मनी मार्केट फंड (MMFs) में निवेश अगस्त में घटकर 2,210 करोड़ रुपये रह गया। जुलाई में इन फंड्स में लगभग 44,573 करोड़ रुपये का इनफ्लो आया था। एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) के आंकड़ों से यह जानकारी मिलती है।
मनी मार्केट फंड्स उन इंस्ट्रूमेंट में निवेश करते हैं जिनकी मैच्योरिटी पीरियड एक साल तक होती है। इनमें ट्रेजरी बिल शामिल हैं, जो सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं और बहुत सुरक्षित माने जाते हैं। इसमें सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट (CDs) भी होते हैं, जिन्हें बैंक जारी करते हैं और ये कॉरपोरेट्स इंस्ट्रूमेंट से ज्यादा सुरक्षित होते हैं। इसके अलावा, कमर्शियल पेपर्स (CPs) भी होते हैं, जिन्हें कॉरपोरेट्स जारी करते हैं और इनका जोखिम इश्यूर पर निर्भर करता है। मनी मार्केट फंड्स में रेपो भी शामिल होते हैं।
ये लिक्विड फंड्स से अलग हैं, जो केवल 91 दिनों तक की मैच्योरिटी पीरियड वाले इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं। ये अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन फंड्स से भी अलग हैं, जिनकी पोर्टफोलियो अवधि तीन से छह महीने तक होती है।
एक्सिस म्युचुअल फंड के हेड – फिक्स्ड इनकम, देवांग शाह कहते हैं, “ये लिक्विड फंड्स की ही तरह लिक्विडिटी (तरलता) प्रदान करते हैं, लेकिन थोड़े ज्यादा रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं।
टाटा म्युचुअल फंड के डिप्टी हेड – फिक्स्ड इनकम, अमित सोमानी कहते हैं, “जहां अन्य फंड कैटेगरीज के पास निवेश के लिए सीमित दायरा होता है। वहीं, मनी मार्केट फंड्स के पास ज्यादा छूट होती है, क्योंकि ये एक दिन से लेकर एक साल तक की मैच्योरिटी पीरियड वाले सिक्योरिटीज में निवेश कर सकते हैं।
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इन फंड्स में निवेश मुख्य रूप से कॉरपोरेट्स और संस्थानों द्वारा किया जाता है, जिसमें पैसे तिमाही के अंत में बाहर जाते हैं और अगली तिमाही की शुरुआत में लौट आते हैं।
शाह कहते हैं, “जुलाई में, कॉरपोरेट्स और संस्थानों ने तिमाही टैक्स और एडवांस पेमेंट की जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद अपने फंड्स को फिर से निवेश किया। इसी वजह से उस महीने निवेश में तेजी आई। अगस्त में, जब इन संस्थाओं ने नकदी को फिर से आवंटित किया, तो फ्लो धीमा हो गया। कुछ पूंजी को वर्किंग कैपिटल या नियामक जरूरतों को पूरा करने के लिए बाहर निकाला गया।”
इसके अलावा, जून और जुलाई में ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती हुई। सोमानी कहते हैं, “मनी मार्केट फंड्स- लिक्विड फंडों की तुलना में 20-35 बेसिस पॉइंट का अल्फा ऑफर कर रहे थे। इसने जुलाई में संस्थागत निवेशकों को काफी आकर्षित किया।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने जून में ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती की और कैश रिजर्व रेशियो (CRR) को 4% से घटाकर 3% करने की घोषणा की, जिसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। ये उपाय लिक्विडिटी और यील्ड कर्व के शॉर्ट टर्म हिस्से को सपोर्ट करते हैं।
छह महीने से एक साल तक की यील्ड 6.25–6.50% के बीच है। इन फंड्स से मिलने वाला रिटर्न खर्चों को घटाने के बाद इसी रेंज में होगा। सोमानी कहते हैं, “निवेशक अगले छह से 12 महीनों में रीपो रेट या ओवरनाइट रेट्स से लगभग 75–200 बेसिस पॉइंट का अल्फा उम्मीद कर सकते हैं।”
शाह कहते हैं, “जीएसटी से जुड़ी हाल की घटनाओं और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ढील देने वाली नीति के कारण, RBI अक्टूबर–दिसंबर में ब्याज दरों में मामूली कटौती पर विचार कर सकता है, जो बाजार के लिए पॉजिटिव संकेत होगा।”
ये फंड्स कम उतार-चढ़ाव वाले और बहुत ही ज्यादा लिक्विड इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं। कॉर्पोरेट ट्रेनर (डेट) और लेखक जॉयदीप सेन कहते हैं, “इन्हें डिफेंसिव प्रोडक्ट के रूप में पेश किया गया है और ये लिक्विड फंड्स की तुलना में थोड़ा ज्यादा रिटर्न देने की संभावना रखते हैं।”
शाह ने बताया कि ये फंड ज्यादा तरलता, तुलनात्मक रूप से कम क्रेडिट और ब्याज दर जोखिम, तथा इश्यूर में डायवर्सिफिकेशन प्रदान करते हैं।
मनी मार्केट फंड्स को अपने पोर्टफोलियो का एक हिस्सा ट्रेजरी बिल्स में रखना जरूरी होता है। सोमानी कहते हैं, “इससे ये अधिकांश अन्य फंड कैटेगरीज की तुलना में उतार-चढ़ाव के प्रभाव को बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं।”
मनी मार्केट फंड्स में थोड़ा ड्यूरेशन रिस्क होता है, लेकिन यह ज्यादा नहीं है। सेन कहते हैं, “ये लिक्विड फंड्स की तुलना में थोड़ा ज्यादा उतार-चढ़ाव वाले हो सकते हैं।”
सोमानी कहते हैं कि निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो की क्वालिटी और जोखिम भरे निवेशों पर ध्यान देना चाहिए।
शाह बताते हैं कि टैक्स के बाद रिटर्न हमेशा महंगाई के बराबर नहीं रह सकते। मार्क-टू-मार्केट या क्रेडिट इवेंट के समय NAV गिर सकती है, लेकिन अच्छी मैनेजमेंट क्रेडिट जोखिम को कम करती है।
निवेशकों को अपनी निवेश अवधि को फंड की मैच्योरिटी पीरियड के अनुसार मिलाना चाहिए। स्क्रिपबॉक्स के मैनेजिंग पार्टनर सचिन जैन कहते हैं, “निवेशकों को बहुत छोटे समय, जैसे 15 दिन से एक महीने के लिए निवेश करने से बचना चाहिए। ऐसे फंड्स में शॉर्ट टर्म में उतार-चढ़ाव हो सकते हैं, खासकर जब ब्याज दरों में तेज बदलाव होता है।”
सेन सुझाव देते हैं कि अगर निवेशक की अवधि छह से बारह महीने के बीच है, तो वे मनी मार्केट फंड्स में पैसा लगाने पर विचार कर सकते हैं।
शाह कहते हैं कि ये फंड्स उन निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प हैं जिन्हें जल्दी नकदी की जरूरत हो या जो निवेश के बीच फंड्स को सुरक्षित रखना चाहते हैं।
जैन कहते हैं, “निवेशकों द्वारा छह से सात महीने की अवधि पार करने के बाद, उनका रिटर्न फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) के समान होगा। इसके अलावा, उन्हें 100% नकदी और एफडी के समान ही टैक्सेशन का लाभ मिलेगा।”
सबसे पहले, एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) का ट्रैक रिकॉर्ड और फंड्स का परफॉर्मेंस देखें। उसके बाद, पोर्टफोलियो की क्वालिटी की जांच करें। देखें कि पोर्टफोलियो का कितना हिस्सा A1+ होल्डिंग्स में निवेशित है। A1+ होल्डिंग्स में, यह देखें कि कितना ट्रेजरी बिल्स, CDs और CPs में है। ट्रेजरी बिल सबसे सुरक्षित होते हैं। बैंक CDs को ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। CPs में जोखिम इश्यूर पर निर्भर करता है। इश्यूर की क्रेडिट रेटिंग और यह ब्लू-चिप है या कोई अज्ञात कंपनी, यह जरूर देखें।
एवरेज मैच्योरिटी भी महत्वपूर्ण होती है। जैन कहते है, “विभिन्न फंड्स की एवरेज मैच्योरिटी अलग हो सकती है, जिससे यील्ड-टू-मैच्योरिटी में 30–40 बेसिस पॉइंट का अंतर आ सकता है।” वे एक्सपेंस रेशियो की तुलना करने और बहुत छोटे AUM वाले फंड्स से बचने की सलाह देते हैं।