भारतीय सामान पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने के डॉनल्ड ट्रंप के फैसले के बाद बाजारों में तेज गिरावट दर्ज हुई और एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स सत्र के दौरान करीब 800 अंक तक फिसल गया। ब्रोकरेज फर्मों को उम्मीद है कि अंतिम टैरिफ कम यानी 15-20 फीसदी के दायरे में होगा क्योंकि दोनों देश अभी भी व्यावहारिक समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं। ब्रोकरेज फर्मों ने इस घटनाक्रम की व्याख्या कैसे की। एक नजर :
हालांकि 25 फीसदी टैरिफ की चौंकाने वाली घोषणा से आय पर असर पड़ने की संभावना है। एमएससीआई इंडिया के कुल राजस्व का केवल 2 फीसदी ही वस्तु निर्यात क्षेत्रों से मिलता है। ऐसे में हमारी आधारभूत पास-थ्रू धारणाओं के आधार पर टैरिफ का सीधा असर अपेक्षाकृत कम है।
अमेरिकी टैरिफ दरों में हर 5 प्रतिशत की वृद्धि से एमएससीआई इंडिया की प्रति शेयर आय (ईपीएस) में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष माध्यमों से 80 आधार अंक की गिरावट आ सकती है। हमारा अनुमान है कि नए टैरिफ लागू होने पर ईपीएस पर करीब 2 प्रतिशत की इन्क्रीमेंटल गिरावट आएगी। हम अपने ईपीएस वृद्धि के अनुमानों (वर्तमान में कैलेंडर वर्ष 25/26 के लिए 12 फीसदी/14 फीसदी) में कोई बदलाव नहीं कर रहे हैं। भारतीय इक्विटी इस वर्ष जनवरी से अब तक व्यापक उभरते बाजारों (ईएम) की इक्विटी से काफी पीछे रह गई है। निकट भविष्य में इस तरह का कमजोर प्रदर्शन जारी रहने की संभावना है।
हालांकि घोषित 25 फीसदी की उच्च टैरिफ दर अस्थायी हो सकती है और आगे इसमें कमी की जा सकती है। इस प्रक्रिया के तहत अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधिमंडल अगस्त के अंत में भारत का दौरा करने वाला है। इसलिए हमारे विचार से अमेरिका द्वारा घोषित ऊंची टैरिफ दर के स्थायी होने की संभावना नहीं है। हालांकि यह 15-20 फीसदी के दायरे में रह सकती है। मध्य अवधि में हम अभी भी उम्मीद करते हैं कि चीन प्लस वन रणनीति का भारत लाभार्थी बना रहेगा।
अमेरिका के ऊंचे शुल्क आरबीआई के वित्त वर्ष 26 के 6.5 फीसदी के जीडीपी वृद्धि अनुमान में गिरावट का जोखिम बढ़ा सकते हैं। हमारा मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का ब्याज दरों में कटौती का चक्र अभी खत्म नहीं हुआ है, भले ही उसने रुख तटस्थ कर लिया हो। हमारा अनुमान है कि अक्टूबर और दिसंबर में 25-25 आधार अंकों की कटौती के साथ 2025 के अंत तक टर्मिनल रीपो दर 5.00 फीसदी हो जाएगी और इसमें आगे भी कटौती की संभावना रहेगी।
फिलहाल सबसे अच्छी खबर यह है कि सेवाएं इस दायरे से बाहर हैं, जहां गंभीर नुकसान हो सकता है। ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और जापान ने व्यापार समझौता कर लिया है। इंडोनेशिया को 19 फीसदी, जापान को 15 फीसदी, जबकि वियतनाम को 20 फीसदी की दर का लाभ मिला हुआ है। भारत अब इस क्रम में आकर्षक स्थिति में नहीं रहा। इससे भी बुरा समय आ सकता है क्योंकि अगर चीन किसी तरह 34 फीसदी पर समझौता कर लेता है (जो कि मूल योजना थी) तो इससे भारत-चीन का अंतर बहुत कम हो जाएगा, लेकिन इतना अधिक भी नहीं कि भारत का चीन+1 जैसा सार्थक प्रभाव हो।
निर्यातोन्मुखी शेयर निकट भविष्य में कमजोर प्रदर्शन कर सकते हैं। व्यापार वार्ता के सकारात्मक होने तक निवेशकों का रुझान सतर्क रहने की उम्मीद है। एफपीआई स्पष्टता आने तक प्रतीक्षा और निगरानी की नीति अपना सकते हैं या उनका रुख सेक्टर रोटेशन की ओर बढ़ सकता है। निवेशकों (घरेलू और विदेशी) का ध्यान घरेलू वृद्धि, खपत, बुनियादी ढांचे और वित्तीय कंपनियों पर केंद्रित होने की उम्मीद है, जो निर्यात पर कम निर्भर हैं।
टैरिफ की घोषणा व्यापार से इतर बात है और ऑपरेशन सिंदूर के बाद से ही भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर इसके कहीं बड़े भू-राजनीतिक प्रभाव पड़ सकते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद रक्षा खरीद का काम अमेरिका से हटने की संभावना के कारण टैरिफ और जुर्माना अचानक लगाया जा सकता है। हमारा मानना है कि अमेरिका का यह प्रयास धमकाने वाली रणनीति है जिसका इस्तेमाल कनाडा सहित कुछ अन्य देशों के खिलाफ भी किया गया है। हमें निकट भविष्य में अनिश्चितता और बाजार में अस्थिरता बढ़ने की उम्मीद है। जिन कंपनियों का अमेरिका को निर्यात ज्यादा है, उनमें अस्थिरता बढ़ सकती है। घरेलू खपत, अस्पताल, चुनिंदा उपभोक्ता, बुनियादी ढांचा, पूंजीगत वस्तुएं, एएमसी और निजी बैंक इस अस्थिर समय में रक्षात्मक भूमिका निभाएंगे।
हमें नहीं लगता कि 25 फीसदी टैरिफ का यह खतरा जीडीपी वृद्धि पर कोई खास असर डालेगा और इसका संभावित असर लगभग 30 आधार अंकों पर सिमटने का अनुमान है। हमें उम्मीद है कि निकट भविष्य में दबाव बना रहेगा। रुपया अल्पावधि में ओवरसोल्ड दिख रहा है। फरवरी का 88 के आसपास का उच्च स्तर मजबूत प्रतिरोध स्तर बना हुआ है।