क्या बाजारों के लिए जोखिम पैदा हो रहे हैं?
बाजारों के लिए जोखिम बढ़ रहे हैं, लेकिन ये काफी हद तक किसी एक बड़े कॉरपोरेट समूह में हाल में हुई बिकवाली पर आधारित हैं। अल्पावधि से मध्यावधि में, जोखिम ऊंचा बना रहेगा। भारतीय बाजार अतिरिक्त तरलता (liquidity) की वजह से पिछले 18 महीनों में तेजी से चढ़ा था। अब यह तरलता समाप्त हो रही है, हम गिरावट के बजाय समेकन (consolidation) देख रहे हैं। भारतीय कंपनियों के लिए मुनाफा मार्जिन सुधरने की संभावना है, क्योंकि उत्पादन लागत पिछले साल से अपरिवर्तित रही है और कई क्षेत्र मजबूत क्षमता वृद्धि की राह पर बढ़ रहे हैं।
हालांकि तकनीकी तौर पर बाजार अल्पावधि से मध्यावधि में अनिश्चित बने रह सकते हैं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मजबूत विकास संभावनाएं समाप्त नहीं हुई हैं। मैं नहीं मानता कि भारतीय बाजार जल्द ही मंदी की चपेट में आएंगे।
वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा अनुमान के मुकाबले ज्यादा सख्त मौद्रिक नीति का असर कितना दिख चुका है?
मेरा मानना है कि वैश्विक केंद्रीय बैंक बढ़ रही मुद्रास्फीति की वजह से दरों को लंबे समय तक ऊंचा बनाए रखेंगे। इसका दुनियाभर के बाजारों पर नकारात्मक असर दिखेगा। अमेरिका और यूरोप जैसे खपत-केंद्रित देशों में वृद्धि की रफ्तार कमजोर पड़ सकती है।
भारत में, इसका ज्यादातर असर कीमतों पर पहले ही दिख चुका है, क्योंकि विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) बिकवाली की है और घरेलू संस्थागत निवेशकों ने खरीदारी कर समीकरण को संतुलित बनाने में मदद की है। अब, यदि मुद्रास्फीति अस्थायी साबित हुई तो भारत निवेश के लिहाज से बेहद पसंदीदा देश बन सकता है और एफआईआई की वापसी होगी। भारतीय बाजारों के लिए आगामी राह इस पर निर्भर है कि अमेरिकी मुद्रास्फीति का रुख कैसा रहेगा और कब से वैश्विक मौद्रिक प्रोत्साहन फिर से मिल सकेंगे।
क्या केंद्रीय बैंक की सख्ती का बाजारों पर ज्यादा असर दिखा है?
दुनियाभर के बाजार अमेरिका में मुख्य मुद्रास्फीति बरकरार रहने से आश्चर्यचकित हैं। इसी के अनुरूप वे अपने ब्याज दर परिदृश्य को बदल रहे हैं और शायद अधिक सख्त रुख अपनाया जा सकता है।
यह सख्ती तभी उपयुक्त साबित होगी, जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व मुद्रास्फीति परिदृश्य के आधार पर कदम उठाएगा।
क्या यह समय एक साल के नजरिये से इक्विटी के बजाय बॉन्डों और सोने पर ध्यान देने का है?
भारतीय बाजारों को अल्पावधि से मध्यावधि में अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है। करीब एक साल तक वैकल्पिक परिसंपत्ति वर्गों, खासकर डेट में निवेश करना उपयुक्त दांव होगा। ऊंची ब्याज दर व्यवस्था की वजह से बैंक सावधि जमाओं के तहत 9 प्रतिशत सालाना की ऊंची दरों की पेशकश की जा रही है और इनका इस्तेमाल उस समय तक हेजिंग टूल के तौर पर किया जा सकता है, जब तक इक्विटी बाजार मजबूत नहीं हो जाते।
क्या 2023 में मिडकैप और स्मॉलकैप में कमाई के अवसर बने हुए हैं?
इस साल आपको शेयर-केंद्रित नजरिया अपनाने और बॉटम-अप निवेश रणनीति पर ध्यान देने की जरूरत होगी। हम खपत थीम को पसंद कर रहे हैं। हमारा मानना हैकि मजबूत बैलेंस शीट और आय संभावनाओं से जुड़े स्मॉलकैप और मिडकैप शेयरों में निवेश करना उचित होगा। स्मॉलकैप शेयरों ने 2022 में लार्जकैप की तुलना में कमजोर प्रदर्शन किया। आर्थिक सुधार में लगातार तेजी और कॉरपोरेट आय को ध्यान में रखते हुए अच्छी गुणवत्ता के स्मॉलकैप और मिडकैप में निवेश करना समझदारी होगी।
अब तक आपकी निवेश रणनीति कैसी रही है?
हम भारत में खपत थीम पर उत्साहित बने हुए हैं। जहां ग्रामीण खपत में तेज सुधार आना बाकी है, वहीं हमने लग्जरी सेगमेंट में अच्छी तेजी दर्ज की है। हाई-ऐंड होटलों, अपार्टमेंटों, और रेस्टोरेंटों में चहल-पहल बढ़ रही है। हम बैंकों, एफएमसीजी, सीमेंट, वाहन और निर्माण पर सकारात्मक, जबकि आईटी, जिंस, और दवा पर अंडरवेट बने हुए हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों की पश्चिमी दुनिया पर ज्यादा निर्भरता है।
वित्त वर्ष 2024 में कॉरपोरेट आय कैसी रहने का अनुमान है?
बाजारों में 2022-23 के मुकाबले वित्त वर्ष 2024 में 20 प्रतिशत की आय वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है, लेकिन दरों में लगातार इजाफा होने से वृद्धि पर दबाव पड़ रहा है जिससे आय वृद्धि करीब 12-15 प्रतिशत तक सीमित रह सकती है। ग्रामीण मांग पर महंगाई का असर स्पष्ट तौर पर दिखा है, लेकिन अब यह स्थिर होता दिख रहा है।