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नए RBI गवर्नर कब घटाएंगे ब्याज दरें? जानें ब्रोकरेज की राय और कब आ सकता है अगला बड़ा फैसला!

संजय मल्होत्रा के RBI गवर्नर बनने के बाद, ब्याज दरों में कटौती को लेकर बाजार में बढ़ी उम्मीदें। जानें UBS, Nomura, Barclays और Emkay Global की राय।

Last Updated- December 10, 2024 | 4:54 PM IST
Governor Of The Reserve Bank Of India (RBI) Sanjay Malhotra With Union Finance Minister Nirmala Sitharaman
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ। (File Photo: PTI)

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) में नए गवर्नर संजय मल्होत्रा की नियुक्ति ने उम्मीदें जगा दी हैं कि वह महंगाई दरों में जल्द कमी कर सकते हैं। संजय मल्होत्रा 11 दिसंबर से तीन साल के कार्यकाल की शुरुआत करेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि यह नियुक्ति वित्तीय बाजारों के लिए चौंकाने वाली है, क्योंकि पहले यह माना जा रहा था कि शक्तिकांत दास को एक और साल के लिए गवर्नर के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

हालांकि, RBI के गवर्नर में बदलाव के साथ ही एक नए डिप्टी गवर्नर की भी नियुक्ति होने की संभावना है। क्योंकि डॉ. माइकल पात्रा का कार्यकाल 15 जनवरी 2025 को समाप्त हो रहा है। साथ ही मौद्रिक नीति समिति (MPC) के छह में से पांच सदस्य नए होंगे (अक्टूबर 2024 में तीन नए बाहरी सदस्य जुड़े हैं)। UBS के विशेषज्ञों का कहना है कि इस बदलाव से बाजार में उतार-चढ़ाव हो सकता है, खासकर जब दुनिया भर में ट्रंप प्रशासन के टैरिफ प्रस्तावों को लेकर अनिश्चितता बढ़ रही है।

जानें प्रमुख ब्रोकरेज ने इस बदलाव को कैसे देखा और संजय मल्होत्रा से ब्याज दरों, ग्रोथ और महंगाई के बीच संतुलन बनाए रखने को लेकर क्या उम्मीदें हैं।

UBS का नजरिया

UBS के अनुसार, वित्त मंत्रालय में काम कर चुके मौजूदा गवर्नर के कारण यह माना जा सकता है कि मौद्रिक नीति में सरकार का प्रभाव बढ़ सकता है। लेकिन UBS ने यह भी कहा कि पिछले गवर्नर शक्तिकांत दास ने COVID-19 के समय RBI की आज़ादी को बनाए रखा और सरकार के साथ अच्छे रिश्ते रखते हुए आर्थिक स्थिरता को संभाला।

UBS का कहना है कि अगर पॉलिसी रेट (नीति दर) अभी की तरह ज्यादा रही और इकोनॉमिक ग्रोथ धीमी रही, तो फरवरी 2025 से RBI रेपो रेट में 75 बेसिस पॉइंट (bps) की कटौती कर सकता है। इससे ब्याज दरें कम होंगी और इकोनॉमी को ग्रोथ में मदद मिलेगी।

Nomura का नजरिया

Nomura का कहना है कि हाल ही में सरकार और RBI के बीच पॉलिसी को लेकर मतभेद दिखे। सरकार ने कुछ खाद्य वस्तुओं की महंगाई को देखते हुए मौद्रिक नीति (monetary policy) को थोड़ा नरम करने की बात कही थी। जबकि पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास ने सख्त पॉलिसी बनाए रखने पर जोर दिया।

Nomura का मानना है कि नए गवर्नर के शुरुआती कार्यकाल में सरकार के विचारों का असर ज्यादा दिख सकता है। लेकिन समय के साथ, गवर्नर RBI की अपनी पॉलिसी और सोच के ज्यादा करीब आ जाते हैं।

Nomura के मुताबिक, नए RBI गवर्नर की नियुक्ति को बाजार नरमी का संकेत मान सकता है। फरवरी की बैठक में ब्याज दरों में कटौती की संभावना बढ़ सकती है। अभी 60 बेसिस पॉइंट की कटौती की उम्मीद है, जो बढ़कर 75 बेसिस पॉइंट हो सकती है। साथ ही, बैठक से पहले कटौती की चर्चा और शुरुआती कटौती 25 बेसिस पॉइंट से ज्यादा होने की संभावना भी हो सकती है।

Barclays का नजरिया

फरवरी 2025 की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में लगभग पूरी तरह से नई टीम होगी, क्योंकि छह में से पांच सदस्य नए होंगे। यह बदलाव थोड़ी असमंजस पैदा कर सकता है लेकिन महंगाई कम होने के कारण अब आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को नरम किया जा सकता है।

Barclays का मानना है कि MPC फरवरी 2025 से ब्याज दरों में कटौती शुरू कर सकती है। दिसंबर 2024 की बैठक में दरें पहले जैसी ही रखी गई थीं। Barclays को उम्मीद है कि इस कटौती के दौरान कुल 100 बेसिस पॉइंट (bps) की कटौती हो सकती है, जिससे मार्च 2026 तक रेपो रेट 5.5% तक आ सकती है। फरवरी 2025 के बाद अप्रैल 2025, अगस्त 2025 और फरवरी 2026 में 25bps की तीन और कटौती होने की संभावना है।

Emkay Global का नजरिया

Emkay Global का कहना है कि नए गवर्नर और MPC को 2025 में अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जो दास की लीडरशिप को 2024 की शुरुआत में नहीं करनी पड़ी थीं। यह नियुक्ति बताती है कि सरकार (GoI) एक नौकरशाह को RBI के नेतृत्व में रखना ज्यादा पसंद करती है, बजाय किसी तकनीकी विशेषज्ञ के।

Emkay का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था इस समय स्टैगफ्लेशन (कम विकास और ज्यादा महंगाई) के दौर से गुजर रही है। ऐसे में नीतियां बनाने का सही समय तय करना और ब्याज दरों में कटौती के लिए उपलब्ध कम समय का सही इस्तेमाल करना मुश्किल हो सकता है। साथ ही, वैश्विक हालात ज्यादा अस्थिर हो रहे हैं, विदेशी मुद्रा (FX) पर दबाव बढ़ रहा है, और FX को संभालने की लागत भी बढ़ती जा रही है। ये चुनौतियां पिछले साल की तुलना में इस बार ज्यादा गंभीर हैं।

First Published - December 10, 2024 | 4:53 PM IST

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