बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अपने नए चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय के नेतृत्व में बेहतर पारदर्शिता और कारोबारी सुगमता की दिशा में कदम बढ़ाते हुए प्रभावी एवं इष्टतम विनियमन का लक्ष्य निर्धारित किया है। पांडेय की अध्यक्षता में आज सेबी की पहली बोर्ड बैठक हुई। इसमें बाजार नियामक ने शीर्ष अधिकारियों के हितों के टकराव की समीक्षा के लिए उच्चस्तरीय समिति गठित करने का निर्णय लिया। इसके अलावा नियामकीय प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए कई उपायों की घोषणा की गई।
यह उच्चस्तरीय समिति शीर्ष अधिकारियों के लिए हितों के टकराव, खुलासे एवं उनसे संबंधित मामलों के प्रावधानों की व्यापक समीक्षा करेगी। इसका उद्देश्य सेबी में पारदर्शिता की चिंताओं को दूर करना है क्योंकि इससे पूर्व चेयरमैन को हितों के टकराव संबंधी आरोपों से जूझना पड़ा था। प्रतिष्ठित व्यक्तियों और विशेषज्ञों वाली इस उच्चस्तरीय समिति को गठन के तीन महीने के भीतर सिफारिशें प्रस्तुत करनी होगी। उसके बाद सुझावों को विचार के लिए बोर्ड के समक्ष रखा जाएगा।
पांडेय ने हितों के टकराव के बारे में कहा कि इस ढांचे में अंतिम बार 2008 में संशोधन किया गया था और इसलिए उसे अद्यतन बनाना जरूरी था। उन्होंने बोर्ड बैठक के बाद संवादाताओं से बातचीत में कहा, ‘भरोसे के बारे में चिंता जताई जा रही थी। मैं केवल इतना कहना चाहूंगा कि सबकुछ ठीक है। इसमें छिपाने वाली कोई बात नहीं है। हमें इसके लिए एक ढांचा बनाने की जरूरत है कि कोई कैसे शिकायत कर सकता है, उस पर कैसे विचार किया जाता है और सबसे अच्छी प्रथाएं क्या हैं।’ बाजार नियामक ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा अतिरिक्त खुलासे के लिए निवेश की सीमा को 25,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये कर दिया है। पांडेय ने कहा कि इन उपायों से बाजार में अधिक पूंजी लाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि बाजार नियामक पूंजी निर्माण में सहायता के लिए एफपीआई के साथ बातचीत कर रहा है।
बाजार नियामक ने अगस्त 2023 में खुलासा मानदंडों को लागू किया था। उसके अनुसार, 25,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश (एयूसी) अथवा 50 फीसदी से अधिक निवेश किसी एक ही समूह में करने वाले एफपीआई को स्वामित्व के बारे में अतिरिक्त खुलासा करना आवश्यक होगा। मगर सेबी ने अब इस सीमा को दोगुना कर दिया है और एक ही समूह में 50 फीसदी निवेश को अपरिवर्तित रखा है।
बोर्ड ने निवेश सलाहकारों और अनुसंधान विश्लेषकों को एक साल तक के लिए अग्रिम फीस लेने की अनुमति देने का निर्णय लिया है जो ग्राहक के साथ हुए समझौते पर निर्भर करेगा। इससे पहले ने निवेश सलाहकारों अधिकतम दो तिमाहियों और अनुसंधान विश्लेषकों को एक तिमाही के लिए अग्रिम फीस लेने की अनुमति थी।
इस बीच सेबी बोर्ड ने मर्चेंट बैंकरों, डिबेंचर ट्रस्टियों और कस्टोडियन को नियंत्रित करने वाले नियमों में संशोधन को फिलहाल टाल दिया है। संशोधित प्रस्तावों पर भविष्य की बैठकों में विचार किया जाएगा। गैर-सूचीबद्ध डेट प्रतिभूतियों की सीमित उपलब्धता के कारण बाजार नियामक ने कहा है कि श्रेणी II के एआईएफ द्वारा ‘ए’ या इससे कम रेटिंग वाली ऋण प्रतिभूतियों में किए गए निवेश को अब गैर-सूचीबद्ध प्रतिभूतियों में किए गए निवेश के समान माना जाएगा।
बाजार नियामक ने मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशंस (एमआईआई) के प्रशासनिक बोर्ड में पब्लिक इंटरेस्ट डायरेक्टर (पीआईडी) की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव को भी मंजूरी दी है। इसके अलावा मौजूदा प्रक्रिया जारी रहेगी जिसके लिए सेबी से मंजूरी लेना आवश्यक है न कि शेयरधारकों से। इसके अलावा बोर्ड ने यह भी कहा है कि अगर कोई एमआईआई का प्रशासनिक बोर्ड किसी मौजूदा पीआईडी को उनके पहले कार्यकाल के बाद दोबारा नियुक्त करना चाहता है तो उसके बारे में सेबी को विस्तार से बताना होगा। सेबी के अधिकारियों ने एफऐंडओ श्रेणी में जोखिम पर नजर रखने और ओपन इंटरेस्ट फॉर्मूलेशन के लिए प्रस्तावित सुधारों के बारे में जानकारी दी। हालांकि उस पर अधिकतर प्रतिक्रियाएं सकारात्मक रही हैं, लेकिन प्रमुख हितधारकों ने कुछ चिंता जताई है जिस पर बाजार नियामक गंभीरतापूर्वक विचार करेगा। सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अनंत नारायण ने हेजिंग, मार्केट मेकिंग और मूल्य की खोज के लिए एफऐंडओ के महत्त्व को स्वीकार किया।