बाजार में उतार-चढ़ाव के समय ज्यादातर निवेशक शार्ट टर्म बांड फंड में निवेश करना पसंद करते हैं लेकिन पिछले एक महीने में इन फंडों द्वारा दिए गए रिटर्न को देखा जाए तो निवेशक निराश ही हुए हैं।
जून के पहले सप्ताह में संतोष अग्रवाल ने टेम्प्लटन शार्ट टर्म रिटेल इन्कम फंड में 12.5 लाख रुपयो का निवेश किया था। लेकिन हाल में ही जब उन्होंने अपने इस फंड से प्राप्त रिटर्न पर गौर किया तो उसकी कीमत में 0.25 फीसदी या 3,000 रु की कमी आ गयी थी।
ट्रैसेंट इंडिया के निदेशक कार्तिक झावेरी का कहना है कि मै यह तो समझ सकता हूं कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी केचलते रिटर्न में कमी आई है लेकिन पूंजी कैसे कम हो गई, इस पर मुझे अब भी भरोसा नहीं हो पा रहा है। यह सिर्फ टेम्प्लटन की ही बात नही हैं कई और शार्ट टर्म फंड जिन्होंने पिछले एक महीने के दौरान निवेशकों को निराश किया है। डीडब्ल्यूएस शार्ट मैच्योरिटी ने पिछले एक महीने के दौरान -0.66 फीसदी का रिटर्न दिया है जबकि आईडीएफसी एसएसआई शार्ट टर्म फंड -0.61 फीसदी के रिटर्न के साथ दूसरे स्थान पर है।
लोटस इंडिया शार्ट टर्म रिटेल फंड ने -0.57 फीसदी का रिटर्न दिया है। हालांकि ऐसा नहीं है कि सेक्टर ने बहुत खराब प्रदर्शन किया है। एबीएन एमरो शार्ट टर्म रेगुलर इन्कम और एचएसबीसी शार्ट टर्म इन्कम फंड ने 0.7 फीसदी का रिटर्न दिया है। अगर पूरे सेक्टर द्वारा दिए गए रिटर्न को देखा जाए तो औसत रिटर्न 0.14 फीसदी रहा है। आईडीएफसी डेट के मुख्य निवेश अधिकारी राजीव आनंद कहते हैं कि निवेशकों को कम से कम तीन से छ: महीनों के लिए इस तरह के फंडों में निवेश करना चाहिए। हालांकि उन्होंने इस पर कुछ भी कहने से मना कर दिया कि रिटर्न में ये अंतर क्यों है।
फैकलिन टेम्प्लेटन के मुख्य निवेश अधिकारी इसके लिए मार्क टू मार्केट लॉस को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि उनके फंड ने पिछले एक साल में 8.8 फीसदी का रिटर्न दिया है। बाजार विश्लेषकों को जिस बात ने सबसे ज्यादा हैरान किया वह है इन फंडों द्वारा मैच्योरिटी अवधि सामान्यत: एक साल और दो साल के बीच रही। इसके बावजूद भी ये फंड बेहतर रिटर्न दे पाने में नाकाम रहे। उदाहरण के लिए आईडीएफसी फंड की औसत मेच्योरिटी अवधि 1.09 साल और लोटस की औसत मेच्योरिटी अवधि 1.10 साल रही।
उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों ने कहा कि दिसंबर 2007 में कई शार्ट टर्म डेट मैनेजरों मे लांग टर्म बांड मार्केट में प्रवेश किया था जो कि स्वयं में एक विरोधाभास है। एक म्युचुअल फंड विशेषज्ञ का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट और सीआरआर में बढ़ोतरी के बाद इन फंडों के लिए और समस्या उत्पन्न हो गई है। क्योंकि अब बैंकों ने भी डिपॉजिट पर मिलने वाली ब्याज दरों को बढ़ा दिया है।
इसके पहले 2003 में बांड फंडों से मिलने वाला रिटर्न निगेटिव रहा था। वैल्यू रिसर्च के मुख्य कार्यकारी धीरेंद्र कुमार का कहना है कि अगले छ: महीनों में इस तरह के फंडों से कम रिटर्न ही मिलने की संभावना है। जबकि बैंक डिपॉजिट अब निवेशकों को ज्यादा रिटर्न देंगे।