भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने नई पीढ़ी के स्टार्टअप के लिए अलग मंच इनोवेटर्स ग्रोथ प्लेटफॉर्म (आईजीपी) पर सूचीबद्घता एवं पात्रता के नियमों में आज ढील देने की घोषणा की। वर्तमान में कंपनी को आईजीपी पर सूचीबद्घ होने के लिए उसके संस्थागत निवेशकों को निर्गम-पूर्व पूंजी का 25 फीसदी कम से कम दो साल तक अपने पास बनाए रखना होता था। लेकिन अब इसे घटाकर 1 साल कर दिया गया है।
सेबी ने कंपनियों को आईजीपी पर सूचीबद्घ कराने के लिए ज्यादा मताधिकार की भी अनुमति दी है। इसके साथ ही इस प्लेटफॉर्म पर सूचीबद्घ कंपनियों के लिए खुली पेशकश लाने की आवश्यकता को 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी कर दिया है। कंपनी को गैर-सूचीबद्घ कराने या उसे मुख्य एक्सचेंज – एनएसई या बीएसई में ले जाने के नियमों में भी ढील दी है।
आईजीपी को 2019 में लाया गया था जिसका उद्देश्य तकनीक आधारित स्टार्टअप या कंपनियों को सूचीबद्घता का मौका प्रदान करना है। इसके लिए नियम मुख्य एक्सचेंज पर सूचीबद्घ कराने की तुलना में काफी आसान रखे गए हैं। हालांकि अभी तक इस प्लेटफॉर्म पर कोई कंपनी सूचीबद्घ नहीं हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि सेबी द्वारा नियमों में ढील देने से आईजीपी प्लेटफॉर्म पर सूचीबद्घता में तेजी आ सकती है।
बीडीओ इंडिया में ट्रांजेक्शन टैक्स के पार्टनर एवं लीडर राजेश ठक्कर ने कहा, ‘आईजीपी के लिए कई बदलाव के प्रस्ताव किए गए हैं। इससे स्टार्टअप के लिए पूंजी जुटाने की राह आसान होगी।’ इस बीच सेबी के निदेशक मंडल ने गैर-सूचीबद्घता के नियमों में भी थोड़ा बदलाव किया है। नए नियम के अनुसर प्रवर्तकों को कंपनी की सूचीबद्घता खत्म कराने का मकसद का खुलासा करना होगा। इसके साथ ही स्वतंत्र निदेशकों को अल्पांश शेयरधारकों को गैर-सूचीबद्घता के प्रस्ताव पर सिफारिश देने का कारण भी बताना होगा। इसके अलावा सेबी ने गैर-सूचीबद्घता को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए प्रक्रिया के लिए अलग-अलग समयसीमा भी तय की है। सेबी ने प्रवर्तक शेयरधारिता के पुनर्वर्गीकरण के संबंध में भी कुछ ढील दी है। 1 फीसदी से कम शेयरधारिता वाले प्रवर्तकों और कंपनी पर नियंत्रण नहीं रखने वाले प्रवर्तकों को साधारण शेयरधारक में पुनर्वर्गीकरण के लिए शेयरधारकों की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। इसके साथ ही बोर्ड बैठक और शेयरधारकों की बैठकों के बीच अंतराल को भी कम किया गया है।
सूचीबद्घ कंपनियों के लिए खुलासा नियमों में भी कई बदलाव किए गए हैं। नियामक ने कहा कि विश्लेषक और संस्थागत निवेशकों के साथ बैठकों के सभी वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग को 24 घंटे के अंदर सार्वजनिक करना होगा। ऐसी बैठकों का लिखित विवरण पांच दिन के अंदर उपलब्ध कराना होगा।विशेषज्ञों का कहना है कि नए नियम से कंपनी से जुड़ी संवेदनशील सूचनाओं को चुनिंदा निवेशक समूह को देने पर रोक लगेगी। ऐसा होने से छोटे शेयरधारकों को नुकसान होता था।
सेबी ने लाभांश वितरण नीति का दायरा बढ़ाते हुए शीर्ष 1,000 कंपनियों को इसमें शामिल कर लिया है। अब शीर्ष 1,000 कंपनियों को भी जोखिम प्रबंधन समिति का गठन करना होगा। अभी तक यह बाजार मूल्य के हिसाब से शीर्ष 500 कंपनियों के लिए अनिवार्य था। नियामक ने कहा कि बिजनेस उत्तरदायित्व रिपोर्ट (बीआरआर) की जगह उत्तरदायित्व और निरंतरता रिपोर्ट (बीआरएसआर) प्रभावी होगा। बीआरएसआर वित्त वर्ष 2023 से शीर्ष 1,000 कंपनियों के लिए अनिवार्य होगा। इसका मकसद पर्यावरण, सामाजिक और संचालन को ध्यान में रखते हुए खुलासा गुणवत्ता में सुधार लाना है।
सेबी ने कहा, ‘रिपोर्टिंग के नए नियम से ज्यादा पारदर्शिता आएगी और बाजार के भागीदारों को इससे जुड़े जोखिमों और अवसरों की जानकारी मिलेगी।’
सेबी ने वैकल्पिक निवेश फंडों में भी बदलाव का प्रस्ताव किया है। एंजल फंडों से निवेश जुटाने के लिए स्टार्टअप के लिए सरकार द्वारा निर्दिष्ट परिभाषा तय की है। इसके साथ ही सेबी ने वेंचर कैपिटल अंडरटेकिंग की परिभाषा से प्रतिबंधित गतिविधियों या क्षेत्रों की सूची को हटा दिया है। इससे वेंचर कैपिटल फंडों को ज्यादा सहूलियत होगी।