देश की कम से कम 10 एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMC) एक नए किस्म के निवेश फंड की तैयारी में हैं, जिन्हें लॉन्ग-शॉर्ट इक्विटी फंड कहा जा रहा है। ये खासतौर पर उन निवेशकों के लिए लाए जा रहे हैं, जो ज्यादा जोखिम उठाने को तैयार हैं और जिनके पास ₹10 लाख या उससे ज्यादा की निवेश क्षमता है। ये फंड सेबी के नए Specialised Investment Fund (SIF) फ्रेमवर्क के तहत आएंगे, जो 1 अप्रैल 2025 से लागू हो गया है। इस फ्रेमवर्क के तहत सेबी ने कुल 7 तरह के लॉन्ग-शॉर्ट फंड की कैटेगरी बनाई है- 3 इक्विटी, 2 डेट और 2 हाइब्रिड।
लॉन्ग-शॉर्ट फंड्स की सबसे बड़ी खूबी यही है कि ये बाजार की दोनों चालों- ऊपर और नीचे- से कमाई करने की कोशिश करते हैं। जब फंड मैनेजर को लगता है कि किसी शेयर की कीमत बढ़ेगी, तो वह लॉन्ग यानी खरीदारी की पोजिशन लेता है। और जब गिरावट की आशंका होती है, तो शॉर्ट पोजिशन के ज़रिए कमाई की जाती है, जैसे कि फ्यूचर्स या ऑप्शन के जरिए शेयर को बेचकर बाद में सस्ते में खरीदना।
एडलवाइस म्यूचुअल फंड की एमडी राधिका गुप्ता कहती हैं कि इन फंड्स में मैनेजर को बाजार के दोनों रुख में काम करने की आज़ादी मिलती है, जिससे उन्हें हर हाल में मुनाफे का मौका मिलता है। वहीं मिराए एसेट के वैश्विक रणनीति प्रमुख वैभव शाह मानते हैं कि इन फंड्स के जरिए मैनेजर ऑप्शन जैसी रणनीतियों से भी फायदा कमा सकते हैं, खासकर जब बाजार में भारी उतार-चढ़ाव हो।
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पारंपरिक म्यूचुअल फंड्स सिर्फ तभी रिटर्न देते हैं जब शेयर बाजार ऊपर जा रहा हो। लेकिन लॉन्ग-शॉर्ट फंड्स बाजार की गिरावट से भी मुनाफा कमा सकते हैं। खास बात यह है कि नए SIF नियमों के तहत फंड मैनेजर को 25% तक बिना हेजिंग के शॉर्ट पोजिशन लेने की अनुमति है। इससे वे उन शेयरों पर दांव लगा सकते हैं जो उन्हें कमजोर लगते हैं।
टाटा एसेट मैनेजमेंट के आनंद वर्धराजन का कहना है कि सही समय पर अगर गिरते शेयर पर शॉर्ट किया जाए, तो फंड में अच्छा मुनाफा हो सकता है। हालांकि, राधिका गुप्ता यह भी आगाह करती हैं कि अगर लॉन्ग और शॉर्ट दोनों पोजिशन गलत साबित हों, तो नुकसान भी दोगुना हो सकता है। यानी मुनाफे की संभावना जितनी है, जोखिम भी उतना ही बड़ा है।
चूंकि इन फंड्स में न्यूनतम निवेश ₹10 लाख रखा गया है, इसलिए यह स्पष्ट है कि इन्हें सिर्फ उन्हीं निवेशकों के लिए बनाया गया है जो निवेश को गंभीरता से समझते हैं और जोखिम सहने की क्षमता रखते हैं। मिराए एसेट के वैभव शाह कहते हैं कि ये फंड उन अनुभवी निवेशकों के लिए हैं जो बाजार की चाल को समझते हैं और झटकों को झेल सकते हैं।
गर्मिनेट इन्वेस्टर सर्विसेज के सीईओ संतोष जोसेफ मानते हैं कि इन फंड्स को “जल्दी अमीर बनो” जैसी सोच से बिल्कुल न देखा जाए। इन रणनीतियों को समय देना जरूरी है। वहीं गुप्ता कहती हैं कि कुछ फंड्स ऐसे होंगे जो जोखिम घटाने के मकसद से शॉर्ट पोजिशन का इस्तेमाल करेंगे, जबकि कुछ आक्रामक फंड्स शॉर्टिंग से रिटर्न बढ़ाने पर ध्यान देंगे।
सहजमनी डॉट कॉम के संस्थापक अभिषेक कुमार का कहना है कि जो निवेशक आसान और पारंपरिक रणनीतियों को पसंद करते हैं, उन्हें ऐसे जटिल फंड्स से दूरी बनाकर रखनी चाहिए।
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इन फंड्स को लेकर सलाहकारों की राय है कि इन्हें पोर्टफोलियो के मुख्य हिस्से के रूप में नहीं, बल्कि सीमित हिस्से के रूप में शामिल करना चाहिए। अभिषेक कुमार के अनुसार, ऐसे फंड्स को कुल इक्विटी पोर्टफोलियो का 10% से 20% हिस्सा बनाना ठीक रहेगा, वह भी निवेशक की जोखिम लेने की क्षमता के हिसाब से।
वहीं संतोष जोसेफ कम से कम पांच साल का नजरिया रखने की सलाह देते हैं, ताकि इनकी रणनीतियां पूरी तरह से मैच्योर हो सकें। तीन से पांच साल का निवेश समय फंड मैनेजर के प्रदर्शन का आकलन करने और वोलाटिलिटी से निपटने में मदद कर सकता है। अगर फंड की रणनीति थोड़ी कम जोखिम वाली हो, तो निवेश समय थोड़ा छोटा भी हो सकता है।
कई सलाहकारों का मानना है कि ऐसे फंड्स में निवेश करने से पहले कुछ समय रुक जाना चाहिए। अभिषेक कुमार कहते हैं कि इन फंड्स को भारत में अभी कोई लंबा ट्रैक रिकॉर्ड नहीं मिला है, इसलिए कम से कम 12 से 18 महीने तक इंतजार करना बेहतर होगा, जब तक कि इनकी परफॉर्मेंस को देखा-परखा न जाए।
संतोष जोसेफ निवेश से पहले यह समझने की सलाह देते हैं कि फंड का उद्देश्य क्या है- जोखिम कम करना या ज्यादा रिटर्न पाना। इसके अलावा, फंड के डॉक्यूमेंट्स और जोखिम खुलासों को अच्छी तरह पढ़ लेना जरूरी है। राधिका गुप्ता भी यही कहती हैं कि हर निवेशक को यह देखना चाहिए कि फंड की रणनीति उनके निवेश मकसद और जोखिम प्रोफाइल के हिसाब से है या नहीं।