बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज का कारोबार 13,802 अंकों पर वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 14 गुना के स्तर पर हो रहा है।
जिसके वित्तीय वर्ष 2008 के दौरान 19 फीसदी के करीब बढ़ने के आसार हैं। इस स्तर पर संकीर्ण बाजार महंगा नहीं है और व्यापक बाजार काफी सस्ता है। हालांकि शेयर बाजार को जो चीज परेशान कर रही है वह है मैक्रोइकोनोमिक हालात जिसका मतलब है कि आय का स्तर नीचे की ओर जा सकता है।
इस वित्त्तीय वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद के लिए अनुमान पहले ही सात से आठ फीसदी के बीच कर दिया गया है। यदि कारपोरेट ग्रोथ भी अनुमानित ग्रोथ 19 फीसदी से कम 15 फीसदी के स्तर पर रहती है तो बाजार और सस्ता दिखना शुरु हो जाएगा। लोगों की अतिरिक्त आय बढ़ती महंगाई और बढ़ती ब्याज दरों में ही जाया हो रही है। इन हालातों से लोगों को कम खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ा है और शायद कम कारोबार दिखने का भी यही कारण है।
उन्हे जिन्हे होमलोन या टू-व्हीलर खरीदने के लिए लोन लेने के बारे में सोचा था,उन्हें अपने निर्णय पर फिर से विचार करना चाहिए। जिन सेक्टरों को सबसे ज्यादा झटका लगा है उनमें बैंकिंग,ऑटोमोबाइल,रिटेल और रियल एस्टेट सेक्टर शामिल हैं। अब कार और टू-व्हीलर लोन लेना न सिर्फ ज्यादा महंगा होगा बल्कि ये अब आसानी से सुलभ भी नहीं होंगे।
इसलिए कार और दो-पहिया वाहनों की बिक्री के इस वित्त्तीय वर्ष में धीमे रहने के आसार हैं। रिटेलर को भी धीमे कारोबार को देखने के लिए मजबूर होना पड़ेगा क्योंकि बढ़ती महंगाई ने पहले ही लोगों की जेब ढीली कर दी है। क्या कंपनी को अपनी विस्तार योजनाओं को अभी टाल देना चाहिए। निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होनें वाले कच्चे माल और कैपिटल गुड की मांग में भी कमी आ सकती है।
डिश टीवी-विज्ञापन पर खर्च
कंपनी को अपनी बढ़ती लागत को थामने के लिए रीर्सोसेज की जरुरत है और इसके लिए कंपनी ने 1,100 करोड़ का राइट इश्यू लाने का विचार बनाया है। हालांकि कि जब बाजार में मंदी का दौर जारी हो तो बाजार से पूंजी इकठ्ठा करने में समस्या आती है। इसके अतिरिक्त इक्विटी ओवरहैंग का मतलब है कि स्टॉक पर दबाव का बढ़ना। डिश टीवी के बाजार हिस्सेदारी में तेजी से कमी आई है।
कंपनी की वर्तमान में बाजार हिस्सेदारी 59 फीसदी है जो वित्त्तीय वर्ष 2007 में 70 फीसदी थी। हालांकि कंपनी के पास अभी कुछ तेज मार्केटिंग की वजह से 25 लाख उपभोक्ताओं का आधार है और कंपनी का पिछले साल विज्ञापन खर्च ही 97 करोड़ रहा था। ग्राहकों का एक निश्चित कीमत पर आधार बन रहा है।
एक सब्सक्राइबर को एक्वायर करने में मार्च 2008 की तिमाही में 2,600 रुपये लग रहे हैं जबकि दिसंबर 2008 में यह खर्चा सिर्फ 1,800 रुपये था। इन वजहों से डिश टीवी को अपने सेट टॉप बाक्स को कम कीमत पर बेचनें के लिए सब्सिडी देनी पड़ रही है। बढ़ती प्रतियोगिता के बीच सेट टॉप बाक्स की कीमतें और नींचे जा सकती हैं और कंपनी को वित्त्तीय वर्ष 2009 में 2,800 रुपये प्रति उपभोक्ता की सब्सिडी देनी पड़ सकती है। कंपनी को अपने सेट टॉप बाक्स की कीमतें कम कीमत पर रखनी होंगी ताकि कंपनी अपने सब्सक्राइबर की संख्या वित्त्तीय वर्ष 2009 में 20 लाख तक बढ़ा सके।