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रुपया गिरने से फॉरेक्स डेरिवेटिव में घाटा

Last Updated- December 07, 2022 | 4:03 AM IST

कॉरपोरेट भारत एक बार फिर से फॉरेन एक्सचेंज डेरिवेटिव में हुए घाटे से पैदा हुई नई चुनौतियों का सामना कर रहा है लेकिन इस बार यह चुनौती एग्जोटिक प्रोडक्ट्स की तुलना में कुछ कम है।


इसके पीछे का करण यह माना जा रहा है कि जब रुपये में सुधार हो रहा था, उस समय निर्यातकों ने अपने पास जमा डॉलर को बेचना शुरू कर दिया । फॉरेन एक्सचेंज पर नजर रखने वाले विश्लेषकों केअनुसार कुछ ने तो डॉलर को एक साल के बजाय तीन से पांच साल तक केलिए बेचना ज्यादा फायदेमंद समझा।

रुपये की मूल्यों में हुई सात प्रतिशत गिरावट के बाद निर्यातक इन सौदों को करने के बाद घाटे का सामना कर रहें हैं। एक फॉरेन एक्सचेंज विशेषज्ञ ने कहा कि निर्यातकों ने जब अपने डॉलर को बेचा तो उस समय रुपये की कीमत 40 रुपये थी लेकिन इस समय डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 42.50 रुपये है जिसका मतलब सीधे तौर पर अवसर का लाभ उठाने चूक जाना रहा।

अगर रुपये का मूल्य लगातार इस तरह से बरकरार रहता है तो इसका मतलब यह निकलता है कि निर्यातकों को मिलने वाली राशि में सात से आठ प्रतिशत तक का घाटा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि संयोग की बात है कि निर्यातकों ने अपने कुल निर्यात का एक तिहाई या आधे हिस्से का ही सौदा किया है। कहने का तात्पर्य यह है कि निर्यातक उसी सीमा तक घाटा सहेंगे जिस सीमा तक कि उन्होंने सौदा किया है।

इसका एक मतलब निर्यात जितना अधिक होगा उतनी अधिक अवसर की हानि होगी। उस स्थिति में हानि ज्यादा होगी जिसमें निर्यातकों ने दीर्घ अवधि तक के लिए अपने डॉलर का सौदा किया है। बहुत सारे निर्यातकों ने इस तरह का सौदा ज्यादा लाभ कमाने के लिए किया है।

दिलचस्प बात यह है कि यह सौदे बैंको द्वारा कॉरपोरट समूह  को बेचे गए एग्जोटिक प्रोडक्ट्स से कम पेचीदे हैं क्योंकि कुछ लोग तो इसके खिलाफ न्यायालय चले गए। उनको इन सौदों के कारण मार्क-टू-मार्केट हानि उठानी पड़ी थी।

लेवरेज्ड ऑप्शन रुपये और डॉलर की बेहतर दर पाने के  लिए निर्यातकों ने लेवरेज्ड ऑप्शन का सहारा लिया। खर्च को न्युनतम या शून्य के स्तर तक लाने के लिए वे 1:2 के लेवरेज्ड ऑप्शन का सहारा लिया और उन्होंने एक पुट और दो कॉल्स बेचे। एक पुट आपको बेचने का अधिकार देता है जबकि एक कॉल आपको खरीदने का अधिकार देता है। यहां पर चूंकि वे ऑप्शन को बेच रहें हैं,उनको बेचने की मजबूरी है।

कैसे हुआ सौदे में घाटा

जब रुपये में सुधार हो रहा था तो उस समय निर्यातकों ने डॉलर को दीर्घ अवधि के लिए बेच दिया
कुछ ने तो अपने डॉलर को तीन से पांच वर्षों तक के लिए बेच दिया।
जैसे ही रुपये की कीमतों में  महीने में 7 प्रतिशत की गिरावट हुई,निर्यातकों को  सौदों से हानि उठानी पड़ी।

First Published - June 6, 2008 | 10:54 PM IST

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