मार्च 2023 तिमाही में सूचीबद्ध (लिस्टेड) शेयरों में देसी निवेशकों – व्यक्तिगत और संस्थागत- की हिस्सेदारी पहली बार 25 फीसदी के पार पहुंच गई है। प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2023 में यह 25.72 फीसदी रही जो दिसंबर के अंत में 24.44 फीसदी ही थी। इस बीच विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की हिस्सेदारी मार्च 2023 में मामूली बढ़कर 20.56 फीसदी रही। दिसंबर 2022 तिमाही में सूचीबद्ध शेयरों में एफपीआई की हिस्सेदारी 20.24 फीसदी थी।
वर्ष 2015 से ही शेयर बाजार में देसी निवेशकों की पकड़ मजबूत हो रही थी और विदेशी फंडों की पकड़ ढीली पड़ने लगी थी।
प्राइम डेटाबेस के अनुसार निफ्टी कंपनियों में FPI की शेयरधारिता मार्च 2015 में 23.3 फीसदी थी, जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों, रिटेल और धनाढ्य निवेशकों (HNI) की कुल हिस्सेदारी महज 18.47 फीसदी थी।
विशेषज्ञों का कहना है कि देसी निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ने से भारतीय बाजार पर विदेशी घटनाओं का असर कम पड़ता है। ऐसा पिछले साल दिखा भी था, जब विदेशी निवेशकों ने बाजार से रिकॉर्ड 33 अरब डॉलर की निकासी की थी। लेकिन देसी शेयरों पर इसका उतना ज्यादा असर नहीं पड़ा था और 2022 में देसी बाजार का प्रदर्शन अधिकतर वैश्विक बाजारों से बेहतर रहा था।
प्राइम डेटाबेस ग्रुप के प्रबंध निदेशक (MD) प्रणव हल्दिया ने कहा, ‘यह लगातार छठी तिमाही है, जब बाजार में देसी निवेशकों की कुल हिस्सेदारी बढ़ी है। यह भारतीय पूंजी बाजार के आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम दर्शाता है।’
देसी संस्थागत निवेशकों की शेयरधारिता जनवरी-मार्च 2023 तिमाही में 16.35 फीसदी रही, जो इससे पिछली तिमाही में 15.32 फीसदी थी। भारतीय म्युचुअल फंडों ने मार्च तिमाही में 54,942 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था, जिससे शेयरों में इनकी हिस्सेदारी बढ़ी थी।
इसी तरह खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी 7.23 फीसदी से बढ़कर 7.48 फीसदी हो गई, लेकिन HNI की शेयरधारिता 1.89 फीसदी से मामूली कम होकर 1.88 फीसदी रही।
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प्राइम डेटाबेस ने कहा, ‘FPI और घरेलू संस्थागत निवेशकों के बीच अंतर घटकर अभी तक के सबसे कम स्तर पर रह गया है। देसी संस्थागत निवेशकों की शेयरधारिता FPI से महज 20.46 फीसदी कम है। दिसंबर 2022 तिमाही में देसी संस्थागत निवेशकों की शेयरधारिता FPI की तुलना में 24.3 फीसदी कम थी। मार्च 2015 में इन दोनों के बीच सबसे ज्यादा 55.45 फीसदी का अंतर था। दिलचस्प है कि FPI और देसी संस्थागत निवेशकों के स्वामित्व का अनुपात भी घटकर 1.26 के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया है।’
देसी संस्थागत निवेशकों के स्वामित्व को करीब से देखें तो उसमें म्युचुअल फंडों का वर्चस्व दिखता है। सूचीबद्ध शेयरों में म्युचुअल फंडों की हिस्सेदारी लगातार 7 तिमाही में बढ़ते हुए मार्च तिमाही में 8.74 फीसदी के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इस बीच बीमा कंपनियों की हिस्सेदारी भी बढ़कर 6 साल के उच्च स्तर 5.87 फीसदी पर चली गई है। देसी शेयरों में बीमा कंपनियों की कुल हिस्सेदारी में अकेले भारतीय जीवन बीमा निगम की हिस्सेदारी करीब दो-तिहाई है।
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दिलचस्प है कि निजी कंपनियों में प्रमोटरों की हिस्सेदारी इस दौरान घटकर तीन साल के निचले स्तर 41.97 फीसदी रह गई है, जो दिसंबर 2022 तिमाही में 43.25 फीसदी थी।
दूसरी ओर सूचीबद्ध कंपनियों में सरकार (प्रमोटर के रूप में) की हिस्सेदारी जून 2009 में 22.48 फीसदी थी, जो धीरे-धीरे घटकर मार्च 2023 तिमाही में 7.75 फीसदी रह गई है। सार्वजनिक क्षेत्र की सूचीबद्ध कंपनियों के विनिवेश की वजह से सरकार की हिस्सेदारी कम हुई है। कुल बाजार पूंजीकरण (mcap) में र्सावजनिक उपक्रमों की हिस्सेदारी घटने का भी प्रभाव पड़ा है।