअल फंड का नया मैन्युफैक्चरिंग फंड इसी महीने बंद हुआ है और बड़ौदा बीएनपी पारिबा का मैन्युफैक्चरिंग फंड 24 जून को बंद हो रहा है। सात फंड कंपनियां पहले ही इस तरह के फंड चला रही हैं, जिनमें 25,645.5 करोड़ रुपये की संपत्ति संभाली जा रही है।
प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं चीन+1 (चीन के साथ एक अन्य देश में उत्पादन करना) की नीति पर चलते हुए आपूर्ति को जोखिम से परे रखने की कोशिश कर रही हैं। ऐसे में भारत के पास उनके लिए उत्पादन का पसंदीदा ठिकाना बनने का मौका है।
भारत सरकार भी विनिर्माण क्षेत्र पर काफी ध्यान दे रही है।
महिंद्रा मैन्युलाइफ म्युचुअल फंड के फंड मैनेजर (इक्विटी) रंजीत शिवराम कहते हैं, ‘सरकार ने अगले तीन से चार साल में देश के कुल जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 17 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए वह उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना और आत्मनिर्भर भारत जैसे कार्यक्रमों का सहारा ले रही है। इसका मकसद आयात किए जाने वाले माल को देश में ही बनाना और निर्यात को बढ़ावा देना है।’
बड़ौदा बीएनपी पारिबा म्युचुअल फंड के सीनियर फंड मैनेजर जितेंद्र श्रीराम बताते हैं, ‘परियोजना को व्यावहारिक बनाने में आ रही पैसे की कमी को पीएलआई योजनाओं के जरिये पूरा करने के साथ ही विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए ओसैट (आउटसोर्स सेमीकॉन असेंबली ऐंड टेस्ट) और डीएलआई (डिजाइन-लिंक्ड इंसेंटिव) जैसे कदम भी उठाए जा रहे हैं।’
उनका यह भी कहना है कि सरकार मालढुलाई में आ रहा खर्च कम करने और विनिर्माण क्षेत्र को दूसरे देशों से मुकाबले के लिए तैयार करने के मकसद से सड़क, रेलमार्ग, हवाई अड्डे और मेट्रो जैसे शहरी बुनियादी ढांचे में निवेश कर रही है। विनिर्माण से अगले दशक में अच्छी खासी रकम तैयार हो सकती है।
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल मैन्युफैक्चरिंग फंड के फंड मैनेजर ललित कुमार को लगता है, ‘कामकाजी उम्र के लोगों की आबादी बढ़ने, देश के भीतर मांग में लगातार इजाफा होने, सरकार की नीतियां बेहतर होने और नीति के तहत निवेश से विनिर्माण को अपनी पूरी क्षमता से काम करने में मदद मिल सकती है।’
शिवराम ध्यान दिलाते हैं कि नए कारखानों के लिए कॉरपोरेट कर की दरें पहले ही कम हैं। केंद्र में एक ही पार्टी के पूर्ण बहुमत के बजाय गठबंधन सरकार बनने पर भी विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान कम नहीं होगा। ऐक्सिस म्युचुअल फंड के फंड मैनेजर नितिन अरोड़ा मानते हैं, ‘सरकार कैसी भी हो, बिजली, रेलवे और रक्षा जैसे क्षेत्रों में मजबूती बरकरार रहने की संभावना है।’
खपत: एंट्री लेवल की बाजार में वृद्धि का कुछ पक्का नहीं है मगर प्रीमियम उत्पादों का बाजार फलता-फूलता जा रहा है। अरोड़ा बताते हैं, ‘कारों की बिक्री में एसयूवी की हिस्सेदारी पहले 10-12 फीसदी थी, जो अब बढ़कर 50 फीसदी के करीब पहुंच गई है। इनकी बिक्री लगातार दो अंक में बढ़ रही है। रियल एस्टेट में भी बड़े ब्रांडों की प्रॉपर्टी अधिक बिक रही है।’
निवेश: पूंजीगत वस्तु कंपनियों का मुनाफा और उनकी ऑर्डर बुक बता रही है कि बुनियादी ढांचे में कितना ज्यादा निवेश किया जा रहा है। अरोड़ा समझाते हैं, ‘बिजली की किल्लत बढ़ रही है, जिस वजह से ट्रांसमिशन, वितरण और उत्पादन में निवेश करने की जरूरत महसूस हो रही है। बिजली क्षेत्र में पूंजीगत व्यय निवेश के लंबे चक्र के तहत होता है, जो पांच से सात साल तक चलता है।’ उनके मुताबिक अक्षय ऊर्जा और विशेष रूप से सौर एवं पवन ऊर्जा में भी बड़े पैमाने पर पूंजीगत निवेश हो रहा है।
शुद्ध निर्यात: भारत में मोबाइल फोन का जितना आयात होता है, पीएलआई योजना शुरू होने के बाद उससे ज्यादा फोन यहां से निर्यात होने लगे हैं। भारत अब ऐपल की आपूर्ति श्रृंखला में भी शामिल हो गया है। केबल और वायर बनाने वाली कंपनियों को अमेरिका के बिजली क्षेत्र में हो रहे पूंजीगत व्यय का फायदा मिल रहा है।
अभी इन कंपनियों का मूल्यांकन बहुत अधिक है। इस क्षेत्र में कंपनियां कम होने की वजह से कीमत बढ़ गई है और वृद्धि भी तेज है। इस कारण बी2बी कारोबार भी बी2सी कारोबार जैसी कीमत पर चल रहे हैं। अगर विनिर्माण से सरकार और कंपनियों का ध्यान हट गया तो मैन्युफैक्चरिंग फंड दिक्कत में पड़ सकते हैं।
सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार और सहजमनी के संस्थापक अभिषेक कुमार समझाते हैं कि थीम पर चलने वाले किसी भी फंड की तरह इनमें भी एक ही तरह के शेयरों में बहुत अधिक निवेश होने का जोखिम रहता है।
लंबी अवधि के लिए निवेश करने वाले और जोखिम से बिल्कुल भी परहेज नहीं करने वाले इन फंडों में रकम लगा सकते हैं। कुमार के मुताबिक ऐसे निवेशकों को दूर रहना चाहिए, जो तुरंत मुनाफा कमामा चाहते हैं। निवेशकों को कम से कम 5 साल के लिए रकम लगानी चाहिए।