रूस-यूक्रेन के बीच टकराव से जिंसों के दाम में चल रही तेजी को और गति मिल गई है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा मार्च में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की संभावना है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इन वजहों से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को अपनी नीतिगत दरों को सामान्य करने पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। उनका कहना है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें बड़ा जोखिम हैं।
बीओबी कैपिटल रिपोर्ट में कहा गया है, ‘केंद्रीय बजट और रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की घोषणा इस संकट के बहुत पहले हुई थी। इसमें कच्चे तेल की कीमतों के झटके को शामिल नहीं किया गया था। बजट और रिजर्व बैंक दोनों ने कच्चे तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल रहने का रूढि़वादी अनुमान लगाया था। यह आगे चलकर बदल सकता है।’ ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स गुरुवार को इंट्रा डे कारोबार में 120 डॉलर प्रति बैरल को छू गया, जो 9 साल का शीर्ष स्तर है। कैलेंडर वर्ष 2022 में अब तक ब्रेंट क्रूड की कीमत में 52 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और यह बजट पेश किए जाने के बाद से करीब 32 प्रतिशत बढ़ा है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि तेल के ज्यादा दाम से न सिर्फ भारत का व्यापार घाटा बढ़ेगा बल्कि इसका महंगाई और राजकोषीय स्थिति पर भी असर पड़ेगा।
एडलवाइस सिक्योरिटीज के मुताबिक अगर कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल पर स्थिर रहती है तो भारत का चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 1 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। और घरेलू बाजार में तेल की कीमत में 10 से 15 रुपये लीटर की बढ़ोतरी हो सकती है और इससे महंगाई दर में 60 से 70 आधार अंक की बढ़ोतरी हो सकती है।
नोमुरा ने कहा, ‘राज्यों में चुनाव के कारण नवंबर 2021 से पेट्रोल, डीजल व एलपीसी के खुदरा दाम में बढ़ोतरी नहीं हुई है। पेट्रोल और डीजल की कीमत में करीब 10 प्रतिशत और रसोई गैस की कीमत में 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ोतरी करने की जरूरत है, जिससे इनकी कीमतें अंतरराष्ट्रीय मूल्य के मुताबिक की जा सकें।’ आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के मुख्य अर्थशास्त्री प्रसेनजीत के बसु ने अनुमान लगाया है कि अप्रैल-जुलाई में रीपो रेट में 50 आधार अंक की बढ़ोतरी हो सकती है क्योंकि महंगाई पहले ही लक्षित सीमा से ऊपर पहुंच चुकी है।
अन्य नीतिगत चुनौती यह है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व दरों में बढ़ोतरी करने जा रहा है। फेड की सख्ती और तेल की कीमतें ज्यादा होने से वैश्विक अर्थव्यवस्था नीचे जाएगी। और इस समय आर्थिक रिकवरी मूल्य और मात्रा, वस्तुओं व सेवाओं, यूएल और ईएम, बड़े व छोटे उद्योग के बीच बुरी तरह विभाजित है। वैश्विक ऋण भी अब तक के शीर्ष पर है।
बैंक आफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘अगर यह अनुमान लगाएं कि रिजर्व बैंक की अप्रैल पॉलिसी की बैठक तक स्थिति यथावत रहेगी तो ऐसे में केंद्रीय बैंक अपना समावेशी रुख बदलकर तटस्थ कर सकता है, भले ही वह दरों को लेकर यथास्थिति बनाए रखे।’