Factor Investing a smart way to invest: म्युचुअल फंड में फैक्टर इन्वेस्टिंग एक नई और डिसिप्लिन इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी है, जो पारंपरिक निवेश के तरीकों से अलग है। इसमें उन स्टॉक्स को चुना जाता है, जिनमें कुछ खास विशेषताएं या “फैक्टर” होते हैं, जो ऐतिहासिक रूप से बेहतर रिटर्न देने के लिए जाने जाते हैं। यह स्ट्रैटेजी केवल मार्केट कैप वेटेड निवेश पर निर्भर नहीं रहती, बल्कि अलग-अलग फैक्टर्स का विश्लेषण करके बेहतर अवसरों की पहचान करती है। इससे निवेशकों को न केवल संभावित रूप से अधिक रिटर्न मिलता है, बल्कि जोखिम को भी नियंत्रित करने में मदद मिलती है। यही कारण है कि फैक्टर इन्वेस्टिंग धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट के लिए एक प्रभावी विकल्प माना जा रहा है।
फैक्टर इन्वेस्टिंग एक निवेश रणनीति है, जिसमें उन शेयरों या प्रतिभूतियों को चुना जाता है, जिनमें अच्छा रिटर्न देने की संभावना होती है। इसका मकसद जोखिम को कम करना होता है, जो अक्सर एक जैसे शेयरों के पोर्टफोलियो में छिपा होता है। इस स्ट्रैटेजी को अपनाने वाले निवेशकों का मानना है कि इससे उन्हें बेहतर और समझदारी भरे निवेश निर्णय लेने में मदद मिलती है।
फैक्टर इन्वेस्टिंग में आमतौर पर दो प्रकार के फैक्टर अहम होते हैं:
1. मैक्रोइकोनॉमिक फैक्टर: ये फैक्टर अलग-अलग एसेट क्लास में बड़े जोखिमों को दर्शाते हैं। इनमें महंगाई की दर, जीडीपी ग्रोथ और बेरोजगारी दर जैसे फैक्टर शामिल हैं।
2. स्टाइल फैक्टर: ये फैक्टर किसी एसेट क्लास के अंदर रिटर्न और जोखिम को समझाने में मदद करते हैं। इसमें ग्रोथ और वैल्यू स्टॉक्स, कंपनी का मार्केट साइज (MCap) और इंडस्ट्री सेक्टर शामिल होते हैं।
फैक्टर इन्वेस्टिंग स्टॉक्स के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले सामान्य वजहों की पहचान करता है और इन्हीं विशेषताओं के आधार पर पोर्टफोलियो तैयार करता है। किसी स्टॉक के प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले कुछ सामान्य फैक्टर्स की बात करें तो इनमें मोमेंटम, क्वालिटी, वैल्यू, ग्रोथ और लो वोलैटिलिटी को शामिल किया जा सकता है।
मोमेंटम (Momentum): जिन शेयरों के हालिया प्राइस ट्रेंड मजबूत होते हैं, वे आगे भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं।
क्वालिटी (Quality): वे कंपनियां जिनकी आय स्थिर होती है, बैलेंस शीट मजबूत होती है और कर्ज कम होता है।
वैल्यू (Value): ऐसे स्टॉक्स जो लोअर वैल्यूएशन रेशियो, जैसे कि प्राइस-टू-अर्निंग (P/E) और प्राइस-टू-बुक (P/B) पर ट्रेड करते हैं।
ग्रोथ (Growth): वे कंपनियां जो लगातार रेवेन्यू और मुनाफे में वृद्धि दर्ज करती हैं।
लो वोलैटिलिटी (Low Volatility): जिन शेयरों में कीमतों में उतार-चढ़ाव कम होता है, जिससे जोखिम घटता है।
एडलवाइस म्युचुअल फंड की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में फैक्टर इन्वेस्टिंग का मजबूत ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। मार्च 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक, स्मार्ट बीटा ईटीएफ (Smart Beta ETFs) का कुल एसेट $1.5 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। मोमेंटम और वैल्यू जैसी फैक्टर स्ट्रैटेजी पारंपरिक मार्केट कैप आधारित ईटीएफ से लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में भी फैक्टर इन्वेस्टिंग तेजी से लोकप्रिय हो रही है। स्मार्ट बीटा ईटीएफ/इंडेक्स फंड्स का एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) एक साल में करीब 3 गुना बढ़ा है। दिसंबर 2023 में यह 6,863 करोड़ रुपये से बढ़कर दिसंबर 2024 में 37,749 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। निवेशक पारंपरिक इन्वेस्टमेंट स्टाइल के साथ फैक्टर-आधारित फंड्स को भी अपना रहे हैं, जिससे यह एक मजबूत इन्वेस्टमेंट ऑप्शन बन रहा है।
डिसिप्लिन इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी: यह निवेश के फैसलों में भावनाओं के प्रभाव को कम करता है और एक निवेश को एक अनुशासित रास्ता दिखाता है।
अनुकूलित निवेश: यह निवेशकों के लक्ष्यों और जोखिम लेने की क्षमता के अनुसार पोर्टफोलियो तैयार करता है।
अच्छा रिटर्न: पारंपरिक मार्केट-कैप आधारित इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी की तुलना में बेहतर रिटर्न देने का प्रयास करता है।
जोखिम में कमी: यह पोर्टफोलियो के उतार-चढ़ाव को कम करता है और बाजार में गिरावट के समय इसे मजबूत बनाए रखता है।
फैक्टर इन्वेस्टिंग एक डेटा-आधारित और सिस्टेमैटिक तरीका है जो वेल्थ बनाने में मदद करता है। यह न केवल रिटर्न बढ़ाने में कारगर है बल्कि जोखिम को भी प्रभावी रूप से मैनेज करता है, जिससे यह अस्थिर बाजारों में निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति बनता जा रहा है।