facebookmetapixel
सीतारमण बोलीं- GST दर कटौती से खपत बढ़ेगी, निवेश आएगा और नई नौकरियां आएंगीबालाजी वेफर्स में 10% हिस्सा बेचेंगे प्रवर्तक, डील की वैल्यूएशन 40,000 करोड़ रुपये तकसेमीकंडक्टर में छलांग: भारत ने 7 नैनोमीटर चिप निर्माण का खाका किया तैयार, टाटा फैब बनेगा बड़ा आधारअमेरिकी टैरिफ से झटका खाने के बाद ब्रिटेन, यूरोपीय संघ पर नजर टिकाए कोलकाता का चमड़ा उद्योगबिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ इंटरव्यू में बोलीं सीतारमण: GST सुधार से हर उपभोक्ता को लाभ, मांग में आएगा बड़ा उछालGST कटौती से व्यापारिक चुनौतियों से आंशिक राहत: महेश नंदूरकरभारतीय IT कंपनियों पर संकट: अमेरिकी दक्षिणपंथियों ने उठाई आउटसोर्सिंग रोकने की मांग, ट्रंप से कार्रवाई की अपीलBRICS Summit 2025: मोदी की जगह जयशंकर लेंगे भाग, अमेरिका-रूस के बीच संतुलन साधने की कोशिश में भारतTobacco Stocks: 40% GST से ज्यादा टैक्स की संभावना से उम्मीदें धुआं, निवेशक सतर्क रहेंसाल 2025 में सुस्त रही QIPs की रफ्तार, कंपनियों ने जुटाए आधे से भी कम फंड

लिस्टेड शेयरों में देसी निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़कर एक-चौथाई हुई

Last Updated- May 04, 2023 | 11:55 PM IST

मार्च 2023 तिमाही में सूचीबद्ध (लिस्टेड) शेयरों में देसी निवेशकों – व्यक्तिगत और संस्थागत- की हिस्सेदारी पहली बार 25 फीसदी के पार पहुंच गई है। प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2023 में यह 25.72 फीसदी रही जो दिसंबर के अंत में 24.44 फीसदी ही थी। इस बीच विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की हिस्सेदारी मार्च 2023 में मामूली बढ़कर 20.56 फीसदी रही। दिसंबर 2022 तिमाही में सूचीबद्ध शेयरों में एफपीआई की हिस्सेदारी 20.24 फीसदी थी।

वर्ष 2015 से ही शेयर बाजार में देसी निवेशकों की पकड़ मजबूत हो रही थी और विदेशी फंडों की पकड़ ढीली पड़ने लगी थी।

प्राइम डेटाबेस के अनुसार निफ्टी कंपनियों में FPI की शेयरधारिता मार्च 2015 में 23.3 फीसदी थी, जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों, रिटेल और धनाढ्य निवेशकों (HNI) की कुल हिस्सेदारी महज 18.47 फीसदी थी।

विशेषज्ञों का कहना है कि देसी निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़ने से भारतीय बाजार पर विदेशी घटनाओं का असर कम पड़ता है। ऐसा पिछले साल दिखा भी था, जब विदेशी निवेशकों ने बाजार से रिकॉर्ड 33 अरब डॉलर की निकासी की थी। लेकिन देसी शेयरों पर इसका उतना ज्यादा असर नहीं पड़ा था और 2022 में देसी बाजार का प्रदर्शन अधिकतर वै​श्विक बाजारों से बेहतर रहा था।

प्राइम डेटाबेस ग्रुप के प्रबंध निदेशक (MD) प्रणव ह​​ल्दिया ने कहा, ‘यह लगातार छठी तिमाही है, जब बाजार में देसी निवेशकों की कुल हिस्सेदारी बढ़ी है। यह भारतीय पूंजी बाजार के आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम दर्शाता है।’

देसी संस्थागत निवेशकों की शेयरधारिता जनवरी-मार्च 2023 तिमाही में 16.35 फीसदी रही, जो इससे पिछली तिमाही में 15.32 फीसदी थी। भारतीय म्युचुअल फंडों ने मार्च तिमाही में 54,942 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था, जिससे शेयरों में इनकी हिस्सेदारी बढ़ी थी।

इसी तरह खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी 7.23 फीसदी से बढ़कर 7.48 फीसदी हो गई, लेकिन HNI की शेयरधारिता 1.89 फीसदी से मामूली कम होकर 1.88 फीसदी रही।

Also read: अप्रैल में शुद्ध‍ बिकवाल हुए म्युचुअल फंड, 5,100 करोड़ रु. के शेयर बेचे

प्राइम डेटाबेस ने कहा, ‘FPI और घरेलू संस्थागत निवेशकों के बीच अंतर घटकर अभी तक के सबसे कम स्तर पर रह गया है। देसी संस्थागत निवेशकों की शेयरधारिता FPI से महज 20.46 फीसदी कम है। दिसंबर 2022 तिमाही में देसी संस्थागत निवेशकों की शेयरधारिता FPI की तुलना में 24.3 फीसदी कम थी। मार्च 2015 में इन दोनों के बीच सबसे ज्यादा 55.45 फीसदी का अंतर था। दिलचस्प है कि FPI और देसी संस्थागत निवेशकों के स्वामित्व का अनुपात भी घटकर 1.26 के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया है।’

देसी संस्थागत निवेशकों के स्वामित्व को करीब से देखें तो उसमें म्युचुअल फंडों का वर्चस्व दिखता है। सूचीबद्ध शेयरों में म्युचुअल फंडों की हिस्सेदारी लगातार 7 तिमाही में बढ़ते हुए मार्च तिमाही में 8.74 फीसदी के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इस बीच बीमा कंपनियों की हिस्सेदारी भी बढ़कर 6 साल के उच्च स्तर 5.87 फीसदी पर चली गई है। देसी शेयरों में बीमा कंपनियों की कुल हिस्सेदारी में अकेले भारतीय जीवन बीमा निगम की हिस्सेदारी करीब दो-तिहाई है।

Also read: Adani Enterprises Q4 results: कुल मुनाफा 137.5 फीसदी बढ़कर 722 करोड़ हुआ

दिलचस्प है कि निजी कंपनियों में प्रमोटरों की हिस्सेदारी इस दौरान घटकर तीन साल के निचले स्तर 41.97 फीसदी रह गई है, जो दिसंबर 2022 तिमाही में 43.25 फीसदी थी।

दूसरी ओर सूचीबद्ध कंपनियों में सरकार (प्रमोटर के रूप में) की हिस्सेदारी जून 2009 में 22.48 फीसदी थी, जो धीरे-धीरे घटकर मार्च 2023 तिमाही में 7.75 फीसदी रह गई है। सार्वजनिक क्षेत्र की सूचीबद्ध कंपनियों के विनिवेश की वजह से सरकार की हिस्सेदारी कम हुई है। कुल बाजार पूंजीकरण (mcap) में र्सावजनिक उपक्रमों की हिस्सेदारी घटने का भी प्रभाव पड़ा है।

First Published - May 4, 2023 | 8:11 PM IST

संबंधित पोस्ट