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मार्जिन के नए नियम से घटेगा कारोबार

Last Updated- December 14, 2022 | 8:43 PM IST

नया उच्चतम मार्जिन के प्रभावी होने से आने वाले महीनों में वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) के वॉल्यूम में करीब एक-तिहाई तक की कमी आ सकती है। बाजार के कुल कारोबार में एफऐंडओ खंड की हिस्सेदारी करीब 90 फीसदी और दिन के कारोबार में करीब आधी हिस्सेदारी है।
मंगलवार से ब्रोकरों द्वारा इंट्राडे में दिए जाने वाले अधिकतम लीवरेज को सीमित कर दिया जाएगा और इसे 1 सितंबर, 2021 तक कम रखा जाएगा। इसके बाद ब्रोकर वायदा एवं विकल्प खंड में एसपीएएन और एक्सपोजर के बराबर और नकद खंड में वीएआर और ईएलएम (न्यूनतम 20 फीसदी) के बराबर लीवरेज दे सकेंगे। एसपीएएन जोखिम का मानक पोर्टफोलियो विश्लेषण है, वहीं वीएआर जोखिम का मूल्य और ईएलएम अत्यधिक जोखिम मार्जिन है, जिसके आधार पर किसी प्रतिभूति में निवेश के जोखिम का आकलन किया जाता है। देश की सबसे बड़ी ब्रोकिंग कंपनी जीरोधा के मुख्य कार्याधिकारी नितिन कामत ने कहा, ‘लीवरेज कम होने से एफऐंडओ के वॉल्यूम में कमी आ सकती है। जीरोधा में आने वाले महीनों में 20 से 30 फीसदी वॉल्यूम कम हो सकता है। ऐसे ब्रोकर जो इंट्राडे लीवरेज का आक्रामक तरीके से उपयोग करते हैं, उनके कारोबार पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा।’
वर्तमान में ब्रोकर मार्जिन की रिपोर्ट दिन के अंत में करते हैं, जिसकी वजह से वे उन ग्राहकों को भी अतिरिक्त लीवरेज देने में सक्षम होते हैं, जिनके पास न्यूनतम मार्जिन भी नहीं होता है। हालांकि इसमें शर्त होती है कि दिन के कारोबार खत्म होने से पहले वे पोजिशन का निपटान करेंगे। इसके साथ ही अगर ब्रोकर इंट्राडे पोजिशन में न्यूनतम मार्जिन सुरक्षित करने में विफल रहता है तो शॉर्ट मार्जिन का जुर्माना लगेगा।
प्रभुदास लीलाधर में मुख्य कार्याधिकारी, रिटेल संदीप रायचूड़ा ने कहा, ‘सेबी ने डेरिवेटिव में पहले चरण में एक्सपोजर को चार गुना तक सीमित कर दिया है और इससे रिटेल वायदा वॉल्यूम पर असर पड़ेगा, खास तौर पर निपटान के दिन।’
ब्रोकर आम तौर पर एफऐंडओ खंड में इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए 4 से 8 गुना तक लीवरेज की पेशकश करते हैं, जो कई बार 30 से 40 गुना तक पहुंच सकता है। उद्योग के भागीदारों का कहना है कि निफ्टी और निफ्टी बैंक सूचकांकों पर साप्ताहिक और मासिक निपटान के दिन लगाए गए दांव में काफी कमी आ सकती है। ब्रोकरों की रिटेल आय में एफऐंडओ खंड की हिस्सेदारी करीब 40 से 60 फीसदी होती है। ऐसे में नए नियम से दिसंबर तिमाही में ब्रोकरों की आय में 10 से 15 फीसदी की कमी आ सकती है।
उद्योग के भागीदारों को उम्मीद है कि नए नियम से जोखिम कम करने और दीर्घावधि में ज्यादा ट्रेडर्स को आकर्षित करने में मदद मिलेगी।
जिरोधा के मुख्य कार्याधिकारी नितिन कामत ने कहा, ‘ज्यादा लीवरेज होने से ट्रेडरों को पैसे गंवाने का भी जोखिम रहता है। कम लीवरेज से उनका जोखिम कम होगा और वे लंबे समय तक कारोबार में बने रह सकते हैं।’
रायचूड़ा के अनुसार शेयर के डेरिवेटिव से नकद खंड में कारोबार जा सकता है क्योंकि नकद में मार्जिन डेरिवेटिव की तुलना में कम होता है।
मंगलवार से कुछ विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भी स्थिति स्पष्ट होने तक ट्रेडिंग से दूर रह सकते हैं। डेरिवेटिव वॉल्यूम में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की हिस्सेदारी करीब 15 फीसदी है, जो दैनिक औसत वॉल्यूम 2 से 3 लाख करोड़ रुपये के बराबर है।
विदेशी निवेशकों का प्रतिनिधित्व करने वाला एशिया सिक्योरिटीज इंडस्ट्री ऐंड फाइनैंशियल मार्केट्स एसोसिएशन पिछले हफ्ते भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड से मिलकर पीक मार्जिन के नियम को कम से कम तीन महीने के लिए टालने और समुचित मार्जिन नहीं होने पर जुर्माना घटाने का आग्रह किया था।

First Published - November 30, 2020 | 11:14 PM IST

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