Market Crash History: भारतीय शेयर बाजार सोमवार को जबरदस्त गिरावट के साथ खुले। ग्लोबल ट्रेड वॉर की आशंका और अमेरिका में मंदी की बढ़ती चिंताओं के चलते निवेशकों में घबराहट दिखी और जमकर बिकवाली देखने को मिली। इस कारण बाजार के लिए सोमवार का दिन ‘ब्लैक मंडे’ साबित हो रहा है।
बाजार खुलते ही सेंसेक्स 3,939.68 अंक गिरकर 71,425.01 पर पहुंच गया। निफ्टी में भी 1,160.8 अंकों की गिरावट आई और यह 21,743.65 के स्तर पर आ गया। कोविड महामारी के बाद से यह अब तक की सबसे बड़ी ओपनिंग गिरावट मानी जा रही है।
सभी 13 प्रमुख सेक्टर्स में गिरावट दर्ज की गई। खासकर आईटी कंपनियों के शेयरों में 7% की गिरावट आई, क्योंकि इनकी आय का बड़ा हिस्सा अमेरिका से आता है। मिड-कैप शेयरों में 4.6% और स्मॉल-कैप शेयरों में 6.2% की गिरावट दर्ज की गई।
एनएसई निफ्टी ने दिनभर के कारोबार में कुल 1,160 अंक की गिरावट दर्ज की, जो 4 जून 2023 के बाद से सबसे बड़ी गिरावट है।
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विदेशी सरकारों को चेतावनी दी है कि अगर वे अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ हटवाना चाहती हैं, तो उन्हें इसके बदले “बहुत पैसा” चुकाना होगा। उन्होंने इन टैरिफ को ‘दवा’ बताते हुए जरूरी बताया।
ट्रंप की इस सख्त चेतावनी के बाद वैश्विक शेयर बाजारों में भी भारी गिरावट देखने को मिली। एशियाई बाजारों में तेज गिरावट रही और अमेरिकी स्टॉक मार्केट फ्यूचर्स ट्रेड भी काफी नीचे चला गया। ट्रंप द्वारा टैरिफ लगाने से ग्लोबल ट्रेड वॉर की आशंका और गहरी हो गई है, जिससे निवेशकों में डर और घबराहट बढ़ गई।
जापान का निक्केई इंडेक्स 8% से ज्यादा टूटा, जबकि टॉपिक्स इंडेक्स में 8.6% की गिरावट दर्ज की गई। गिरावट इतनी तेज थी कि जापानी फ्यूचर्स ट्रेडिंग को अस्थायी रूप से रोकना पड़ा, क्योंकि सर्किट ब्रेकर ट्रिगर हो गया।
दक्षिण कोरिया के बाजारों में भी बड़ा झटका देखने को मिला। कोस्पी इंडेक्स शुरुआती कारोबार में 4.3% गिर गया, जबकि कोस्डाक इंडेक्स में 3.4% की गिरावट रही।
ऑस्ट्रेलिया का ASX 200 इंडेक्स 6% गिरा और यह अब फरवरी की ऊंचाई से 11% नीचे आ चुका है—जिसका मतलब है कि यह करेक्शन ज़ोन में प्रवेश कर गया है।
अमेरिका में निवेशकों का भरोसा भी डगमगाता नजर आया। डॉव जोंस फ्यूचर्स 979 अंक यानी 2.5% टूट गया। S&P 500 फ्यूचर्स में 2.9% और नैस्डैक-100 फ्यूचर्स में 3.9% की गिरावट आई।
सोमवार को आई भारी गिरावट के बीच 1987 में आए ‘ब्लैक मंडे’ की चर्चा भी फिर से शुरू हो गई है। 19 अक्टूबर 1987 को अमेरिका के शेयर बाजार में एक ही दिन में रिकॉर्ड गिरावट देखी गई थी। उस दिन डॉव जोंस इंडेक्स करीब 22% टूट गया था, जो अब तक की सबसे बड़ी एकदिनी गिरावट मानी जाती है।
अमेरिकी शेयर बाजार के इतिहास में यह दिन सबसे काली तारीखों में गिना जाता है, जब S&P 500 और डॉव जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज दोनों में 20% से ज्यादा की गिरावट आई थी और बाजार बियर फेज में चला गया था।
इस क्रैश की प्रमुख वजह प्रोग्राम ट्रेडिंग और लिक्विडिटी की कमी मानी गई, जिसने गिरावट को और तेज किया। जैसे-जैसे शेयर गिरते गए, ट्रेडिंग वॉल्यूम घटता गया और हालात और बिगड़ते गए।
इसके बाद अमेरिका में सर्किट ब्रेकर सिस्टम लागू किया गया ताकि भविष्य में इस तरह की गिरावट से बाजार को रोका जा सके। मौजूदा सिस्टम के अनुसार, यदि बाजार 7% गिरता है तो ट्रेडिंग 15 मिनट के लिए रोकी जाती है। 13% गिरावट पर दोबारा 15 मिनट का ब्रेक लगता है और यदि गिरावट 20% हो जाती है तो उस दिन की ट्रेडिंग पूरी तरह बंद कर दी जाती है।
इस ऐतिहासिक क्रैश का असर न्यूज़ीलैंड तक महसूस हुआ, जहां बाजार अगले पांच महीनों तक गिरता रहा और कुल 60% तक नीचे चला गया।
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6 अप्रैल, रविवार को अमेरिकी शेयर बाजारों में एक बार फिर बड़ी गिरावट देखी गई। डॉव जोंस फ्यूचर्स 1,405 अंक यानी 3.7% गिर गया। S&P 500 फ्यूचर्स में 4.3% और नैस्डैक-100 फ्यूचर्स में 5.4% की गिरावट दर्ज की गई।
इस बीच, मशहूर बाजार विश्लेषक जिम क्रैमर ने चेतावनी दी कि अगर अमेरिकी राष्ट्रपति नियमों का पालन करने वाले देशों और कंपनियों को प्रोत्साहित नहीं करते हैं, तो 1987 जैसी स्थिति दोहराई जा सकती है, जब शेयर बाजार तीन दिन लगातार गिरने के बाद सोमवार को एक ही दिन में 22% तक टूट गया था।