घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने अगस्त में भारतीय शेयर बाजारों में 94,829 करोड़ रुपये का नया निवेश किया। यह अक्टूबर 2024 के रिकॉर्ड 1.07 लाख करोड़ रुपये के निवेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा मासिक निवेश है। अगस्त में उनकी खरीदारी का सिलसिला लगातार 25वें महीने भी जारी रहा। इस तरह इस लंबी खरीद ने अप्रैल 2017 से जनवरी 2019 तक की पिछली 22 महीनों की लगातार खरीद के लंबे सिलसिले को पीछे छोड़ दिया।
पिछले 25 महीनों में देसी संस्थागत निवेशकों ने देसी शेयरों में अभूतपूर्व 11.4 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया है। इसमें से 8.8 लाख करोड़ रुपये यानी लगभग 75 फीसदी घरेलू म्युचुअल फंडों ने निवेश किया है। इस अवधि में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने करीब 82,348 करोड़ रुपये की निकासी की है।
इस उछाल को उन व्यक्तिगत निवेशकों से ताकत मिली है जो पारंपरिक बचत योजनाओं की बजाय इक्विटी म्युचुअल फंडों की ओर (मुख्यतः व्यवस्थित निवेश योजनाओं यानी एसआईपी के माध्यम से) लगातार बढ़ रहे हैं। जुलाई 2025 में मासिक एसआईपी निवेश 28,464 करोड़ रुपये के साथ एक और सर्वकालिक शिखर पर पहुंच गया।
देश के सबसे बड़े फंड हाउस एसबीआई म्युचुअल फंड के उप-प्रबंध निदेशक और संयुक्त सीईओ डी पी सिंह ने कहा, जिसे हम डीआईआई का पैसा कहते हैं, वह असल में एसआईपी के जरिये आने वाला खुदरा निवेशकों का पैसा है। उन्होंने कहा, व्यक्तिगत निवेश का आकार छोटा है, लेकिन प्रतिभागियों की विशाल संख्या कुल मिलाकर इसे बड़ा बना देती है।
सिंह का मानना है कि निवेशकों ने निवेशित रहने के तर्क को समझ लिया है। जब बाजार में गिरावट आती है तो वही रुपया ज्यादा यूनिट खरीदता है और जब बाजार में उछाल आती है तो वे अतिरिक्त यूनिट बड़े मुनाफे में बदल जाते हैं।
घरेलू संस्थानों (जिनमें म्युचुअल फंडों के अलावा बीमा कंपनियां और पेंशन फंड शामिल हैं) की लगातार खरीदारी ने स्वामित्व का नक्शा ही बदल दिया है। घरेलू संस्थागत निवेशकों की होल्डिंग जून 2025 में 17.82 फीसदी के नए उच्च स्तर को छू गई जो मार्च तिमाही में पहली बार विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफपीआई) से आगे निकल गई थी। भारतीय रिजर्व बैंक का ताजा बुलेटिन इस रुझान को बतातात है।
इसके अनुसार कुल बैंक जमाओं और म्युचुअल फंडों की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों (एयूएम) का अनुपात दोगुने से भी अधिक हो गया है। मार्च 2014 में यह करीब 10 फीसदी था जो बढ़कर मार्च 2024 में 23.8 फीसदी हो गया)। इससे संकेत मिलते हैं कि महत्त्वाकांक्षी मध्य वर्ग के लिए इक्विटी फंड जमाओं के गंभीर विकल्प के रूप में उभर रहे हैं।
इस प्रकार, घरेलू रकम ने एफपीआई की बिकवाली के खिलाफ शॉक आब्जर्वर का काम किया है। फिर भी कई ट्रेडर अभी भी मानते हैं कि एफपीआई का निवेश ही मुख्य रूप से कीमतें तय करता है।
जुलाई और अगस्त में अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापारिक तनाव के बीच विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 54,463 करोड़ रुपये की बिकवाली की जबकि घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने 1.5 लाख करोड़ की खरीदारी की। इसमें अकेले म्युचुअल फंडों का योगदान 1.02 लाख करोड़ रुपये रहा। निवेश के अलग-अलग रुझानों ने सूचकांकों पर दबाव बनाए रखा। अगस्त में निफ्टी में 1.4 फीसदी, मिडकैप 100 में 2.9 फीसदी और स्मॉलकैप 100 में 4.1 फीसदी की गिरावट आई। बीएसई का कुल बाजार पूंजीकरण 6 लाख करोड़ रुपये कम हो गया। अगर डीआईआई की मदद नहीं होती तो नुकसान और ज्यादा होता।
स्वतंत्र इक्विटी विश्लेषक अंबरीश बालिगा ने कहा, कोविड के बाद एसआईपी पंजीकरण में भारी वृद्धि हुई है। एक बार पैसा आ जाने के बाद फंड मैनेजरों को इसे लगाना ही पड़ता है। उन्हें उम्मीद है कि जब तक इक्विटी तीन से पांच साल की अवधि में सकारात्मक रिटर्न देती रहेगी, तब तक निवेश की यह रफ्तार बनी रहेगी। बालिगा ने कहा, दीर्घकालिक निवेशकों ने इक्विटी में धन सृजन देखा है और कम-प्रतिफल वाली सावधि जमाओं में वापस लौटने का विकल्प आकर्षक नहीं रह गया है।