Manufacturing Funds: अमेरिका द्वारा शुरू किए गए टैरिफ विवाद के कई हफ्तों बाद राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा 90 दिन की बातचीत की समयसीमा की घोषणा से तनाव कुछ कम हुआ। हालांकि बाजार में उतार-चढ़ाव बना रहा, लेकिन इसके बाद ध्यान भारतीय और ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग पर इसके प्रभाव की ओर मुड़ गया। ICICI प्रूडेंशियल म्युचुअल फंड के फंड मैनेजर ललित कुमार कहते हैं, “ग्लोबल टैरिफ वॉर ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर एक बार फिर ध्यान केंद्रित कर दिया है। भारत ने अन्य देशों के उलट टकराव बढ़ाने के बजाय द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं का रास्ता अपनाकर एक समझदारी भरा कदम उठाया है। इससे भारतीय मैन्युफैक्चरर्स को फायदा हो सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां हम अमेरिका को नेट एक्सपोर्टर हैं। इससे हमें बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने का मौका भी मिल सकता है। हालांकि, इसका अंतिम असर चल रही व्यापार वार्ताओं के नतीजों पर निर्भर करेगा।”
वर्तमान में बाजार में 12 एक्टिवली मैनेज्ड मैन्युफैक्चरिंग फंड मौजूद हैं, जिनका कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) ₹32,999 करोड़ है। इसके अलावा चार पैसिव फंड भी हैं, जिनका कुल AUM ₹473 करोड़ है।
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय वार्ताएं जारी रहने से उन निवेशकों की चिंता कम हुई है जो निर्यात-आधारित मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों और थीमैटिक मैन्युफैक्चरिंग फंड्स में निवेश को लेकर आशंकित थे। ये फंड्स अपनी कुल संपत्ति का कम से कम 80% हिस्सा विभिन्न मार्केट कैपिटलाइजेशन वाली मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में निवेश करते हैं।
Also read: पांच साल में ज्यादातर इक्विटी फंड बेंचमार्क से पीछे, केवल 30% का प्रदर्शन बेहतर: IR डेटा
सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम, निर्यात प्रोत्साहन और आयात प्रतिस्थापन जैसे कार्यक्रमों के साथ-साथ वैश्विक कंपनियों द्वारा अपनाई जा रही ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को मजबूती दे रही है।
बड़ौदा बीएनपी परिबास म्युचुअल फंड के सीनियर फंड मैनेजर जितेंद्र श्रीराम कहते हैं, “जिस तरह अमेरिका अपने हितों की रक्षा कर रहा है, उसी तरह भारत के पास भी यह मौका है कि वह आयात पर निर्भरता कम करे और मैन्युफैक्चरिंग ट्रेड डेफिसिट को बेहतर तरीके से संतुलित करे। सरकार मैन्युफैक्चरिंग का जीडीपी में योगदान बढ़ाने पर जोर दे रही है, ऐसे में यह थीम आगे भी बनी रहेगी और इसकी ग्रोथ जीडीपी ग्रोथ से भी तेज हो सकती है। इसलिए घरेलू मैन्युफैक्चरिंग में मजबूत बनी रहने की संभावना है।”
चूंकि मैन्युफैक्चरिंग फंड थीमैटिक नेचर के होते हैं, इसलिए इनमें जोखिम भी ज्यादा होता है। सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर पारुल माहेश्वरी कहती हैं, “मैन्युफैक्चरिंग एक थीमैटिक निवेश विकल्प है जो जोखिम भरा और अस्थिर हो सकता है। इस सेक्टर का प्रदर्शन आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों से प्रभावित हो सकता है।”
निवेशकों को अपनी एसेट एलोकेशन की समीक्षा करनी चाहिए और अगर इक्विटी या खासकर थीमैटिक फंड्स में ज्यादा निवेश है तो उसे संतुलित करना चाहिए। श्रीराम कहते हैं, “सेक्टोरल या थीमैटिक फंड्स का जोखिम सामान्य ब्रॉड-बेस्ड फंड्स की तुलना में अधिक होता है। अगर किसी निवेशक की जोखिम सहने की क्षमता कम है, तो उन्हें इन फंड्स में अपने निवेश के स्तर और उपयुक्तता पर जरूर विचार करना चाहिए।” कुछ अपवादों को छोड़कर, अधिकांश मैन्युफैक्चरिंग फंड्स का ट्रैक रिकॉर्ड छोटा है।
जो निवेशक जल्दी मुनाफा कमाने की उम्मीद में मैन्युफैक्चरिंग फंड्स में निवेश करना चाहते हैं, उन्हें निराशा हो सकती है। क्योंकि व्यापार से जुड़े विवादों को सुलझने में समय लग सकता है। इसके अलावा, भारतीय मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां भी लगातार बदलते हालात के अनुसार खुद को ढाल रही हैं। इसलिए इस सेक्टर में निवेश के लिए लंबी अवधि की सोच जरूरी है।
पारुल माहेश्वरी कहती हैं, “जो निवेशक जोखिम उठाने के इच्छुक हैं और सात साल तक इंतजार कर सकते हैं, वे सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए इसमें निवेश कर सकते हैं। उन्हें अपनी कुल निवेश राशि का अधिकतम 5% ही इन फंड्स में लगाना चाहिए। वहीं, कंजर्वेटिव निवेशकों या पहली बार निवेश करने वालों को इन फंड्स से दूरी बनाकर लार्ज कैप से जुड़े डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड्स में ही निवेश करना चाहिए।”