सरकार और रिजर्व बैंक ने वित्तीय प्रणाली में तरलता बहाल करने के लिए भले ही आवश्यक कदम उठाएं हैं लेकिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी)अभी भी फंडों की कमी का रोना रो रही हैं।
एनबीएफसी के कराहने की वजह यह है कि बैंक अभी भी इनको कर्ज देने में अपनी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। विभिन्न वित्तीय कंपनियों के अधिकारियों का कहना है कि बैंक उनको 13 फीसदी के ब्याज पर फंड मुहैया करा रहे हैं जिससे उधारी पर होनेवाला खर्च 15 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया है ।
इससे उनको कारोबार करने में काफी परेशानियों का सामना करना पडा रहा है। उल्लेखीय है कि निवेशकों द्वारा एनबीएफसी में निवेश करने से परहेज करने के बार इन कंपनियों के लिए बाजार से फंड जुटाना आसान नहीं रह गया है।
हालांकि बैंक इन कंपनियों को कर्ज देने में कोताही को लेकर कुछ दूसरी वजह बता रहे हैं। बैंक इस बात को मान रहे हैं कि सरकारी सहायता केबाद भी बैंक के कर्ज देने में मामूली सुधार हुआ है क्योंकि एनबीएफसी को लेकर संभावनाए बहुत ज्यादा बेहतर अभी भी नहीं लग रही है।
इस बाबत एक वरिष्ठ बैंक अधिकारी ने कहा कि अक्टूबर से एनबीएफसी के ऊपर मासिक रिपोर्ट और लोन बुक के विश्लेषणों के शुरू होने के बाद इस इन कंपनियों की कोई बहुत अच्छी तस्वीर उभर कर नहीं आई है। गौरतलब है कि अक्टूबर के बाद से बैंक एनबीएफसी को कर्ज मुहैया करने से पहले काफी सोच-विचार कर रहे हैं।
इन कंपनियों को बैंकों से कर्ज लेने में काफी मशक्क्त करनी पड रही है। इनको कर्ज लेने से पहले बैंक द्वारा नियुक्त स्वतंत्र ऑडिटर से एक प्रमाणपत्र लेने की आवश्यकता पड़ती है।
बैंकों की तरफ से ऑडिटर को इस बात का भी निर्देश दिया गया है कि वे एनबीएफसी को दिए जा कर्जों पर निगरानी रखें और महीने में एक बार उन्हें इसकी रिपोर्ट सौंपे।
सरकारी बैक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि विभिन्न उत्पादों का कारोबार करनेवाली एनबीएफसी को जोखिम भरा माना जाता है और इसलिए इन कंपनियों को ऊंची दरों पर ऋण मुहैया कराया जा रहा है।
अधिकारी ने कहा कि एनबीएफसी को कर्ज लेने से पहले ऑडिटर से प्रमाण पत्र लेना पडता है जो फंडों के उचित इस्तेमाल पर नजर रखते हैं।
बैंकरों का यह भी कहना है कि एनबीएफसी जो कर्ज लेते हैं वे इसका इस्तेमाल नए ऋ णों को देने की बजाय अपनी कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करती हैं।
इस बारे में एक सूत्र ने कहा कि अगर इन कंपनियों के द्वारा लिए गए ऋणों का इस्तेमाल नए ऋणों को मुहैया कराने में नहीं किया जाता है तो फिर इन कं पनियों को ऋण देने का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
बैंकों के इस आरोप को काफी हद एनबीएफसी भी कबूल करती है। इन कंपनियों का कहना है कि बैंकों द्वारा मुहैया कराए जानेवाले ऋणों में अभी भी तेजी नहीं आई है।
रिलायंस कैपिटल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सैम घोष का कहना है कि अधिकांश बैंक अब एनबीएफसी को अब कर्ज दे रहे हैं लेकिन इन कं पनियों ने अपनी तरफ से नए ऋणों को देने के लिहाज से बेहतर प्रदर्शन नहीं किया है।
इसी तरह एक अन्य वित्तीय कंपनी के प्रमुख ने कहा कि बाजार में प्रतिकूल वातावरण को दखते हुए सभी अपनी विस्तार की योजनओं को ठंढ़े बस्ते में डाले हुए हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपनी कार्यशील पूंजी की आवश्यकतों से निपटने केलिए फंड की जरूरत है।
इसके अलावा बैंकरों का कहना है कि एनबीएफसी द्वारा व्यवसायिक वाहनों की खरीद और रियल स्टेट को दी जानेवाली कर्जों की रफ्तार में काफी कमी आई है क्योंकि आर्थिक मंदी के कारण अधिकांश व्यवसायिक वाहन सड़कों पर से हटा लिए गए हैं। हाल के कुछ महीनों में रियल एस्टेट क्षेत्र की हालत काफी खस्ता हो गई थी।