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सॉवरिन, पेंशन फंडों के निवेश में पेच

Last Updated- December 12, 2022 | 8:32 AM IST

बजट में वेल्थ फंडों और पेंशन फंडों के लिए बुनियादी परियोजनाओं में निवेश से संबंधित नियम आसान बनाने की कोशिश की गई थी। हालांकि इनमें कुछ नियमों को लेकर तस्वीर अभी साफ नहीं है। उदाहरण के लिए होल्डिंग कंपनी के जरिये बुनियादी परियोजनाओं में निवेश से कराधान के लिहाज से कुछ प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं। इसके अलावा इससे नई और पुरानी परियोजनओं के बीच कानूनी विवाद भी खड़ा हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार जिस होल्डिंग कंपनी के जरिये निवेश होना है उसकी मालिकाना संरचना पर स्थिति और साफ किए जाने की दरकार है।
इस बारे में डेलॉयट हास्किंस ऐंड सेल्स में पार्टनर राजेश एच गांधी कहते हैं, ‘होल्डिंग कंपनी के ढांचे से निवेश किया जा सकते हैं, लेकिन होल्डिंग कंपनियों को ही ‘टैक्स पास-थू्र’ दर्जा नहीं दिया गया है। इससे ना चाहते हुए भी कराधान से जुड़ी चिंता खड़ी हो गई है।’ टैक्स पास-थू्र दर्जा का मतलब यह होता है कि निवेशक अर्जित आय पर कर देता है न कि फंड पर। यह दर्जा नहीं दिए जाने का मतलब होगा कि फंडों को अधिक कर चुकाना होगा।
प्राइसवाटरहाउसकपूर्स में पार्टनर तुषार सचदे ने कहा कि इन फंडों को जिन मुद्दों को लेकर परेशानी पेश आई है उनमें ज्यादातर मुद्दों पर कर रियायत से जुड़ी बातें स्पष्ट हैं, लेकिन यह लाभ हाल में ही गठित नई भारतीय होल्डिंग कंपनियों तक ही सीमित है। इससे मौजूदा एवं नई इकाइयों के बीच असंतुलन की स्थिति पैदा हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘सॉवरिन वेल्थ फंड एवं पेंशन फंड मौजूदा और निर्माणाधीन परियोजनाओं में निवेश को तरजीह देते हैं। ये इकाइयां बजट के प्रावधानों के लिए योग्य नहीं हो सकते हैं। ऐसे में सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि यह लाभ मौजूदा इकाइयों के लिए भी उपलब्ध होगा।’ वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में भारत में ढांचागत परियोजनाओं में निवेश करने वाले सॉवरिन एवं पेंशन फंडों को कर से पूर्ण रूप से मुक्त कर दिया गया था। कर छूट का लाभ लेने के इनमें कुछ प्रावधान कुछ कठोर लग रहे थे। हालांकि 2021 के बजट भाषण में इसे थोड़ा आसान बनाने की कोशिश की गई।
जे सागर एसोसिएट्स में पार्टनर अनीश मशरूवाला ने कहा कि ऐसा लगता है कि नई परियोजनाओं के लिहाज से ही होल्डिंग कंपनियों को छूट दी गई है। ये ऐसी परियोजनाएं हैं, जो नियम प्रभावी होने के बाद अस्तित्व में आई हैं। मशरूवाला ने कहा, ‘इसका मतलब यह हो कसता है कि समान शर्तों पर होल्डिंग कंपनी के जरिये नई पूंजी मौजूदा ढांचागत परियोजनाओं में नहीं आएगी। यह अलग बात है कि इनमें कई परियोजनाओं को रकम की जरूरत होगी।’
उन्होंने कहा कि होल्डिंग कंपनी में शेयरधारिता कोष की आवश्यकता से जुड़े नियमों पर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। डेलॉयट के अनुसार कई चिंताएं जरूर दूर कर दी गई हैं, लेकिन इस बात की भी उम्मीद लगाई जा रही थी कि ये लाभ बड़ी प्राइवेट इक्विटी कंपनियों और म्युचुअल फंडों को भी दिए जाएंगे। गांधी ने कहा कि दूसरे खरीदार को भी लाभ दिए जाने की अपेक्षाएं थी और यह भी समझा जा रहा था कि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के लिए भी शर्तें आसान की जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

First Published - February 9, 2021 | 11:38 PM IST

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