तेजी से मंदी में जा रहे भारत के दो साल के बांडों के लिए यह माह बीते छह सालों में सबसे खराब साबित होने जा रहा है।
तेल की कीमतों में हुए इजाफे के बाद मुद्रास्फीति की दर 13 सालों के अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई। इसी कारण यह स्थिति निर्मित हुई। कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड के एस. अनंतनारायण के अनुसार न्यूयार्क में कच्चे तेल की कीमतों के 142.99 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंच जाने पर निवेशकों ने डेट में निवेश कम कर दिया है।
सरकार के गत सप्ताह के दरें बढ़ाने के फैसले से मांग गिरी है। मुद्रास्फीति से चिंतित अनंतनाथन का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में इजाफे के कारण प्रतिफल बढ़ रहे हैं। जुलाई 2010 को देय 12.25 फीसदी प्रतिफल वाले नोट इस माह 1.43 फीसदी बढ़े। सोमवार के कारोबार में इनमें 0.42 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इनकी कीमतें इस माह 3 रुपये गिरीं। यह 2002 के बाद सर्वाधिक है। ज्ञातव्य है कि भारत में खुदरा मूल्य 11.42 फीसदी बढ़े हैं। यह फरवरी 1995 के बाद सबसे अधिक हैं।