म्यूचुअल फंड्स (MFs) के मुकाबले लोन लेने का चलन खुदरा निवेशकों के बीच तेजी से बढ़ रहा है। अब निवेशक यह समझने लगे हैं कि लंबे समय तक निवेश बनाए रखना अधिक फायदेमंद है। ऐसे में अचानक पैसों की जरूरत पड़ने पर वे म्यूचुअल फंड यूनिट्स को भुनाने के बजाय उनके एवज में लोन लेना ज्यादा बेहतर विकल्प मान रहे हैं।
म्यूचुअल फंड यूनिट्स पर लोन की बढ़ती मांग, आसान डिजिटल प्रोसेस से मिल रहा फायदा
पहले म्यूचुअल फंड (MF) यूनिट्स पर लोन लेने की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑफलाइन होती थी, जिसमें 5 से 7 कार्यदिवस लग जाते थे। लेकिन अब यह प्रक्रिया डिजिटल हो गई है और लोग अपने घर या ऑफिस से ही यह लोन कुछ ही समय में प्राप्त कर सकते हैं। मिराए एसेट फाइनेंशियल सर्विसेज के सीईओ कृष्ण कन्हैया के अनुसार, “अब यह लोन ऑनलाइन उपलब्ध है और इसे बहुत जल्दी और आसानी से लिया जा सकता है।”
कन्हैया का कहना है कि सिस्टेमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) में बढ़ोत्तरी के चलते लंबी अवधि के म्यूचुअल फंड एसेट्स का एक बड़ा बेस तैयार हुआ है, जिसे गिरवी रखकर लोन लिया जा सकता है।
पिछले समय में बाजार में गिरावट आते ही निवेशक म्यूचुअल फंड यूनिट्स को भुनाने लगते थे। लेकिन अब यह ट्रेंड बदल रहा है। धानलैप के संस्थापक और सीईओ सीआर चंद्रशेखर कहते हैं, “अब लोग बाजार में गिरावट के दौरान भी अपनी यूनिट्स बेचने के बजाय उनके खिलाफ लोन लेने को तरजीह दे रहे हैं। इससे उनकी वेल्थ कंपाउंड होती रहती है। इक्विटी म्यूचुअल फंड लंबे समय में 12–15% CAGR दे सकते हैं।”
इसके अलावा, कर्ज की सख्त होती शर्तों के चलते उधारकर्ता अब सिक्योर्ड लोन विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं। बैंकबाजार के सीईओ अधिल शेठ्टी के मुताबिक, “पर्सनल लोन, खासकर छोटे अमाउंट वाले, अब मुश्किल से मिल रहे हैं। वहीं किसी एसेट के खिलाफ सिक्योर्ड लोन लेना सस्ता भी होता है और उसकी मंजूरी भी जल्दी मिल जाती है।”
पर्सनल लोन से सस्ते हैं ये लोन, नहीं देनी होती फोरक्लोजर फीस
म्यूचुअल फंड पर मिलने वाले लोन (Loan Against Mutual Funds) अब पर्सनल लोन की तुलना में किफायती साबित हो रहे हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इन लोन पर ब्याज दरें आमतौर पर 10 से 14 फीसदी के बीच होती हैं।
Kanhaiya का कहना है कि उनकी कंपनी क्लाइंट की प्रोफाइल या लोन की राशि की परवाह किए बिना सालाना 10.5% की ब्याज दर वसूलती है। वहीं, DhanLap के Chandrasekar बताते हैं कि उनकी कंपनी 10.5 से 11 फीसदी के बीच ब्याज लेती है।
कुछ लेंडर्स इस तरह के लोन को ओवरड्राफ्ट की तरह भी पेश करते हैं। Kanhaiya के अनुसार, “ग्राहकों को एक सीमा दी जाती है, जिसके तहत वे जरूरत के मुताबिक पैसे निकाल सकते हैं। रिपेमेंट भी कैश फ्लो के अनुसार किया जा सकता है। इसमें फिक्स्ड EMI नहीं होती। जितनी राशि इस्तेमाल की जाती है, केवल उसी पर मासिक ब्याज लगता है। मूलधन की अदायगी ग्राहक की सुविधा के अनुसार की जा सकती है।”
इस लोन की एक और खासियत यह है कि अकाउंट बंद करने पर कोई पेनल्टी नहीं लगती। Kanhaiya कहते हैं, “अगर आप लोन अकाउंट बंद करते हैं तो कोई फोरक्लोजर चार्ज नहीं देना होता और म्यूचुअल फंड यूनिट्स से लियन 24 घंटे के भीतर हटा लिया जाता है।”
मार्जिन कॉल से सावधान रहें
शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव गिरवी रखे गए सिक्योरिटीज की वैल्यू को प्रभावित कर सकता है, जिससे margin call की स्थिति बन सकती है। चंद्रशेखर के अनुसार, “कभी-कभी हालात इतने बिगड़ सकते हैं कि मार्जिन कॉल को पूरा करने के लिए कुछ एसेट्स बेचने की नौबत आ सकती है।”
शेट्टी आगाह करते हैं कि अगर उधारकर्ता समय पर भुगतान नहीं कर पाया, तो उसकी संपत्तियां भी जब्त हो सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इक्विटी म्यूचुअल फंड से मिलने वाला रिटर्न सुनिश्चित नहीं होता। चंद्रशेखर के मुताबिक, “कुछ वर्षों में आपके म्यूचुअल फंड यूनिट्स से मिलने वाला रिटर्न, लोन पर लगने वाले ब्याज से भी कम हो सकता है।”
EMI चुकाने में दिक्कत हो तो यूनिट्स बेचना बेहतर विकल्प: एक्सपर्ट्स
लंबी अवधि के निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड के ज़रिए मिलने वाले लोन फायदेमंद हो सकते हैं। सेबी से रजिस्टर्ड निवेश सलाहकार और सहजबनी के संस्थापक अभिषेक कुमार का कहना है कि जिन निवेशकों को तत्काल पैसों की जरूरत हो या जो लिक्विडिटी संकट का सामना कर रहे हों, वे इस विकल्प पर विचार कर सकते हैं।
हालांकि, उन्होंने चेताया कि इस लोन का इस्तेमाल कभी भी इंस्टैंट खर्चों या भावनात्मक खरीदारी के लिए नहीं करना चाहिए। इसके लिए इमरजेंसी फंड रखना बेहतर होता है ताकि उधारी की नौबत ही न आए।
अगर आपने EMI आधारित लोन लिया है तो हर महीने मूलधन और ब्याज चुकाना जरूरी होगा। वित्तीय विशेषज्ञ चंद्रशेखर का कहना है कि जिन निवेशकों के लिए EMI चुकाना मुश्किल हो सकता है, उनके लिए बेहतर यही होगा कि वे म्यूचुअल फंड यूनिट्स बेचकर जरूरत का पैसा जुटाएं।
अभिषेक कुमार यह भी सलाह देते हैं कि बाजार में गिरावट के दौरान मार्जिन कॉल से बचने के लिए अतिरिक्त म्यूचुअल फंड यूनिट्स या नकद राशि अपने पास रखें।